चीन की हालत बिल्कुल एक कहावत की भांति हो गई है – आगे कुआं तो पीछे खाई। जहां वुहान वायरस को महामारी बनने को लेकर वैश्विक ताकतों ने उसके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है, तो वहीं भारत भी अब चीन पर आक्रामक हो चुका है, और उसे उसकी औकात बताने का कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देता है।
अभी हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के नेतृत्व में 100 से अधिक देशों ने वुहान वायरस फैलाने में चीन की भूमिका और WHO के संदेहास्पद भूमिका पर एक स्वतंत्र जांच कराने की मांग की थी। इसे ना सिर्फ भारत ने अपना खुला समर्थन दिया है, अपितु ताइवान को WHO में शामिल कराने की मांग को अपना अप्रत्यक्ष समर्थन दिया है।
पर ठहरिए। चीन के खिलाफ भारत का ये आक्रामक स्वभाव हमेशा से नहीं था। इसकी नींव 2017 में ही पड़ी थी, जब चीन ने डोकलाम में भारतीय सेना को अपनी हेकड़ी दिखाने का प्रयास किया, तो भारतीय सेना ने ना सिर्फ मुंहतोड़ जवाब दिया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया -अब चीन की दादागिरी और नहीं चलेगी। अंततः चीन को 73 दिन के तनातनी के बाद घुटने टेकने पर विवश होना पड़ा।
बस, फिर क्या था भारत ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2019 में जब पूरी दुनिया इस बात पर नजर रखी हुई थी कि पीएम मोदी RCEP समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे या नहीं, तब पीएम मोदी ने सबको चौंकाते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से साफ मना कर दिया।
RCEP के तहत इसके दस सदस्य देशों यानी ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और छह एफटीए पार्टनर्स चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता प्रस्तावित था। ये सभी देश चाहते थे कि भारत जल्द से जल्द इस डील पर साइन कर दे लेकिन तब भारत की ओर से पीएम मोदी ने यह साफ कर दिया था कि
भारत किसी भी डील पर साइन करने से पहले अपने हितों को देखेगा और अभी उनकी अंतरात्मा इस डील पर साइन करने के लिए उन्हें इजाजत नहीं देती है।
ये निर्णय आज वुहान वायरस से आई महामारी के समय किसी वरदान से कम सिद्ध नहीं हुआ है। आज जब पूरी दुनिया का चीन से मोह भंग हो चुका है, तो ऐसे समय में भारत इस मौके का पूरा लाभ उठाने की स्थिति में दिखाई दे रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि बड़ी संख्या में विदेशी कंपनियां चीन से अपना सारा सामान समेटकर अब भारत और वियतनाम जैसे देशों का रुख कर रही हैं जिससे भविष्य में इन देशों में ना सिर्फ रोजगार के अवसर प्रदान होंगे बल्कि, इससे इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी बहुत फायदा होगा।
अगर पिछले वर्ष भारत RCEP का सदस्य बन जाता, तो आज इन कंपनियों को भारत आने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती और आज चीन आसानी से अपने आर्थिक हालत को दुरुस्त करने के लिए भारत के बाज़ार को अपने घटिया सामान से भर चुका होता।
पर भारत इतने से थोड़ी ना संतुष्ट होने वाला था। उसने चीन को मानो उसी की शैली में जवाब देने की ठान ली थी। मार्च 2020 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आने से भारत और अमेरिका के बीच रक्षा क्षेत्र से लेकर कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर समझौते हुए। इन समझौतों के बीच एक ऐसे मुद्दे पर भी बातचीत हुई जिससे भारत और अमेरिका मिलकर चीन की नाक में दम करेंगे। यह साझेदारी है ब्लू डॉट नेटवर्क (Blue Dot Network) की।
