वुहान वायरस के कारण विश्व को आखिरकार समझ में आने लगा है कि किसी देश पर आवश्यकता से अधिक निर्भर होना कितना घातक हो सकता है, विशेषकर जब वो चीन जैसा देश हो। इसलिए अमेरिका से लेकर जापान, औस्ट्रेलिया, और यहाँ तक कि भारत भी चीन को वैश्विक सप्लाई चेन से बाहर फेंकने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाने को तैयार हैं। ऐसा लगता है कि भारत ने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपना अभियान प्रारम्भ भी कर दिया है।
अभी हाल ही में भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत प्रोग्राम के अंतर्गत अपने कुछ अहम उत्पादन क्षेत्र जैसे स्वास्थ्य, रक्षा सामग्री में आत्मनिर्भरता के लिए कदम बढ़ाए हैं। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए उन्होंने एपीआई यानि Active Pharmaceutical Ingredients, जिनसे कई दवाइयाँ बनाई जा सकती हैं, पर चीन की पकड़ को ढीली करने और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने हेतु केंद्र सरकार ने कुछ अहम कदम उठायें हैं। द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार इस परिप्रेक्ष्य में आवश्यक गाइडलाइन्स जल्द ही जारी कर सकती है।
बता दें कि API के उत्पादन में इस समय चीन ने वर्चस्व जमा कर रखा है। आधे से अधिक विश्व को दवाइयों के उत्पादन के लिए चीन पर निर्भर रहना पड़ता था। परंतु वुहान वायरस के बाद से स्थिति बदल चुकी है। अब दुनिया के अधिकांश देश चीन पर दवाइयों के लिए निर्भर नहीं रहना चाहते हैं, और वे बड़ी उम्मीद से भारत की ओर देख रहे हैं।
केंद्र सरकार इन बातों से अनभिज्ञ नहीं है। तभी उन्होंने मार्च माह में Production Linked Incentive स्कीम को अपनी स्वीकृति दी थी। इस योजना के अंतर्गत भारत में निर्मित लगभग हर उत्पाद के लिए सरकार हर तरह से प्रोत्साहन देगी, और ये सुनिश्चित कराएगी की एपीआई के उत्पादन में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं आए। The Print के रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार अपने पीएलआई स्कीम के फ़ाइनल guidelines जून माह के अंत तक बता सकती है। इस स्कीम का कुल मूल्य तकरीबन 6940 करोड़ रुपये के आसपास रहेगा। जब से भारत निर्मित Hydroxychloroquine अथवा एचसीक्यू की मांग विश्व भर में बढ़ी है, तभी से स्वास्थ्य क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य से भारत को भावी ‘संकटमोचक’ के रूप में देखा जा रहा है।
अब Production Linked Incentive स्कीम से भारत को क्या लाभ होगा? भारत यहां एक तीर से दो लक्ष्य भेद सकेगा। एक, सदियों से क्षीण पड़े स्वास्थ्य सेवा में वह फिर से विश्व की सेवा कर अपने लिए नाम कमा सकता है, और दूसरा, वह धीरे धीरे करके चीन को वैश्विक सप्लाई चेन से बाहर खदेड़ सकता है। एक तरह से इसकी शुरुआत भारत ने कर भी दी है। अभी हाल ही में पीएम मोदी के आत्मनिर्भर भारत के मंत्र को आत्मसात करते हुए भारत में व्यापारियों की टॉप बॉडी कंफडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स यानि CAIT ने चीनी सामान का बहिष्कार कर अगले साल के अंत तक चीन को 1 लाख करोड़ रुपये का घाटा पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
CAIT ने करीब 3,000 ऐसी वस्तुओं की लिस्ट बनाई है जिसका बड़ा हिस्सा चीन से आयात किया जाता है, और जिनका विकल्प भारत में मौजूद है या तैयार किया जा सकता है। अब CAIT इन्हें भारत के निर्माताओं से ही खरीदने की कोशिश करेगा, जिससे “वॉकल फॉर लोकल” मुहिम को बढ़ावा मिलेगा। अभी हर साल भारत ट्रेड डेफ़िसिट के रूप में कई बिलियन डॉलर चीन पर लुटा देता है। यदि ये कार्यक्रम सफल रहता है, तो यह चीन के लिए असहनीय आर्थिक झटका साबित होगा।
आचार्य चाणक्य ने सत्य कहा था, शत्रु को जहां से भी आर्थिक, सामाजिक, मानसिक एवं शारीरिक शक्ति प्राप्त हो रही है, उस स्रोत को शत्रु तक पहुंचने से पहले ही मिटा दो। भारत अब इन सभी पहलुओं पर ध्यान देते हुए अपने विरोधी देशों को सबक सिखा रहा है, विशेषकर आर्थिक पहलू पर। ऐसे में पीएलआई स्कीम को अपनी पूर्ण स्वीकृति देकर भारत ने वैश्विक सप्लाई चेन में अपनी पैठ बनाने और चीन को बाहर खदेड़ने हेतु एक सार्थक प्रयास किया है।