RCEP पर हस्ताक्षर न करने का निर्णय भारत के लिए वरदान साबित, बिना किसी डर के भारत का रुख कर रही कंपनियां

भारत का हित पहले, डील बाद में

RCEP

आज जब पूरी दुनिया का चीन से मोह भंग हो चुका है, तो ऐसे समय में भारत इस मौके का पूरा लाभ उठाने की स्थिति में दिखाई दे रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि बड़ी संख्या में विदेशी कंपनियाँ चीन से अपना सारा सामान समेटकर अब भारत और वियतनाम जैसे देशों का रुख कर रही हैं जिससे भविष्य में इन देशों में ना सिर्फ रोजगार के अवसर प्रदान होंगे बल्कि, इससे इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी बहुत फायदा होगा। आज जब भारत को इस स्थिति का फायदा मिलना निश्चित दिखाई दे रहा है, तो ऐसे समय में भारत सरकार को पिछले वर्ष Regional Comprehensive Economic Partnership यानि RCEP में शामिल ना होने का भी भरपूर फायदा मिल रहा है। अगर पिछले वर्ष भारत RCEP का सदस्य बन जाता, तो आज इन कंपनियों को भारत आने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती और आज चीन आसानी से अपनी आर्थिक हालत को दुरुस्त करने के लिए भारत के बाज़ार को अपने घटिया सामान से भर चुका होता।

पिछले वर्ष पीएम मोदी 2 नवम्बर को जब थाईलैंड के दौरे पर गए थे, तो सब की नज़र इस बात पर टिकी थी कि भारत RCEP डील पर हस्ताक्षर करता है या नहीं। RCEP के तहत इसके दस सदस्य देशों यानी ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और छह एफटीए पार्टनर्स चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता प्रस्तावित था, और ये सभी देश चाहते थे कि भारत जल्द से जल्द इस डील पर साइन कर दे लेकिन तब भारत की ओर से पीएम मोदी ने यह साफ कर दिया था कि,

भारत किसी भी डील पर साइन करने से पहले अपने हितों को देखेगा और अभी उनकी अंतरात्मा इस डील पर साइन करने के लिए उन्हें इजाजत नहीं देती है।

इसी के साथ भारत ने RCEP की बातचीत से अपने आप को बाहर कर लिया था। आज PM मोदी के उस कदम का भारत को आर्थिक फायदा मिलता दिखाई दे रहा है।

जरा सोचिए, अगर भारत RCEP पर तब हस्ताक्षर कर लेता, तो एक फ्री ट्रेड अग्रीमेंट के तहत चीन की कंपनियाँ भारत में धड़ल्ले से अपना सामान एक्सपोर्ट कर सकती थीं। ऐसी स्थिति में आज चीन से भारत आ रही सैकड़ों कंपनियों को भारत आने की कोई आवश्यकता ही महसूस नहीं होती। हालांकि, भारत द्वारा RCEP की सदस्यता ग्रहण ना करने की वजह से आज की स्थिति बदल चुकी है। आज चीन में production कर रही सभी कंपनियों को डर है कि अगर भविष्य में कोरोना की वजह से चीन पर कोई प्रतिबंध लगते हैं, तो उनके लिए कोई भी सामान चीन से एक्सपोर्ट करना नामुमकिन हो जाएगा, इसीलिए ये सभी कंपनियाँ चीन से बाहर भाग रही हैं, और हजारों की संख्या में ऐसी कंपनियाँ भारत भी आ रही हैं।

Business Standard की एक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 1 हज़ार कंपनियां लगातार भारत सरकार के संपर्क में हैं और वो अपना व्यापार चीन से हटाकर भारत में स्थापित करना चाहती हैं। सरकारी सूत्रों के मुताबिक इन एक हज़ार कंपनियों में से लगभग 300 कंपनियां मोबाइल, मेडिकल और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों से जुड़ी हैं। सरकार ने पिछले साल आर्थिक मंदी से निपटने के लिए कई आर्थिक सुधारों को अंजाम दिया था, जिनमें सबसे बड़ा बदलाव corporate tax को कम करना था। सरकार ने इसे घटाकर 25.17 प्रतिशत कर दिया था, इसके साथ ही नए उत्पादकों के लिए यह corporate tax सिर्फ 17 प्रतिशत कर दिया गया था, जो कि दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के मुक़ाबले सबसे कम है।

सरकार के इन आर्थिक सुधारों का ही परिणाम है कि अब बड़े पैमाने पर दक्षिण कोरियन, अमेरिकी और जापानी कंपनियां चीन को छोड़कर भारत आने को लेकर उत्साहित हैं। इकोनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट की माने तो लगभग 200 अमेरिकी कंपनियां अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भारत शिफ्ट कर सकती हैं।

आज अगर भारत RCEP का सदस्य होता तो ना तो ये कंपनियाँ भारत आतीं, और ना ही भारत को इस स्थिति का कोई आर्थिक फायदा मिल पाता। पिछले साल लिए इस फैसले के लिए PM मोदी की दूरदर्शिता की जितनी प्रशंसा की जाये, उतनी कम है।

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