राजीव गांधी फाउंडेशन: चीन के पैसों पर पलने वाली कांग्रेस से जुड़ी एक विवादित संस्था

ये चीन का खाते थे, चीन का ही गाते थे, सब एक्स्पोज हो गया!

सोनिया गांधी कांग्रेस मुस्लिम

PC: NDTV

भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच कांग्रेस लगातार चीन और CCP को बचाने के लिए पीएम मोदी पर तरह-तरह के आरोप लगा रही है। परंतु इसी बीच अब कांग्रेस का चीन के साथ गहरे सम्बन्धों का खुलासा हो रहा है।

 

कल एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि कांग्रेस चीन (CCP) के साथ वित्तीय संबंध भी रखती है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006 में चीनी दूतावास ने 10 लाख रुपये राजीव गांधी फाउंडेशन को दिया था।

टाइम्स नाउ के अनुसार भारत स्थित चीनी दूतावास राजीव गांधी फाउंडेशन को फंडिंग करता रहा है। खबर के अनुसार चीन की सरकार वर्ष 2005, 2006, 2007 और 2008 में राजीव गांधी फाउंडेशन में डोनेशन दे चुकी है। बता दें कि इस फाउंडेशन की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं, राहुल गांधी, डॉ मनमोहन सिंह, प्रियंका वाड्रा और पी चिदंबरम इसके ट्रस्टी हैं।

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CCP द्वारा यह दान खासकर राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपरेरी स्टडीज (RGICS), नई दिल्ली को दिये गए थे। यही नहीं वर्ष 2005-2006 में CCP ने RGICS को एक एक अज्ञात राशि भी दान की थी। राजीव गांधी फाउंडेशन की 2005-06 की वार्षिक रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि राजीव गांधी फाउंडेशन को People’s Republic of China के दूतावास से फंडिंग की गयी है। CCP ने वर्ष 2006-2007 में, राजीव गांधी फाउंडेशन को 90 लाख रुपये का दान दिया।

चीन का रुपया प्राप्त करने के बाद राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपरेरी स्टडीज ने वर्ष 2009-2010 में एक अध्ययन किया था, जिसमें भारत और चीन के बीच एक तत्काल ‘मुक्त व्यापार समझौते’ की वकालत की गई थी और यह कहा गया था कि यह समझौता भारत के लिए बहुत अधिक लाभदायक होगा। उससे पहले के वर्षों में भी इस फाउंडेशन ने भारत और चीन के बीच व्यापार और निवेश के मौके ढूँढने वाली संगोष्ठियों का आयोजन किया था। उस दौरान RGICS ने चीन से संबंधित दो प्रमुख परियोजनाएं / अध्ययन शुरू किए थे।

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यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि इस अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया था कि बेहतर आर्थिक स्थिति के कारण चीन ज्यादा फायदे में रहेगा। अगले कुछ वर्षो तक इसी तरह के अध्ययन के बाद रिपोर्ट आती रही और उनमें एफटीए की तरफदारी की जाती रही थी।

भारत और चीन के बीच एक free trade agreement का होना मतलब दोनों देशों के बीच की सीमाएं आयात और निर्यात के लिए अनिवार्य रूप से खोली जाएंगी, जिसमें न तो सरकार का हस्तक्षेप होता है और न ही कोई टैरिफ लगता। यानि आसान शब्दों में इस एग्रीमेंट के लागू होने पर भारत घटिया चीनी वस्तुओं के लिए एक डंपिंग ग्राउंड बन जाएगा, यही नहीं इसके साथ-साथ चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा भी बढ़ेगा।

यानि कांग्रेस देश को चीन के हाथों बेचने का पूरा प्रबंध कर रही थी।

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इस तरह से चीन की तरफदारी करने और इस संगठन का चीन से रूपाया प्राप्त करना कोई संयोग नहीं है। एक तरफ भारत चीन के बीच व्यापार असंतुलन बढ़ता रहा वहीं, फाउंडेशन का थिंक टैंक एफटीए के पक्ष में दलीलें देता रहा। 2003-04 के मुकाबले 2013-14 में व्यापार असंतुलन 33 गुना बढ़ चुका था। जब जब यूपीए 1 सत्ता में आई थी, तब चीन के साथ व्यापार घाटा 1.1 से 1.5 बिलियन अमरीकी डॉलर था। 2014 में जब वे सत्ता से बाहर हुए तब तक घाटा 36 अरब डॉलर के बराबर था। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि UPA 2 में ही RGICS ने एक मुक्त व्यापार समझौते की वकालत शुरू की थी। यही नहीं एक और घटना है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। जब कांग्रेस और चीन के बीच वर्ष 2008 में MOU पर हस्ताक्षर हुआ था उसके बाद से ही भारत और चीन का व्यापार घाटा आसमान छूने लगा था।

इस मामले के खुलासे के बाद अब एक और खुलासा हुआ है कि कांग्रेस की सरकार ने PMNRF यानि प्रधानमंत्री राहत कोष के रुपये भी राजीव गांधी फाउंडेशन को दान कर दिया था।

परंतु यहाँ मुख्य सवाल कांग्रेस का इस फाउंडेशन के माध्यम से चीन के साथ सम्बन्धों का है जिसके लिए देश की अर्थव्यवस्था को दांव पर लगा दिया गया था। अब जैसे ही भारत का चीन के साथ बॉर्डर तनाव बढ़ा है तब से कांग्रेस पार्टी ने चीन पर हमला करने के बजाए अपने देश की सरकार पर ही हमला किया है। यह कांग्रेस की CCP के लिए वफादारी दिखाता है कि उसके लिए देश नहीं, बल्कि CCP के साथ हुआ समझौता ज्यादा महत्वपूर्ण है। अब एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी का भारत विरोधी तत्वों के साथ साँठगांठ का खुलासा हुआ है। आज फिर से जनता को यह तय करना है कि इस पार्टी को क्या सबक सिखाया जाए।

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