20 देश-20 सीमाएं-20 विवाद, चीन का सारे पड़ोसियों के साथ भयंकर विवाद चल रहा है

विवाद की एक ही जड़-नाम है चीन!

पिछले एक महीने से भारत और चीन (China) के बीच पूर्वी लद्दाख में काफी तनाव देखने को मिला हैं। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चीनी क्षेत्र में काफी भारी संख्या में सैनिकों के जमा होने की रिपोर्ट्स सामने आई है।

अब इसमें कोई दो राय नहीं है कि जब भी भारत और चीन (China) में कोई बॉर्डर डिस्प्यूट होता है, तो अक्सर झगड़े की शुरुआत चीन ही करता है। वैसे भी हमारे लद्दाख क्षेत्र का अक्साई चिन आज भी बीजिंग के कब्जे में हैं। ये तनाव इसलिए बढ़ा है क्योंकि भारत द्वारा LAC के अपने क्षेत्र में निर्माण करने का निर्णय चीन (China) को फूटी आंख नहीं सुहा रहा है।

परन्तु ऐसा नहीं है कि 38000 स्क्वेयर किलोमीटर के क्षेत्र में फैला अक्साई चिन चीन की इकलौती मांग हो। सच कहें तो लगभग हर पड़ोसी देश के क्षेत्र पर चीन अपना अधिकार मानता है।

साम्राज्यवाद का खात्मा हुए लगभग 60 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज भी चीनी विदेश नीति साम्राज्यवाद और अवैध कब्जे पर आधारित है। इसीलिए बीजिंग का लगभग हर पड़ोसी देश के साथ क्षेत्रीय अखंडता को लेकर आए दिन कुछ ना कुछ विवाद होता ही है। आज भी ड्रैगन 14वीं सदी वाली विचारधारा से बाकी देशों की भूमि पर कब्जा जमाना चाहता है।

जापान

सर्वप्रथम बात करते हैं जापान की। चीन और जापान के बीच मतभेद प्रमुख रूप से पूर्वी चीन (China) सागर और दक्षिणी चीन सागर में केंद्रित है। जापान ने हाल ही में आरोप लगाया था कि वुहान वायरस के प्रकोप के दौरान भी चीनी युद्धपोत इन क्षेत्रों में स्थित जापानी द्वीप के आसपास मंडराते हुए पाए गए थे।

यह द्वीप जापानी क्षेत्र में वैधानिक रूप से आते हैं, और ऐसे में चीन (China) के दावे पूर्णतया खोखले हैं। चीन का दावा है कि Ryukyu Island (रयुक्यु द्वीप) एक समय उसका गुलाम हुआ करता था। पर चीन (China) ये भूल जाता है कि उक्त द्वीप ने चीन से 1874 में सभी प्रकार के संबंध तोड़ लिए थे।

South China Sea विवाद

भारत के साथ सीमा विवाद चीन (China) का इकलौता सबसे बड़ा सरदर्द नहीं है। अपने  “nine-dash line”  के बेतुके सिद्धांत के आधार पर चीन अपने भूमि से लगभग 2000 किलोमीटर के जल क्षेत्र पर अपना अधिकार मानता है।

यह लाइन ना केवल फिलीपींस, अपितु वियतनाम और मलेशिया के संप्रभुता को भी चुनौती देता है। पर बीजिंग की हेकड़ी तो देखिए, उसका मानना है कि इस जल क्षेत्र या waterways में आने वाले द्वीप या अन्य भूमि पर उसका सदियों से अधिकार रहा है।

चीन के ये दावे ना केवल UN कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी का घोर उल्लंघन है, अपितु ये कई देशों के विशेष आर्थिक ज़ोन में भी घुसपैठ करता है। पर हम भूल जाते है कि यह वही चीन (China) है, जो अंतरराष्ट्रीय न्यायालय यानी ICJ के नियमों और निर्णयों की भी आए दिन धज्जियां उड़ाता है।

इसके अलावा चीन (China) स्प्रेट द्वीप पर भी दावा ठोकता है। यह 750 reefs, islets, अटोल्स, केस (Cays) और  अन्य द्वीपों का एक समूह है। हालांकि इन द्वीपों पर ताइवान, ब्रूनेई, वियतनाम, फिलीपींस इत्यादि का भी दावा है, जिसका ना सिर्फ चीन उपहास उड़ाता है, अपितु यहां भी अपनी दादागिरी दिखाने से बाज़ नहीं आता।

ताइवान:

अब आते हैं उस क्षेत्र हैं, जिसके कारण आज चीन (China) की सबसे अधिक फजीहत होती है, और वो है ताइवान। चीन पूरे ताइवान पर अपना अधिकार जमाना चाहता है, जबकि सत्य तो यह है कि ताइवान की स्थापना ही इस कारण से हुई, क्योंकि कम्यूनिस्ट चीन के चंगुल से बचकर निकले चीनी गणराज्य के कुओमिंतांग नेताओं ने इस द्वीप पर शरण ली थी।

बीजिंग अपने काल्पनिक वन चाइना नीति के आधार पर ताइवान को अपनी पकड़ से जाने नहीं देना चाहता है, और जो भी ताइवान के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकारता है, उसे वह हेय की दृष्टि से देखता है।

 लाओस और अफ़ग़ानिस्तान

इसी भांति जहां एक ओर युआन वंश के साथ हुई सदियों पुरानी संधि के आधार पर चीन लाओस के कुछ हिस्सों पर दावा ठोकती है, तो वहीं अफ़ग़ानिस्तान के बहदशान क्षेत्र पर भी चीन (China) की बुरी नजर है।

भूटान

पर चीन की लालसा यहीं पर नहीं खत्म होती। भूटान के डोकलाम पठार को चीन अपना हिस्सा मानती है, जिसके कारण 2017 में भारत से चीन की तनातनी भी हुई थी।

भूटान में स्थित  Cherkip Gompa, Dho, Dungmar, Gesur, Gezon, Itse Gompa, Khochar, Nyanri, Ringung, Sanmar, Tarchen जैसे क्षेत्रों पर चीन अपना कब्ज़ा जमाना चाहती है।

इसके अलावा म्यांमार हो या फिर कजाखिस्तान, किर्गीस्तान, ताजिकिस्तान, मंगोलिया उत्तर-कोरिया हो या फिर कंबोडिया, यहां तक कि नेपाल के कई क्षेत्रों पर चीन ने दावा ठोका है। इसके अलावा चीन (China) ने पाकिस्तान तक को नहीं छोड़ा है, और उसके कब्जे में भारत के 5180 स्क्वेयर किलोमीटर के कश्मीरी क्षेत्र को भी अपने कब्जे में ले लिया है।

इस तरह चीन सम्पूर्ण विश्व की शांति और सुचारू व्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। यदि समय रहते चीन के विरुद्ध कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो चीन (China) के साम्राज्यवादी नीतियों के दुष्परिणाम विश्व को युगों युगों तक भुगतने पड़ेंगे।

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