‘इनका सोना हड़प लो’, हिंदू मंदिरों को लूटने का षणयंत्र चल रहा है, जबकि अन्य धार्मिक स्थलों पर चुप्पी

सेक्युलर भारत में सिर्फ हिंदू धर्मस्थलों पर लूट होते हैं

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ऐसा लगता है कि भारत में सेक्युलरिजम की परिभाषा सिर्फ हिंदुओं के लिए ही है। जिसे देखो सभी हिंदुओं पर ही सवाल उठा देते हैं। पिछले कुछ दिनों से ये सेक्युलर ब्रिगेड देश के मंदिरों के खज़ानों और सोने कर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं। इसी कड़ी में फ़िल्मकर सुभाष घई ने बयान दिया है कि सभी मंदिरों को सरकार को फंड डोनेट नहीं करना चाहिए? सिर्फ सुभाष घई ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चौहाण ने तो मंदिरों के सोने पर लोन लेने की बात कह दी।

दरअसल, भारतीय मंदिरों में वर्षों से जमा धन और सोने पर हमेशा से हिंदू विरोधी लुटेरों की नजर रही है। मंदिरों के पास जमा सोना के बारे में सुभाष घई ने ट्वीट किया-

क्‍या हमारे भगवान के मंदिरों के पास पहुंचने का यह सही समय नहीं है? बड़े गोल्‍ड रिजर्व वाले सभी संपन्न मंदिरों को अब सरकार से सामने सरेंडर करना चाहिए और 90% गोल्‍ड को लोगों की मदद के लिए डोनेट करना चाहिए। उन्‍हें यह सब सिर्फ भगवान के ही नाम पर लोगों से मिला है ना?’

हालांकि, बाद में जब लोगों ने खूब खरीखोटी सुनाई तो वे ट्वीट डिलीट कर भाग खड़े हुए। इससे पहले 13 मई को पृथ्वीराज चव्हाण ने एक ट्वीट कर सरकार से अपील की थी कि वो देश के सभी धार्मिक ट्रस्टों के पास पड़े सोने का तुरंत इस्तेमाल करें।

 

कांग्रेस और उसके इकोसिस्टम का पुराना सपना रहा है कि कैसे भी देश के मंदिरों में जमा सोने-चांदी को निकाला जाए। अभी कोरोना का बहाना लेकर तुरंत विवाद खड़ा किया जा रहा है लेकिन आश्चर्य की बात है कि किसी ने भी मस्जिद या चर्च से किसी भी प्रकार की मांग नहीं की है।

मंदिरों का पुराना इतिहास रहा है कि चाहे कैसी भी विपत्ति आए, सबसे धनी मंदिर से लेकर सामान्य मंदिर तक दान में मिलने वाले धन सरकार को देते हैं। इस बार भी कोरोना के समय में कई भारतीय मंदिरों ने PMCARE में कई करोड़ धन जमा करा चुके हैं लेकिन किसी भी मस्जिद या चर्च से यह दान की खबर नहीं आई है। परंतु फिर सवाल मंदिरों से ही किया जा रहा है। अभी तक अगर आंकड़ों को देखे तो मंदिरों ने कोरोना आपदा में कुछ इस प्रकार से दान किया है. जिसमें राज्य सरकार और  प्रधानमंत्री राहत कोष के खातों में पैसा भेजा गया है.

श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के सभी कर्मचारियों ने अपने एक दिन का वेतन जम्मू कश्मीर राहत कोष में देने का फैसला किया था। श्री माता वैष्णो देवी के सीईओ रमेश कुमार के मुताबिक प्रदेश में कोरोना वायरस की महामारी को रोकने और इससे लड़ने के इन्तेज़ामों में अपना योगदान देते हुए श्राइन बोर्ड के नॉन गज़ेटेड स्टाफ ने अपने एक दिन का वेतन जबकि गज़ेटेड अधिकारियों ने अपने 2 दिनों का वेतन जम्मू कश्मीर राहत कोष में देने का फैसला किया है।

