“अपने बुने जाल में फंसा चीन” पुराने नक्शे देखकर पीछे भाने को मजबूर हुए जिनपिंग के सैनिक

चीन

(PC: Rediff)

लद्दाख में भारत-चीन विवाद को शुरू हुए लगभग 2 महीने होने को हैं और अभी भी भारत-चीन के बीच सैन्य स्तर पर बातचीत का दौर जारी है। हालांकि, इन बातचीत में भारतीय पक्ष लगातार चीनी पक्ष पर हावी पड़ रहा है। Economic Times की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय पक्ष चीनी पक्ष को आईना दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है, और पुराने नक्शों के साथ अपने दावों को और मजबूत कर रहा है। उदाहरण के लिए भारत-चीन की एक बैठक में भारतीय पक्ष ने चीन द्वारा 1960 में दिखाये गए एक नक्शे को आधार बनाकर चीनी पक्ष को ही घेर लिया। चीन ने वर्ष 1960 में जितने हिस्से पर दावा किया था, वह हिस्सा पहले से ही China के पास है और जिस क्षेत्र में अभी विवाद जारी है, वह चीन के अपने पुराने दावों में भी चीन का हिस्सा नहीं बताया गया है।

दरअसल, वर्ष 1962 के युद्ध से पहले China ने जितने हिस्से पर दावा किया था, उसमें पेट्रोलिंग पॉइंट 14, 15 और 17 शामिल नहीं थे। वर्ष 1962 में चीन ने युद्ध लड़ा और अपने दावे अनुसार उसने भारत की ज़मीन को हड़प लिया। इससे स्पष्ट होता है कि वर्ष 1962 के युद्ध में भी चीन ने पेट्रोलिंग पॉइंट 14, 15 और 17 को अपना हिस्सा नहीं माना था। वर्ष 1962 के बाद से ही भारत-चीन के बीच की सीमा LAC बन गयी और उसके बाद से ही भारत के सैनिक पेट्रोलिंग पॉइंट 14, 15 और 17 तक पेट्रोलिंग करके आते रहे हैं। हालांकि, अब China ने इन पेट्रोलिंग पॉइंट पर भी अपना दावा करना शुरू कर दिया है।

वर्ष 1960 के चीनी दावों के अनुसार चीन का क्षेत्र गलवान घाटी में Longitude 78° 13’ E, Latitude 34. 46’ N तक सीमित है, और रोचक बात यह है कि उन दावों में पेट्रोलिंग पॉइंट 14, 15 और 17 शामिल नहीं हैं। यानि इससे साफ पता लगाया जा सकता है कि कौन क्षेत्र में status Quo में बदलाव करने की कोशिश कर रहा है और कौन क्षेत्र में शांति चाहता है। भारत और China के बीच हुई बैठकों में भारतीय पक्ष ने इस बात को ज़ोर से उठाया है। इसी के बाद 23 जून की खबर के अनुसार भारत और China की सेना ने गलवान घाटी में दूसरी बार पीछे हटने का फैसला लिया है। भारतीय पक्ष ने चीनी सेना को आसान भाषा में बता दिया है कि वह पेट्रोलिंग पॉइंट 14, 15 और 17 तक अपनी पेट्रोलिंग जारी रखेगी।

चीनी सेना की आक्रामकता के कारण ही दोनों ओर लगभग 60 जवानों की मौत हुई। चीनी सेना के कारण ही भारत-चीन के बीच यह विवाद इतना बढ़ गया। चीन शुरू से ही विस्तारवाद की नीति का पालन करता आया है। ऐसे में हमेशा की तरह उसने इस बार भी भारत की ज़मीन हड़पने की कोशिश की। हालांकि, इस बार भारत सरकार के रुख में बड़ा बदलाव आया था, क्योंकि अब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या जवाहरलाल नेहरू नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी हैं। उनके नेतृत्व में भारत China के अंदर घुसकर चीन के सैनिकों की बलि चढ़ाकर वापस आए। अब तक भारत ने अपनी एक इंच ज़मीन को भी अपने हाथ ने नहीं जाने दिया है। चीन के शांति-संदेशों की पोल अब खुल चुकी है। China को अब ना सिर्फ भारत से बल्कि अपने लोगों से भी सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए।

Exit mobile version