ताइवान के मुद्दे पर सुपर पावर अमेरिका और चीन के बीच घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताइवान की सदस्यता के मुद्दे पर फिर अमेरिका ने WHO के साथ-साथ चीन को खरी-खरी सुनाई है। दरअसल, 18 मई को कोरोना के मुद्दे पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का 73वां सम्मेलन बुलाया गया था, लेकिन Taiwan की लाख कोशिशों के बावजूद उसे इस बैठक में हिस्सा लेने का न्यौता नहीं दिया गया। ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ़ वू ने इसपर दुख जताया और कहा कि दुनिया एक बार फिर चीन के दबाव में झुक गयी। ताइवान पिछले दो महीनों से इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए दुनियाभर के देशों में लोब्बिंग कर रहा था। ताइवान ने भारत समेत दुनिया के कई देशों को मेडिकल सप्लाई दान की है और वह लगातार इन देशों से समर्थन की मांग कर रहा है। हालांकि, अब जब हाल ही के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भी Taiwan को कोई न्यौता नहीं दिया गया, तो इससे Taiwan में काफी गुस्सा है।
Taiwan के विदेश मंत्रालय ने कल ट्वीट कर कहा “अब भी Taiwan को कोई न्यौता नहीं! दुनिया से मिल रहे समर्थन को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। दुनिया को दी गयी मेडिकल सहायता को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। ताइवान मॉडल को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। चीन की औच्छी राजनीति अब भी स्पष्ट और मजबूत है। लेकिन हम कभी हार नहीं मानेंगे, कभी नहीं, कभी नहीं!”
No #WHA73 invitation for #Taiwan. Overwhelming international support, ignored. Ongoing donations of essential #COVID19-combating items, ignored. Sharing the #TaiwanModel, ignored. But #China's political bleating, heard loud & clear. We'll never give in, never, never, never! JW
— 外交部 Ministry of Foreign Affairs, ROC (Taiwan) 🇹🇼 (@MOFA_Taiwan) May 18, 2020
इसके साथ ही ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ़ वू ने अपनी नाराजगी जाहीर करते हुए कहा “उनका देश डब्ल्यूएचए में हिस्सा नहीं लेगा लेकिन वह दूसरे देशों में चिकित्सा आपूर्ति जारी रखेगा और चीन के दोहरे व्यवहार का विरोध करेगा, जो इस तरह के मंचों से उसे दूर रखता है। वह इस बात पर सहमत हैं कि बैठक में उसकी भागीदारी को लेकर साल के अंत में चर्चा की जाएगी जब कोरोना पर थोड़ा नियंत्रण किया जा सकेगा”।
इस खबर के सामने आने के बाद अमेरिका ने भी WHO और चीन पर मौखिक हमला बोल दिया। अमेरिका के विदेश सचिक माइक पोम्पियो ने WHO के अध्यक्ष टेड्रोस पर आरोप लगाते हुए कहा “टेड्रोस के पास इस बैठक में Taiwan को बुलाने हेतु सभी कानूनी अधिकार हैं, लेकिन चीन के दबाव में आकर उसने ऐसा नहीं करना ही सही समझा। टेड्रोस की स्वतंत्रता के अभाव के कारण ताइवान दुनिया को अपना अनुभव साझा नहीं कर पा रहा है और इससे WHO की विश्वसनीयता और ज़्यादा कम होती जा रही है”।
बता दें कि कोरोना के समय में Taiwan को अति-सक्रिय कूटनीति के कारण काफी अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल हुआ है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अमेरिका जैसे देश खुलकर WHO में Taiwan की सदस्यता का समर्थन कर चुके हैं। यहाँ तक कि कुछ दिनों पहले भारत भी ताइवान को सांकेतिक समर्थन दे चुका है। दरअसल, हाल ही में भारत ने चीन के अवसरवादी निवेश को रोकने के लिए FDI के नियमों में जो बदलाव किए थे, भारत सरकार ने वे बदलाव Taiwan पर लागू नहीं किए थे। इस प्रकार भारत ने पहली बार ताइवान के लिए one china policy को कूड़े के ढेर में फेंक दिया था। ताइवान को मिल रहे इस अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के बाद Taiwan को उम्मीद जगी थी कि अब ताइवान को WHO में सीट मिल सकती है। इसी महीने ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ़ वू ने भारत सरकार से भी ताइवान का समर्थन करने का अनुरोध किया था। भारत को इसी महीने के अंत में WHO के decision making panel में बड़ा पद मिलने वाला है, जिसके बाद ताइवान को आशा है कि भारत WHO में Taiwan की सदस्यता का समर्थन करेगा। ताइवान के विदेश मंत्री हार मानने को तैयार नहीं है और उन्होंने उम्मीद भी नहीं छोड़ी है। उन्हें पूरा भरोसा है कि इस साल के अंत में WHO के सभी सदस्य देश दोबारा ताइवान की सदस्यता को लेकर विचार करेंगे।