ABP की रिपोर्ट के अनुसार, श्राइन बोर्ड में 600 बिस्तरों को क्षमता वाले आशीर्वाद काम्प्लेक्स को जिला प्रशासन के हवाले कर दिया है. यह काम्प्लेक्स श्राइन बोर्ड ने क्वारंटाइन केंद्र के लिए निर्धारित किया है जिसमे मुफ्त बोर्डिंग और लॉजिंग की सुविधा भी उपलब्ध है।

छत्तीसगढ़ में महामाया मंदिर ट्रस्ट ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 5 लाख 11 हजार दान किए हैं। वहीं श्री सोमनाथ ट्रस्ट ने गुजरात के मुख्यमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ का योगदान दिया है। अंबाजी मंदिर ने गुजरात के मुख्यमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ और एक लाख दान किए हैं। इसके साथ ही गुजरात के सात स्वामीनारायण मंदिरों ने कुल 1.88 करोड़ का योगदान दिया। इसके अलावा, भोजन वितरित किया जा रहा है और गुजरात के वडताल स्वामीनारायण मंदिरों द्वारा संचालित विभिन्न मंदिरों में quarantine के लिए पांच सौ कमरे उपलब्ध कराए गए हैं।

इसी तरह से सैकड़ो मंदिरों ने अपने अपने क्षमता अनुसार सरकार और राज्य सरकारों की मदद की है जिससे इस महामारी को हराया जा सके। कई मंदिर तो गरीब परिवारों को लगातार भोजन करा रहे हैं।

यह सब तब हो रहा है जब मंदिरों का नियंत्रण राज्य सरकारों के हाथ में है। अभी तक किसी भी चर्च या मस्जिद से दान की खबर नहीं आई है। बता दें कि भारत में केंद्र सरकार के बाद सबसे अधिक गैर-कृषि भूमि के मालिक कैथोलिक चर्च हैं। यह हैरान कर देने वाली बात है। सिर्फ यही नहीं बल्कि शिया और सुन्नी दोनों वक्फ बोर्ड भी भारत के सबसे बड़े भूस्वामियों में से एक हैं।

सुप्रीम कोर्ट में दायर एक PIL ने दावा किया था कि पश्चिम बंगाल राज्य में शिया वक्फ की संपत्तियों का मूल्य लगभग 5,424 करोड़ रुपये है, जबकि इसी राज्य में सुन्नी वक्फ की संपत्ति 13,126 करोड़ रुपये है। इसी तरह कर्नाटक में, शिया वक्फ बोर्ड की संपत्ति लगभग 688 करोड़, जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास लगभग 99,311 करोड़ रुपये है। इसी तरह कई राज्यों में संपत्ति मौजूद है। इनमे से किसी का भी नियंत्रण सरकार के हाथों में नहीं है न मस्जिद का और नहीं चर्च का।

इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में सेक्युलरिजम के नाम पर सिर्फ मंदिरों को ही सरकार अपने नियंत्रण रखती है और साथ ही उसका इस्तेमाल भी करती है। लेकिन अन्य किसी भी धर्म के धार्मिक स्थलों का सरकार हाथ तक नहीं लगाती।

लेकिन फिर भी अशोक चौहाण और सुभाष घई जैसे लोग मंदिरों में मिलने वाले दान पर ही बयान देते हैं। इनमें से कोई भी मस्जिद या चर्च से दान देने की बात नहीं कर सकता है क्योंकि हिंदुओं पर भारत में हमले करना आसान है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सरकार के पास पर्याप्त संसाधन मौजूद है और साथ ही जिसे दान करने की इच्छा हो रही है वो PMCARE में दान दे रहा है।

सरकार ने अपने स्तर से इस लड़ाई में किसी भी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी है। कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री ने देश को 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी जिसमे छोटे किसान से लेकर बड़ी कंपनियों तक के लिए था।

ऐसे में कांग्रेस के पूरे इकोसिस्टम के पास कोई भी मुद्दा नहीं बचा तो वे अब मंदिरों को मिले दान पर राजनीति करने पर उतारू हो गए हैं जिससे उन्हें मंदिरों के सोने को लूटने का मौका मिले।

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