एक ओर जहां देशभर में लोग वुहान वायरस से बचने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं, तो वहीं बंगाल में हिंदू समुदाय को इस महामारी से बचने के अलावा दंगों से भी जूझना पड़ रहा है। रविवार से ही बंगाल के हुगली जिले में असामाजिक तत्वों आतंक मचा रखा है, और वहां हर हिन्दू दुकान और घर को जलाया जा रहा है।
हुगली से भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी के अनुसार अजमेर से आए कट्टरपंथियों के आगमन के बाद से ही तेलीनीपाड़ा में कट्टरपंथी धड़ल्ले से लॉक डाउन का उल्लंघन करने लगें। जब स्थानीय हिन्दुओं ने विरोध किया, तो ना सिर्फ उन पर हमला हुए, बल्कि उनके घर को जलाने की होड़ सी मच गई।
पश्चिम बंगाल के हुगली के टेलनिपारा में हिंदुओं पर हमले शुरू हो गए। हिंसा लगातार बढ़ रही है, पर ममता सरकार और प्रशासन आंख मूंदकर बैठा है। हुगली की सांसद सुश्री @me_locket का पुलिस कमिश्नर फोन तक नहीं उठा रहे।
ये हमले पूरी तरह राजनीति से प्रेरित हैं। pic.twitter.com/CZo3aVlzpm
— Kailash Vijayvargiya (Modi Ka Parivar) (@KailashOnline) May 12, 2020
Just one video of what is gong on in Telinipara at this moment. Accusations against police for wilfully allowing local gangs to carry out violence and looting. The @MamataOfficial administration is predictably silent pic.twitter.com/sVyeiP9ePk
— Swapan Dasgupta (@swapan55) May 12, 2020
I tried to call CP of Chandannagar police Dr. Humayun Kabir many times, but he didn’t answer my call. State administration is mute spectator and Telenipara is burning. #SaveBengal pic.twitter.com/rZo9ahTove
— Locket Chatterjee (Modi Ka Parivar) (@me_locket) May 12, 2020
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लॉकेट चटर्जी के अनुसार कट्टरपंथी मुसलमान जानबूझकर बैरिकेड तोड़ रहे थे, मानो उन्हें पूरे क्षेत्र में वुहान वायरस फैलाना हो। तब से तेलीनीपाड़ा जंग का मैदान बन चुका है। पुलिस भी तब आई जब हिंसक भीड़ तांडव मचाकर निकल चुकी थी। पुलिस वास्तव में इस मामले में कितनी गंभीर थी, ये आप चंदननगर के पुलिस कमिश्नर के बयान से समझ सकते हैं। कमिश्नर हुमायूं कबीर के अनुसार, “कुछ लोगों को कोरोना के नाम से संबोधित किया गया। वहीं से शुरू हुआ सब कुछ। एक तीखी बहस के बाद दो गुटों में लड़ाई हो गई।” मतलब साफ है, जिसपर अत्याचार हुआ, वहीं दोषी भी है।
फिलहाल के लिए क्षेत्र में धारा 144 लगाई गई है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब बंगाल में हिन्दुओं के विरुद्ध इतनी भीषण हिंसा हुई हो और पूरा प्रशासन कानों में तेल डालकर बैठा हो।
ममता बनर्जी हमेशा से तुष्टिकरण की राजनीति करती आई हैं और हमेशा ही उन्होंने राज्य में बहुसंख्यकों के मौलिक अधिकारों का हनन किया है। अपने हिन्दू-विरोध में उन्होंने हिन्दू धर्म से जुड़े प्रतिकों और त्योहारों पर हमला करने को ही अपनी राजनीति का अहम हिस्सा बना डाला।
इसके लिए उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव किए ताकि अपने कथित सेकुलरिज्म के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके। उन्होंने पाठ्यक्रम से हिन्दी शब्दों को हटाकर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शब्दों को शामिल किया। उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2017 में उन्होंने कक्षा सातवीं की कक्षा में इंद्रधनुष के लिए बंगाली शब्द ‘रामधेनु’ को बदलकर ‘रोंगधेनु’ कर दिया था ताकि वह ज्यादा धर्मनिरपेक्ष लगे। इसके अलावा उन्होंने पाठ्यपुस्तकों में आकाशी शब्द को बदलकर आसमानी कर दिया था। हद तो तब हो गयी जब उन्होंने हिन्दुओ के मुख्य त्योहार दुर्गा पूजो का नाम बदलकर आधिकारिक तौर पर शरोद उत्सव कर दिया।
उनके हिन्दी और हिन्दू विरोध का तो यह सिर्फ एक उदाहरण मात्र था। लगातार हिंदुओं के लिए मुश्किलें पैदा करने वाली ममता बनर्जी ने वर्ष 2017 में तारकेश्वर विकास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में फिरहाद हाकिम की नियुक्ति की थी उनके इस फैसले ने विवाद का रूप ले लिया था।
साल 2016 में ममता ने इसी तरह का आदेश दिया था और दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी थी जबकि विजयदशमी 11 अक्टूबर और मुहर्रम 12 तारीख को पड़ा था। तारीखें अलग थीं फिर भी ममता बनर्जी ने तुगलकी फरमान सुना दिया था। हालांकि, तब कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने राज्य सरकार के आदेश को ख़ारिज कर दिया था और इसे तुष्टिकरण करार दिया था।
ममता सरकार ने हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने पर भी रोक लगा दी थी और जब 11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के लिए जुलूस निकाला गया तो पुलिस द्वारा उनपर लाठीचार्ज करवाया गया था। धूलागढ़ दंगे में जिस तरह से हिंदुओं पर अत्याचार किया गया उन्हें मारा पीटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया तब भी ममता बनर्जी ने हिंदुओं के बचाव के लिए कुछ नहीं किया था साथ ही ये तक कह दिया था कि ये कोई घटना नहीं थी। इतना सब कुछ होने के बावजूद मीडिया का एक पूरा धड़ा खामोश है, और अपने रिपोर्ट में कहीं भी उसने कट्टरपंथी मुसलमानों का उल्लेख तक नहीं किया है। अब कल्पना कीजिए यदि ये दंगा हिन्दुओं ने शुरू किया होता, तो भी क्या ये ऐसे ही मौन रहते?
आज वो कहती हैं कि उन्होंने अपने राज्य में भेदभाव की राजनीति कभी नहीं की हमेशा शांति और एकता को बढ़ावा दिया है। ममता बनर्जी के अंदर हिंदुओं के लिए सिर्फ नफरत रही है और समय समय पर उनकी राजनीति से ये नफरत सामने भी आई है। बंगाल में हिन्दू समुदाय अब रामभरोसे है, क्योंकि ममता बनर्जी ने पहले ही उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है।