ट्रम्प ने प्रेस कोंफ्रेंस के दौरान कहा था कि ऑस्ट्रेलिया जापान के साथ मिलकर ब्लू डॉट नेटवर्क को विस्तार देने को लेकर भी दोनों देशों के बीच बात हुई है। भारत ने भी इस नेटवर्क पर अपनी रूचि दिखाई है। बता दें कि BDN की औपचारिक घोषणा 4 नवंबर, 2019 को थाईलैंड के बैंकॉक में इंडो-पैसिफिक बिज़नेस फोरम (Indo-Pacific Business Forum) में की गई थी। इसमें अमेरिका के साथ जापान और ऑस्ट्रेलिया भी हैं और अब भारत भी जुड़ गया है।
ब्लू डॉट नेटवर्क को भी समझ लेते हैं, उदाहरण के तौर पर अगर किसी देश को बंदरगाह बनवाना है और क़र्ज़ की ज़रूरत है तो वो देश इन Blue Dot नेटवर्क के जरीए अप्लाई कर सकता है। इनके विशेषज्ञ उस प्रोजेक्ट के बारे में आर्थिक मूल्यांकन तथा अन्य विषयों पर अच्छे से अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करेंगे जिससे उन्हें IMF, वर्ल्ड बैंक और अन्य वित्तिय संस्थानों से आर्थिक सहायता मिलना आसान होगा। यह निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन अपनी आक्रामक नीति पर चलते हुए BRI यानि Belt and Road Initiative का विस्तार कर रहा है। अब भारत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर ब्लू डॉट नेटवर्क के जरिए चीन के BRI प्रोजेक्ट को चुनौती देने जा रहा है।
इसके अलावा भारत ने भारत-चीन बॉर्डर पर भी चीन को झुकने पर भी मजबूऔर किया है। भारत-चीन बॉर्डर पर शुरू से ही सबसे बड़ा मामला देश के अन्य हिस्सों से कनेक्टिविटी का रहा है। कठिन भौगोलिक परिस्थिति और मौसम में किसी भी प्रकार का इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना यहां सबसे बड़ी चुनौती है। अब सीमा सड़क संगठन (BRO) ने वर्ष 2019 में, लगभग 60,000 किमी सड़कों का निर्माण और विकास कर इसे आसान बना दिया है, जिसमें डोकलाम के पास एक महत्वपूर्ण 19.72 किलोमीटर सड़क भी शामिल है। इस सड़क की वजह से अब भारत की सेना 40 मिनट में ही डोकलाम पहुंच सकती है। पहले यह सफर 7 घंटे का होता था। गौरतलब है कि 1962 के बाद पांच दशकों से अधिक समय तक, चीन के साथ विवादित सीमा पर सड़कों का निर्माण न करके, कांग्रेस की सरकारों ने भारत को रणनीतिक रूप से कमजोर कर दिया था। ऐसे में मोदी सरकार उन क्षेत्रों में भी सड़कों का निर्माण कर रही है जो अतीत में चीन और भारत के बीच विवाद के कारण रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश में पुलों के बनाए जाने से पता चलता है कि भारत चीन के धमकाने और दावों से डरने वाला नहीं है बल्कि, डराने वाला है।
हाल ही में जब चीन की PLA यानि People’s Liberation Army ने लद्दाख और सिक्किम में बार्डर पर तनाव बढ़ाने की कोशिश की थी तब भारत ने न केवल इसका जवाब दिया, बल्कि चीन को मजा चखाते हुए उसके खिलाफ कोरोना पर जांच की मांग का समर्थन किया जिसके बाद चीन यह रोना-गाना शुरु कर दिया कि भारत ने उसके क्षेत्र में अवैध निर्माण किया है।
वैसे भी अब चीन को भारत से हारने की आदत डाल लेनी चाहिए ठीक वैसे ही जैसे उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शर्मींदगी झेलनी पड़ी थी। दरअसल, जब भारत ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया था तब चीन ने भारत के आंतरिक मुद्दे को अपने ‘सीजनल फ्रेंड’ पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक बार नहीं बल्कि तीन बार उठाया था और हर बार उसे निराशा ही मिली थी। अब भारत ताइवान को लेकर भी चीन को संकेत दे रहा है कि वो अब ताइवान के पक्ष में हैं और नई दिल्ली किसी के दबाव में नहीं आने वाली।
पीएम मोदी के नेतृत्व में इस नए भारत ने चीन को स्पष्ट संदेश दिया है – ये नया भारत है, जो घर में घुसेगा भी और मारेगा भी। यदि मारेगा नहीं, तो ऐसी चोट अवश्य पहुंचाएगा कि चीन चाहकर भी पलटवार नहीं कर पाएगा।