पिछले वर्ष 2019 के आम चुनावों के बाद से आज भारत में कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं और देश एक लंबी छलांग लगा चुका है। संविधान से 370 को निरस्त किया जाना, जम्मू-कश्मीर का दो केंद्र शासित प्रदेशों में बंटना, देश में CAA जैसे महत्वपूर्ण संशोधन होना, असम के बोड़ो मामले का हल होना और अयोध्या का 450 वर्ष पुराने मामलों का हल होने के बाद मंदिर बनवाने का काम शुरू होना।
इन सभी मुद्दों को देखें तो ये कई वर्षों से लटके पड़े थे जिसे कई दशकों पहले ही सुलझा लिया जाना चाहिए था। अगर ध्यान से देखा जाए तो मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में सांस्कृतिक सुधार करने और पुराने कई वर्षों से लटके मामलों को सुलझाने पर अधिक ज़ोर दिया। अब देश को एक सूत्र में बांधने के बाद, सरकार ने आर्थिक सुधारों पर अपना फोकस कर दिया है।
दरअसल, आर्थिक सुधारों को जल्द से जल्द लागू करवाने में कोरोना वायरस महामारी ने एक अहम रोल निभाया है।
कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन से पूरे विश्व की आर्थिक स्थिति चरमराई हुई है और भारत भी इस स्लोडाउन से अछूता नहीं रहा है। परंतु चीन के ऊपर दबाव बनने से और कंपनियों के चीन से बाहर जाने के कारण यह भारत के लिए एक ऐसा समय है जब भारत चीन को पछाड़ते हुए, ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है। इसी मौके पर चौका मारते हुए केंद्र सरकार ने 1991 के स्तर का रिफॉर्म किया।
यानि सरकार ने सांस्कृतिक सुधारों के बाद अब आर्थिक सुधारों की शुरुआत की जो आगे भी जारी रहने वाला है। जब पीएम मोदी ने कोरोना महामारी के लिए 20 लाख करोड़ की घोषणा की थी तभी उन्होंने आर्थिक सुधारों के संकेत दिये थे। उन्होंने अलग से Land, Labour, Liquidity और Laws में रिफॉर्म लाने की बात कही थी। कई BJP शासित राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश ने विदेशी कंपनियों को अपने राज्य में आकर्षित करने के लिए Labour और land रिफॉर्म की शुरुआत भी कर दी है।
केंद्रीय स्तर पर, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई बड़े सुधारों की घोषणा की। सरकार ने 6 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की, जिससे अब MSME बिना किसी जमानत के ही ऋण ले सकता है। इससे पहले, RBI ने 6 लाख करोड़ से अधिक की Liquidity की घोषणा की थी। बता दें कि प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज में से आधे से अधिक Liquidity पर केंद्रित है।
इसी तरह कृषि क्षेत्र में भी बड़े कदम उठाए गए। सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम और कृषि उपज बाजार समिति (APMC) अधिनियम जैसे कानून हटा दिए जिससे किसानों को नुकसान झेलना पड़ता था। इन दोनों क़ानूनों ने कृषि क्षेत्र की डिमांड और सप्लाइ दोनों को नियंत्रित कर रखा था। इससे खेत भंडारण, सप्लाइ और कीमतों को नियंत्रित किया जाता था। अब इन्हें हटा कर सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि किसान को उसकी उपज का उच्चतम संभव मूल्य मिले।
केंद्रीय स्तर पर, वित्त मंत्री ने 1991 के सुधारों के बाद से निजीकरण का सबसे बड़ा रिफॉर्म किया और घोषणा की है कि non-strategic Public Sector Undertakings (PSUs) का निजीकरण किया जाएगा, और और इन PSUs की भूमिका गैर-रणनीतिक क्षेत्रों तक सीमित रहेगी। वहीं स्ट्रेटेजिक क्षेत्रों में भी कम से कम एक नहीं बल्कि चार से PSUs होंगे।
देश में आर्थिक सुधारों को लागून करना उतना आसान कभी नहीं होता जितना आसान कोरोना ने बना दिया है। अगर हम इसे सांस्कृतिक सुधारों से तुलना करे तो आर्थिक सुधारों को लागू करना अधिक मुश्किल काम है। इसका कारण है देश में चल रहा नेहरू की आर्थिक समाजवाद नीति जिससे भारत कभी छुटकारा नहीं पा सका। ये समाजवादी मानसिकता ही किसी भी प्रकार के आर्थिक सुधारों का विरोध करने के लिए किसी भी हद तक जाती है। इसलिए, कोरोना महामारी ने सरकार को वह मौका दिया जिससे आर्थिक सुधारों को लागू करने के अलावा सरकार के पास कोई अन्य विकल्प ही नहीं था।
वर्ष 1991 में भी इसी तरह का Balance of Payment का संकट देश के सामने मंडरा रहा था और उसी संकट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को आर्थिक सुधारों को लागू करने का मौका दिया और उन्होंने किया। वहीं कोरोना के कारण आए आर्थिक संकट ने पीएम मोदी को सुधारों को लागू करने का मौका दिया। इस मौके को पीएम मोदी ने दोनों हाथों से पकड़ा और उसका उपयोग किया।
सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह दूसरा वर्ष आर्थिक सुधारों को देश में लागू करने तथा और सुधार करने पर ही होगा जैसे पहले वर्ष में सांस्कृतिक सुधारों को करने पर था। Confederation of Indian Industry (CII) के एक मीटिंग में स्वयं पीएम मोदी ने यह कहा भी कि अब वे संरचनात्मक सुधार पर ध्यान देंगे जो देश का रास्ता बादल देगा और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण होगा। यानि आने वाला वर्षों में हम भारत को एक आर्थिक शक्ति बनते देखेंगे।