विवादित देश चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने 21 मई को यह ऐलान किया था कि चीन अब हाँग-काँग के बेसिक लॉ में बदलाव कर सकता है। चीन का यह आक्रामक कदम इसलिए हैरानी भरा था क्योंकि Sino-British joint declaration के मुताबिक वर्ष 1997 से लेकर अगले 50 वर्षों तक यानि वर्ष 2047 तक Hong-Kong को अपने basic law के तहत कुछ स्वायत्ता प्राप्त रहेगी। इस स्वायत्ता के तहत Hong-Kong के लोगों को प्रदर्शन करने और सरकार का विरोध करने की आज़ादी हासिल है। पिछले कुछ समय से हाँग-काँग के लोग इन्हीं अधिकारों के तहत चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का विरोध कर रहे थे, जिसे खत्म करने के लिए अब कम्युनिस्ट पार्टी तय समय से 27 साल पहले ही Hong-Kong की स्वायत्ता खत्म करने की योजना पर काम कर रही है। इस योजना को लागू करने के लिए अब जिनपिंग सरकार ने मोदी सरकार से मदद मांगी है।
दरअसल, चीन की सरकार ने भारत समेत दुनिया के कुछ देशों को अपने आगामी कदम की जानकारी देते हुए बताया है कि चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हाँग-काँग (Hong-kong) के बेसिक लॉ या कहिए mini constitution में बदलाव करना अनिवार्य हो गया है। साथ ही चीन ने इन सब देशों को यह भी बताया है कि Hong-Kong का मुद्दा पूरी तरह चीन का आंतरिक मुद्दा है।
सब देशों को जारी एक demarche में चीनी सरकार ने कहा है कि “आप सभी देश Hong-Kong के साथ बेहद नजदीकी व्यापारिक और मैत्री-पूर्ण संबंध रखते हैं। Hong-Kong का विकास और समृद्धि समस्त अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए बेहद ज़रूरी है। यह आपके देश के हित में भी है कि Hong-Kong कि सुरक्षा को बरकरार रखा जाए। हम आशा करते हैं कि आपका देश चीनी सरकार द्वारा लिए जा रहे कदमों का समर्थन करेगा”।
चीनी सरकार को भी पता है कि Hong-Kong को लेकर लिया जा रहा चीन का दमनकारी फैसला अवैध और अनैतिक है, और ऐसे में विश्व के देश उसका पुरजोर विरोध करेंगे। इसी कारण से अब उसने पहले ही भारत और दुनिया के अन्य बड़े देशों को अपने विश्वास में लेने की कोशिश करना शुरू कर दिया है। अमेरिका पहले ही कह चुका है कि वह किसी भी सूरत में हाँग-काँग के basic law में किए जा रहे बदलाव को नहीं सहेगा। इसके अलावा UK सरकार भी Sino-British joint declaration के उल्लंघन को लेकर चीन पर दबाव बनाएगी। अब इसी डर से चीन ने भारत जैसे देशों से अपने समर्थन में मदद मांगी है।
चीन के इस कदम से हाँग-काँग के लोगों से फ्री-स्पीच देने और सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने जैसे अधिकार छिन जाएंगे, जिसका भारत तो छोड़िए, किसी भी लोकतान्त्रिक देश को समर्थन नहीं करना चाहिए। समर्थन करने की बजाय भारत को खुलकर चीन के इस कदम की निंदा करनी चाहिए और चीन को इस मौके पर घेरना चाहिए।
चीन पहले ही भारत की सीमा पर तनाव बढ़ाकर भारत को आंखें दिखा रहा है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ना सिर्फ भारत के राज्य सिक्किम में घुसपैठ कर रहा है, बल्कि चीन के हजारों सैनिक लद्दाख क्षेत्र में भारतीय ज़मीन पर अपने तम्बू गाड़ने में लगे हैं। चीन की यह आक्रामकता किसी भी सूरत बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। हाँग-काँग के मुद्दे पर चीन को घेरने का भारत के पास सुनहरा मौका है। इसके साथ ही ताइवान भी चीन की सबसे कमजोर नब्ज़ में से एक है। समय आ गया है कि भारत अब ताइवान के पक्ष में भी खुलकर बोले। चीन की भारत-विरोधी आक्रामकता का जवाब अब सिर्फ इसी तरीके से दिया जा सकता है। भारत सरकार को यह मौका किसी भी हाल में नहीं गंवाना चाहिए।