आज से लगभग पांच वर्ष पूर्व, जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यूके का दौरा किया था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा था कि यह यूके और चीन के रिश्तों का ‘स्वर्णिम युग’ सिद्ध होगा। परंतु 5 वर्ष बाद इसका ठीक उल्टा हुआ। यूके ना केवल चीन के वर्तमान प्रशासन से अपने सारे नाते तोड़ने को तैयार है, अपितु यूके के वर्तमान प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की तरह अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को यह विश्वास दिलाया कि अमेरिका जो भी चीन के विरुद्ध कदम उठाएगा, ब्रिटेन हमेशा उसके साथ रहेगा।
परन्तु यह दरार कैसे आई? आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो चीन कुछ वर्षों पहले तक यूके का जिगरी दोस्त था, आज उसके सबसे कट्टर शत्रुओं में से एक बन गया है? इसके लिए हमें जाना होगा कुछ वर्ष पूर्व, जब शी जिनपिंग यूके के दौरे पर आए थे, और तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन उनकी आवभगत में लगे हुए थे। तब तत्कालीन वित्त मंत्री जॉर्ज ओसबोर्न की नीतियों की कृपा से ब्रिटेन ने चीन के लिए अपने देश में निवेश के लिए अधिकतर द्वार खोल दिए थे।
ब्रिटेन पहला ऐसा देश बना, जिसने चीन के Huawei द्वारा प्रस्तावित 5G नेटवर्क का स्वागत किया, और इसी के साथ साथ व्यापार और निवेश के परिप्रेक्ष्य में संबंधों में भी काफी सुधार आया। इतना ही नहीं, चीन ने यूके को परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनवाने में भी काफी सहायता की, और कई बड़े रियल एस्टेट प्रॉपर्टी एवम् फुटबॉल क्लब भी खरीदे।
परन्तु नवंबर 2016 में सब कुछ पलट सा गया। अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर चर्चित उद्योगपति डोनाल्ड ट्रंप को जनता ने चुना। यूके वर्षों से अमेरिका का मित्र रहा है, ऐसे में ट्रंप को ब्रिटेन का चीन के प्रति यह अनावश्यक झुकाव बिल्कुल रास नहीं आया।
राष्ट्रपति बनने के साल भर के अंदर अंदर ही डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के विरुद्ध व्यापार के जरिए मोर्चा खोल दिया और यूरोप में यूके सहित अपने मित्र देशों को चीन के विरुद्ध कड़े कदम लेने का आवाहन दिया। परन्तु डेविड कैमरन की जगह लेने वाली थेरेसा मे को मानो चीनी निवेश कुछ ज़्यादा ही रास आ गया, जिसके कारण यूके चीन के और नजदीक आ गया।
परन्तु जन विरोध के कारण जुलाई 2019 में थेरेसा मे को सत्ता त्यागनी पड़ी, और उनकी जगह बोरिस जॉनसन ने ले ली । जॉनसन में ट्रंप को एक ऐसा साझेदार मिला जो ना केवल चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करता, अपितु चीन के Huawei की कमर तोड़ने में भी ट्रंप का साथ भी दिया।
रही सही कसर तो वुहान वायरस से आयी महामारी ने पूरी कर दी। ट्रंप ने चीन को इस महामारी को दुनिया से छुपाने के लिए सबक सिखाने की ठान ली है, और अपनी कूटनीति से ट्रंप ने ब्रिटेन को भी चीन के सबसे कट्टर शत्रुओं में से एक बना दिया है। चाहे यूके के 5G नेटवर्क से Huawei को हटाना हो, हांग कांग पर चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के विरुद्ध बयान जारी करना हो, हांग कांग का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में उठाना हो, या फिर 10 लोकतांत्रिक देशों को Huawei के विरुद्ध एकजुट करना हो, आप बस बोलते जाइए और यूके ने वो सब किया है।
यूं तो हांग कांग का प्रदर्शन पिछले वर्ष शुरू हुआ था, परन्तु ब्रिटेन ने तब अपना मुंह बंद रखा था, और एक भी बयान चीन के विरुद्ध नहीं जारी किया था। परन्तु इस बार यूके ने ये गलती नहीं दोहराई और चीन के विरुद्ध उसने मोर्चा खोल दिया।
चीन द्वारा प्रस्तावित सिक्योरिटी लॉ के विरुद्ध ब्रिटेन के आधिकारिक बयान के अनुसार, “ये नियम हांग कांग के लोगों की स्वायत्तता को खतरे में डालेगा और साथ ही यह हांग कांग की समृद्धि और उसकी स्वतंत्रता को भी नष्ट कर देगा।”
ब्रिटेन के विदेश सचिव डोमिनिक राब ने हांग कांग पर कहा, “हम चीन से अनुरोध करते हैं कि वे इस गलत निर्णय से पीछे हट जाएं।”
इसके अलावा राब ने यह भी घोषणा की चीन की मनमानी करने पर हांगकांग के ऐसे नागरिकों को नागरिकता की दी जायेगी जिनके पास ब्रिटिश नेशनल (ओवरसीज) पासपोर्ट है।
अभी कुछ दिनों पहले ही ट्रंप ने बोरिस जॉनसन को आश्वासन दिया था कि यूके और अमेरिका के बीच एक फ्री ट्रेड डील ज़रूर लागू होगी, परन्तु उसके लिए यूके को एक निश्चित निर्णय करना होगा। यदि उसे अमेरिका का साथ चाहिए, तो उसे चीन और Huawei के लिए अपने दरवाजे सदा के लिए बंद करने होंगें। इसके अलावा ब्रिटेन ने 9 अन्य देश – भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, जापान, इटली और अमेरिका को एकसाथ लाने का फैसला कर Huawei का विकल्प ढूंढने का निर्णय लिया है, जिससे चीनी सरकार को और ज़्यादा नुकसान होने वाला है।
पिछले एक हफ्ते में बोरिस जॉनसन की सरकार ने इस बात के कई संकेत दिए हैं कि चीन के विरुद्ध मोर्चा संभालने में ब्रिटेन हर स्थिति में अमेरिका के साथ है। ट्रंप ने जिस तरह से यूके को चीन के चंगुल में फंसने से बचा लिया है, वह निस्संदेह प्रशंसा के योग्य है।