रेलवे पर श्रमिकों का अपमान करने का आरोप लगाने वाले बुद्धिजीवी इन facts को पढ़कर भाग जाएंगे

ये बुद्धिजीवी हैं या बुद्धूजीवी?

रेलवे

भारत में बढ़ते कोरोना के प्रकोप के कारण 24 मार्च को देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी थी। सबसे पहले देश में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन घोषित किया गया था, लेकिन बाद में जब इसे और आगे बढ़ाया गया, तो देश के सामने एक बड़ी समस्या पेश हुई। अपना राज्य छोड़कर दूसरे राज्यों में रह रहे प्रवासी मजदूरों के सामने रहन-सहन से लेकर खाने-पीने की व्यवस्था करना सबसे बड़ी चुनौती बनकर आया।

केंद्र सरकार ने तब स्पष्ट संदेश जारी कर कहा था कि सभी राज्यों सरकारों को अपने यहाँ फंसे प्रवासी मजदूरों के खाने-पीने और रहने की व्यवस्था का पूरा प्रबंध करना होगा, लेकिन कुछ राज्य सरकारें ऐसा करने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई। इसके कारण देश में प्रवासी मजदूर संकट और गहरा गया। ऐसे में 1 मई को देश की जीवनरेखा मानी जाने वाली भारतीय रेलवे ने इन मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा, और भारतीय रेलवे अब भी इस मिशन में जी-तोड़ मेहनत के साथ जुटी हुई है। 1 मई को केंद्र सरकार ने कहा कि देश में अंतर्राजीय रेलवे सुविधा को सभी श्रमिकों को उपलब्ध कराया जाएगा, और सरकार ने अगले ही दिन यानि 2 मई को इसके संबंध में दिशा निर्देश भी जारी कर दिये। तब केंद्र सरकार ने नियम बनाए थे कि ट्रेन चलाने से पहले originating state और receiving state, दोनों को अपनी मंजूरी देनी होगी। तब केंद्र सरकार ने यह भी कहा था कि ये श्रमिक स्पेशल trains सिर्फ receiving stations पर ही रुकेंगी और इन्हें बीच में रुकने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

रेलवे ने अपनी ओर से उन श्रमिकों के लिए 1 वक्त के खाने-पीने का प्रबंध करने का भी फैसला लिया, जिनका सफर 12 घंटों से ज़्यादा का बैठ रहा था। हालांकि, कुछ राज्यों की नाकामी के कारण बाद में केंद्र सरकार को अपने नियमों में कुछ बदलाव भी करने पड़े। जब पश्चिम बंगाल जैसे राज्य अपने श्रमिकों को वापस न लेने पर अड़े रहे, तो केंद्र को नियम में बदलाव करना पड़ा और receiving state की मंजूरी प्राप्त करने को गैर-जरूरी करार दिया गया। इसी के बाद संभव हो पाया कि रेलवे बंगाल में भी श्रमिकों को भेज पाई।

आपको जानकर खुशी होगी कि 1 मई से लेकर 26 मई तक भारतीय रेलवे 3500 से ज़्यादा श्रमिक ट्रेनों को चला चुका है और इनमें लगभग 47 लाख श्रमिकों को उनके गतन्व्य तक पहुंचाया जा चुका है। 19 मई के बाद से तो रेलवे हर दिन लगभग 200 ट्रेनों को operate कर रही है। अभी जितने भी राज्य अपने यहाँ ट्रेनों की मांग कर रहे हैं, सब की मांगों को पूरा किया जा रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं, जो राज्य अपने राज्यों में श्रमिकों की internal movement के लिए भी trains मांग रहे हैं, उन्हें भी सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। हालांकि, रेलवे को अपने operation को पूरा करने में कई बड़ी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ रहा है। चूंकि, अधिकतर श्रमिक ट्रेनें, बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों को रवाना की गयी, तो इन राज्यों के रूट्स पर ट्रेनों का भारी जाम लगने की स्थिति उत्पन्न हो गयी।

उत्तर प्रदेश प्रशासन और रेलवे प्रशासन ने मिलकर गोरखपुर, जौनपुर, कटिहार और दानापुर जैसे stations पर भीड़ खत्म करने की भरपूर कोशिश भी की, लेकिन उसके बावजूद कई ट्रेनें late हो गयी। रेलवे ने कुछ ट्रेनों को बड़े रूट से भेजने का फैसला लिया, ताकि जाम कम हो सके। इसके अलावा चूंकि, कुछ trains late हो गयी थी, तो रेलवे ने श्रमिकों के लिए 1 वक्त के खाने-पीने के प्रबंध के अलावा भी श्रमिकों को अलग से food packets दिये। ट्रेन रूट्स पर जाम लगने का एक और कारण यह भी था कि उन रूट्स पर बड़ी संख्या में कोयला ढोने वाली, राशन, सीमेंट ढोने वाली trains भी operate करती हैं। रेलवे को इन्हें भी समय पर चलाये रखना था। कुछ जगह चेन पुल्लिंग जैसी घटनाएँ भी देखने को मिली, जिसके कारण ना सिर्फ वो ट्रेन लेट हुई बल्कि उनके बाद आने वाली trains भी लेट हो गयी।

आज कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया जा रहा है कि रेलवे ने इन श्रमिकों के लिए सही इंतजाम नहीं किया। जबकि, रेलवे की इन चुनौतियों को पूरी तरह नकार दिया गया। इसके अलावा रेलवे के time table को खराब करने में कुछ राज्यों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। पश्चिम बंगाल ने जहां अपने श्रमिकों को वापस लेने की ही मंजूरी नहीं दी, तो वहीं महाराष्ट्र समय रहते अपने श्रमिकों को ही stations पर नहीं पहुंचा पाया, जिसकी वजह से कई ट्रेनों को रद्द करना पड़ा। श्रमिकों को जब मदद की आवश्यकता थी, तो रेलवे ने ही आगे आकर उन्हें उनके घर पहुंचाने का बीड़ा उठाया, और रेलवे ने इस दौरान लॉकडाउन के सभी नियमों का पालन किया है। रेलवे पर बद-इंतजामी का आरोप लगाने वालों को इन तथ्यों पर भी नज़र डालनी चाहिए। इस समय जहां पर रेलवे की प्रशंसा की जानी चाहिए, ऐसे वक्त में झूठी और प्रोपेगैंडावादी खबरों का चलाया जाना बेहद दुखद है।

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