केपी ओली सठिया गए हैं – कह रहे हैं, भारत नेपाल में सरकार गिराने की कोशिश कर रहा

ओली

भारत के साथ जारी सीमा विवाद के बीच नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने रविवार को दावा किया उन्हें पद से हटाने के लिए साजिश रची जा रही है। भारत-नेपाल के रिश्तों में दरार डालने वाले केपी ओली को अब डर लगने लगा है। उन्होंने दावा किया है कि भारत उनका तख्तापलट करना चाहता है। ऐसा लगता है कि ओली अपनी सभी गलतियों का ठीकरा भारत के सिर ही फोड़ना चाहते हैं। कुछ दिनों पहले उन्होंने कोरोना के लिए भी भारत को ही जिम्मेदार ठहराया था।

दरअसल, भारत के साथ रिश्तों को खराब कर चीन की गोद में बैठने वाले केपी ओली के लगातार जनता विरोधी कदमों के कारण नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में उनके खिलाफ विरोध बढ़ चुका है और उनसे इस्तीफे ही मांग की जा रही है। इसी डर से वो कम्युनिस्ट पार्टी की स्थायी समिति की बैठक के अंतिम दिन आए ही नहीं थे।

अब अपनी ही पार्टी में विरोध का सामना कर रहे ओली ने रविवार को भारत पर आरोप लगाते हुए कहा कि, “भारतीय जमीन को नेपाली नक्शे में दिखाने वाले संविधान संशोधन के बाद से उनके खिलाफ साजिशें रची जा रही हैं। मुझे पद से हटाने के लिए खुली दौड़ हो रही है।“ उन्होंने कहा कि नई दिल्ली की मीडिया में होने वाली बौद्धिक बहस, काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास की सक्रियता और होटलों में हो रही गतिविधियां दिखा रही हैं कि भारत का पूरा संयंत्र लगा हुआ है।

ओली का यह बयान यूं ही नहीं है, उनके इस बयान से उनका डर स्पष्ट नजर आ रहा है। पहले तो चीन का साथ मिलने पर भारत के हिस्से को अपने नक्शे में दिखाया और जब उनकी अपनी ही पार्टी में उनके खिलाफ विरोध बढ़ा तो अब विक्टिम कार्ड खेलते हुए नजर आ रहे हैं।

ओली ने फिर से भारत और नेपाल के रिश्तों में चीन को बीच में लाते हुए एक और गंभीर आरोप लगाया और कहा कि, “इससे पहले जब मैंनेअपने पिछले कार्यकाल में चीन के साथ ट्रेड‌ एंड ट्रांजिट समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, तो उनकी सरकार गिरा दी गई थी, लेकिन अब हमारे पास बहुमत है।“

नेपाल में फिर से राष्ट्रवाद का झूठा प्रदर्शन करते हुए उन्होंने कहा कि , आपने सुना होगा कि प्रधानमंत्री सप्ताह या 15 दिन में बदल रहे हैं। मैं प्रधानमंत्री पद पर बैठे रहना नहीं चाहता, लेकिन अगर मैं इस समय हटता हूं या मेरी सरकार गिरा दी जाती है, तो नेपाल के पक्ष में बोलने के लिए फिर कोई व्यक्ति हिम्मत नहीं करेगा। आज के लिए नहीं बल्कि कल के लिए, अपने लिए नहीं बल्कि देश के लिए भी इस सरकार का टिके रहना जरूरी है

प्रधानमंत्री ओली और सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ समेत उनके प्रतिद्वंदियों के बीच स्थायी समिति की बैठक में मतभेद खुल कर सामने आ गए थे। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रचंड को चीन का समर्थक ही माना जाता है लेकिन फिर भी उन्होंने ओली का विरोध किया है।

शुक्रवार को स्थायी समिति की बैठक के आखिरी दिन भारत-नेपाल सीमा विवाद को लेकर चर्चा की गई थी जिसमें स्थायी समिति के सभी सदस्यों ने भारत के साथ कूटनीतिक वार्ता में विफल रहने को लेकर ओली प्रशासन की आलोचना की थी। जिस पार्टी ने भारत के क्षेत्र को नेपाल में मिलाने का समर्थन किया था उसी पार्टी ने आरोप लगाया कि पीएम ओली के कार्यकाल में भारत-नेपाल के संबंध सबसे ज्यादा निचले स्तर पर पहुंच चुके हैं।

ओली को पता है कि 44 सदस्यी स्थायी समिति में केवल 15 सदस्य ही उनके पक्ष में हैं। जिससे अगर वह बैठक में शामिल होते हैं तो उनपर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ जाता। बैठक के पहले दिन ही ओली और प्रचंड के बीच तीखी नोंकझोक देखने को मिली थी। प्रचंड केपी ओली के बीच कोरोना और अमेरिका से मिलने वाली मदद के मुद्दे पर भी विवाद देखने को मिला था।

ऐसे में ओली का भारत पर सरकार गिराने का आरोप निरधार ही नहीं, बल्कि हास्यास्पद भी है क्योंकि पुष्प कमल दहल प्रचंड ने भी भारत के क्षेत्रों को नेपाल के नक्शे में दिखाने का समर्थन किया था। यही नहीं प्रचंड ओली से भी अधिक भारत विरोधी हैं आर ये प्रचंड ही थे जिन्होंने 1970 के दशक में नेपाल में हिंसक कम्युनिस्ट movement शुरू किया था और भारत का ही इस्तेमाल कर मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया। उसके बाद जब वे पीएम बने तो कई भारत विरोधी कार्य किए जिसमें से पशुपतिनाथ मंदिर के भारतीय पुजारी को हटा कर नेपाली पुजारी रखने की भी कोशिश थी।

यानि देखा जाए तो नेपाल के दोनों ही प्रतिद्वंदी भारत विरोध करने में कहीं से भी पीछे नहीं हैं। अभी ओली जितना भी चाहे, भारत को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं लेकिन एक सच यह भी है भारत हस्तक्षेप नहीं करना चाहता है।

 

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