‘संकट में ही समाधान’- प्रवासी मजदूर अब अपने राज्यों में ही रहकर उसे दिल्ली-मुंबई जैसा बना सकते हैं

राज्य सरकारों के पास बेहतर मौका, विदेशी कंपनियां आ रही हैं

प्रवासी मजदूर, बिहार, यूपी, माइग्रेंट वर्कर

Is the govt doing enough about the plight of migrants who are walking hundreds and thousands of miles home, in uncertainty and despair?(Photo: PTI)

कोरोना वायरस के कारण देश में हुए लॉकडाउन से अगर सबसे अधिक किसी का नुकसान हुआ है तो वह प्रवासी मजदूरों का यानि दूसरे शहर या राज्य में जाकर कमाने वाले लोगों को हुआ है। लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों के लिए एक गंभीर समस्या लेकर आई और लाखों प्रवासियों को घर पहुंचने के लिए या तो इंतज़ार करना पड़ा या फिर वापस पैदल जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। जो लोग घर वापस नहीं जा सके, उन्होंने अपनी बुनियादी जरूरतों जैसे दो समय का भोजन, कपड़ा और अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रत्येक दिन संघर्ष करना पड़ा।

इस कोरोनावायरस लॉकडाउन के दौरान हुई परेशानियों ने प्रवासी मजदूरों को नौकरी की तलाश के लिए अपने शहर को छोड़ दूसरे शहरों और औद्योगिक राज्यों में प्रवास करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करना होगा। प्रवासी मजदूर, विशेष रूप से दैनिक मजदूरी पर निर्भर रहने वाले, शहरों में इसलिए पलायन करते हैं कि शहर कभी बंद नहीं होंगे और वे एक जगह या दूसरे स्थान पर आराम से काम कर सकते है।

परंतु महीने भर अधिक चले इस लॉकडाउन ने शहरों की चालयमान होने के उनके विश्वास को जड़ से झकझोर दिया होगा। भारत में, अधिकांश प्रवासी मजदूर जो अपने राज्यों से बाहर जाते हैं, वे मूल रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल, यूपी, झारखंड और मध्य प्रदेश के होते हैं। इन राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग हर परिवार में कुछ लोग राज्य से बाहर काम करने अवश्य ही जाते हैं और कमाकर रुपया घर वापस भेजते हैं।

अकेले बिहार में 2.5 करोड़ प्रवासी मजदूर हैं

2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में लगभग 2.5 करोड़ प्रवासी श्रमिक हैं, जो पंजाब या हरियाणा जैसे छोटे राज्यों की जनसंख्या के बराबर है। 2.5 करोड़ श्रमिकों में से, 2 करोड़ ग्रामीण क्षेत्रों से और 50 लाख शहरी क्षेत्रों से आते हैं, और उनमें से अधिकांश महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली के यूटी जैसे विभिन्न राज्यों में दैनिक मजदूरी के रूप में काम करते हैं। ये प्रवासी श्रमिक राज्य को करोड़ो रुपये लाते हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था में मदद करने के साथ-साथ अपने परिवारों को भी चलाते हैं।

यूपी, एमपी, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को स्थिति सुधारने की जरुरत

इसी तरह यूपी, एमपी, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों से, लाखों मजदूर महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, पंजाब और हरियाणा जैसे औद्योगिक या समृद्ध राज्यों में पलायन करते हैं ताकि वे बेहतर मजदूरी अर्जित कर सकें और मजदूरी, प्रवासी मजदूर के परिवार की आय के प्रमुख स्रोत हैं।

लेकिन इन प्रवासी मजदूरों ने कोरोनावायरस के लॉकडाउन जैसी कठिनाई से भरी स्थिति का सामना नहीं किया। और यही कठिनाई उन्हें वापस मजदूरी करने के लिए किसी अन्य राज्य जाने के विचार पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करेगा।

इन सभी में से आधे से अधिक से कई यह तय करेंगे कि बेहतर मजदूरी के लिए हजारों किलोमीटर की दूर जाने के बजाय अपने स्वयं के राज्यों में काम करना बेहतर है।

राज्य में ही अगर अवसर हों तो पलायन करने की क्या जरुरत

ऐसे समय में सभी राज्यों के लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि वे इन मजदूरों के लिए अपने यहाँ पर्याप्त अवसर पैदा करें। उसके लिए राज्य में कंपनियों में निवेश जरूरी है। कई विदेशी कंपनियां, कोरोनावायरस महामारी के प्रकोप के बाद चीन से किसी अन्य देश जाने का विचार कर रही हैं।

विदेशी कंपनियों को अवसर देना ताकि राज्य में रोजगार बढ़े

ये कंपनियां सस्ते श्रम, प्रो-एक्टिव और समर्थन देने वाली सरकार ढूंढ रही है। जिस राज्य में भी ये सभी मिलेंगे वे फैक्ट्री की स्थापना करने में नहीं हिचकिचाएँगे। यूपी जैसा राज्य पहले से ही इन कंपनियों को आकर्षित करने के ऊपर ध्यान दे रहा है।

कुछ दिनों पहले, शिंजो आबे के नेतृत्व वाली जापानी सरकार ने चीन से वापस जापान आने वाली जापानी कंपनियों के लिए वित्तीय पैकेज की घोषणा की थी। जापान एकमात्र देश नहीं है जो चाहता है कि उसकी कंपनियां अपने विनिर्माण आधार को चीन से बाहर ले जाएं, कई देशों की कंपनियाँ ऐसा ही चाहती हैं।

इन दिनों विदेशी कंपनियों को लपकने में यूपी सबसे आगे

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार इस अवसर को दोनों हाथों से भुनाने की योजना बना रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने राज्य के नौकरशाहों को एक विशेष पैकेज तैयार करने का निर्देश दिया है जो मौजूदा लाभों के अलावा, इन कंपनियों को दिया जा सकता है।

झारखंड, बिहार, और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों को भी अपने राज्यों को निवेश के अनुकूल माहौल बनाने होंगे जिससे चीन से बाहर जाने वाली कंपनियों आकर्षित किया जा सके। इसके माध्यम से, वे अपने राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में तब्दील कर सकते हैं।

लॉकडाउन ने प्रवासी श्रमिकों की मानसिकता को पूरी तरह से बदल दिया। अब उनमें से अधिकांश अपने राज्यों में काम करना पसंद करने सोचेंगे। भले ही कम भुगतान मिले हैं। सरकार को इस अवसर को भुनाने और बीमारू राज्यों को ठीक करने की जरूरत है।

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