अमेरिका-चीन के बीच शुरू हो चुके नए “शीत युद्ध” में यूरोपियन यूनियन पिसता जा रहा है। कोरोना के बाद से ही EU ने चीन के प्रति बेहद नर्म रवैया दिखाया है। जर्मनी और इटली जैसे देश विषम परिस्थितियों में भी चीन की चाटुकारिता करने से पीछे नहीं हटे हैं। हालांकि, यूरोपियन यूनियन ने जैसे ही अमेरिका और UK के दबाव में आकर चीन द्वारा लाये गए Hong-Kong Security Bill के खिलाफ रुख अपनाया, तो चीन ने भी EU को उसकी औकात दिखाने में समय नहीं लगाया। चीन के सरकारी अखबार Global Times ने अपने एक लेख में EU को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर वह इस शीत युद्ध में अमेरिका का पक्ष लेता है तो उसको इसके गंभीर आर्थिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
बता दें कि यूरोपियन संसद ने हाल ही में Hong-Kong सुरक्षा बिल के मुद्दे पर एक प्रस्ताव को पारित कर चीन को “द हेग” की अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में घसीटने का फैसला लिया था, जिससे चीन चिढ़ा हुआ है। चीन के अखबार Global Times के मुताबिक “अगर EU ने जल्द ही एक संतुलित फैसला नहीं लिया, तो वह अमेरिका-चीन के शीत युद्ध का शिकार बन सकता है। EU के नेताओं को सोच-समझकर इस प्रकार फैसला लेना चाहिए ताकि वह चीन-अमेरिका विवाद का सबसे बड़ा पीड़ित ना बन जाये”।
चीन की ओर से EU को यह धमकी समझी जा सकती है। पिछले कुछ सालों में चीन की ओर से यूरोपियन यूनियन में निवेश लगातार घटा है। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2019 में यूरोपियन यूनियन में चीन का निवेश 5 सालों के अपने सबसे निचले स्तर पर था। हालांकि, कोरोना के बाद पैसे की तंगी से जूझ रहा EU अब इस तस्वीर को बदलना चाहता है। यही कारण है कि यूरोपियन यूनियन के देशों की सरकारें चीन के मुद्दे पर एकमत नहीं हैं और जर्मनी जैसे देश तो निवेश पाने के लिए खुलकर चीन का पक्ष ले रहे हैं।
EU के देशों को यह भय भी है कि अगर वे चीन के खिलाफ बोलेंगे तो चीन ऑस्ट्रेलिया की तरह ही उनपर भी प्रतिबंध लगा सकता है। चीन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने आर्थिक बल का प्रयोग कर चुका है। चीन भारत और UK जैसे देशों को भी खुलकर धमकी दे रहा है। इसके साथ ही अमेरिका पर वह आए दिन नए आरोप लगता है। चीन के इसी बर्ताव से EU के देशों में भय का माहौल है।
चीन भी यूरोप के देशों का भरपूर फायदा उठा रहा है। इसी वर्ष अप्रैल महीने में चीन ने यूरोपीय संघ पर दबाव डाला था ताकि वो वुहान वायरस पर आधारित रिपोर्ट में संशोधन करे और चीन विरोधी शब्दो का इस्तेमाल न करे। इसके बाद यूरोपियन यूनियन ने अपनी उस रिपोर्ट को बदलकर उसमें से चीन-विरोधी सामाग्री को हटा दिया था। इसके अलावा जब ऑस्ट्रेलिया ने चीन के खिलाफ जांच करने की मांग की थी, तो चीन के कहने पर EU ने एक बेहद घटिया प्रस्ताव WHO की जनरल असेंबली में पेश कर दिया, जिसमें जांच तो छोड़िए, वुहान और चीन का नाम तक शामिल नहीं था। इसी ड्राफ्ट में ऑस्ट्रेलिया द्वारा दिये गए सुझाव को हटा कर एक सामान्य जांच में परिवर्तित कर दिया गया था। चीन ने यहाँ भी EU को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर लिया।
अमेरिका जी7 का विस्तार करने का फैसला लेकर और जर्मनी से अपने सैनिक वापस बुलाकर पहले ही यह इशारा दे चुका है कि वह यूरोप के रुख से बिलकुल भी खुश नहीं है और EU को चीन के खिलाफ कड़ाई से पेश आना ही होगा। ऐसे में यूरोपियन यूनियन एक मजबूत स्टैंड ना ले पाने की वजह से धोबी के कुत्ते समान हो गया है, जिसे अमेरिका भी खरी-खरी सुना रहा है और उसे चीन से भी लताड़ पड़ रही है। EU की यह हालत उसकी खुद की मूर्खता की वजह से हुई है।