ताइवान की राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण में शामिल हुए BJP के दो सांसद, क्लियर है अब भारत चीन के साथ नहीं है

चीन को उसकी जगह दिखाने का यही सही समय है!

ताइवान

ताइवान को लेकर भारत का रुख धीरे-धीरे साफ होता जा रहा है, जिसने चीन की पीड़ा को बढ़ा दिया है। दरअसल, दो दिन पहले 21 मई को त्साई इंग-वेन ने ताइवान के राष्ट्रपति पद की दूसरी बार शपथ ली थी। इसमें सबसे रोचक बात यह थी कि इस शपथ ग्रहण समारोह में भारत की सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो सांसदों ने भी हिस्सा लिया। BJP सांसद मीनाक्षी लेखी और राहुल कस्वान ने video conference के जरिये इस समारोह में हिस्सा लिया और साथ ही Taiwan की राष्ट्रपति के समर्थन में एक बयान भी जारी किया। हालांकि, इसपर चीन ने अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है और भारत से चीन के लोगों की भावनाओं का आदर करने की अपील की है।

इस शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के बाद लेखी और कस्वान ने अपने साझे संदेश में कहा कि भारत और ताइवान लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते हैं। संदेश में दोनों नेताओं ने कहा, भारत और ताइवान, दोनों लोकतांत्रिक देश हैं और स्वतंत्रता एवं मानवाधिकारों के सम्मान के साझे मूल्यों से बंधे हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत और ताइवान ने द्विपक्षीय रिश्तों में व्यापार, निवेश और लोगों के आपसी आदान-प्रदान जैसे क्षेत्रों में काफी विस्तार दिया है”। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि BJP नेताओं ने ताइवान को एक लोकतान्त्रिक देश कहकर संबोधित किया, जो यह दर्शाता है कि BJP के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जल्द ही ताइवान को लेकर अपना आधिकारिक रुख स्पष्ट कर सकती है जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में Taiwan की स्वीकृति को और ज़्यादा मजबूत करेगा।

हालांकि, BJP के इस कदम से चीन को बड़ी पीड़ा पहुंची है। चीन ने BJP के दोनों नेताओं की निंदा करते हुए कहा “हमें उम्मीद और यकीन है कि दोनों नेता ताइवान की आजादी के लिए पृथकतावादी गतिविधियों का चीन की जनता की ओर से विरोध किए जाने और राष्ट्रीय एकीकरण की मूल भावना का सम्मान करेंगे।”

गौरतलब है कि 2016 में जब त्साई इंग-वेन ने ताइवान के राष्ट्रपति पद की पहली बार शपथ ली थी तब भी मोदी सरकार को निमंत्रण मिला था परन्तु उस समय मोदी सरकार ने शपथ में न जाने का फैसला लिया था। इस बार मोदी सरकार ने निमंत्रण को स्वीकार कर स्पष्ट संकेत दिए हैं। बता दें कि पिछले काफी समय से केंद्र सरकार यह संकेत दे रही है कि केंद्र सरकार ताइवान को लेकर अपने आधिकारिक रुख में बड़ा बदलाव कर सकती है। हाल ही में भारत ने अवसरवादी चीनी निवेश से देश की कंपनियों को बचाने के लिए FDI संबन्धित नियमों में जो बदलाव किए थे, और चीन पर जो प्रतिबंध लगाए गए थे, उनसे Taiwan को बाहर रखा गया था। ऐसा करके भारत ने पहली बार वन चाइना पॉलिसी को कूड़े के ढेर में फेंका था।

इस बार ताइवान को मान्यता देकर भारत चीन के गाल पर एक करार कूटनीतिक तमाचा जड़ सकता है। चीन पहले ही भारत की सीमा पर तनाव बढ़ाकर भारत को आंखें दिखा रहा है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ना सिर्फ भारत के राज्य सिक्किम में घुसपैठ कर रहा है, बल्कि चीन के हजारों सैनिक लद्दाख क्षेत्र में भारतीय ज़मीन पर अपने तम्बू गाड़ने में लगे हैं। चीन की यह आक्रामकता किसी भी सूरत बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। ताइवान को लेकर चीन बेहद संवेदनशील है। ऐसे में भारत को यह मौका बिलकुल भी नहीं गंवाना चाहिए।

वर्ष 2014 में जब भारत में मोदी सरकार बनी थी, तो ताइवान को यह आशा हुई थी कि अब भारत के साथ उसके द्विपक्षीय संबंध मजबूत हो सकेंगे। Taiwan ने भारत में मोदी सरकार बनने का स्वागत किया था। उसके बाद मोदी सरकार ने भी वर्ष 2017 में दिसंबर महीने में ताइवान की सरकार के साथ एक memorandum पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे चीन पूरी तरह बौखला गया था। अब चीन की बौखलाहट को बढ़ाने का समय आ गया है। जिस प्रकार पिछले सरकारों के समय भारत सरकार चीन के खिलाफ कोई एक्शन लेने से घबराती थी, उस मानसिकता को अब भुला देने का समय आ गया है। चीन को उसकी जगह दिखाने का यही सही समय है।

 

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