कोरोना महामारी के बाद अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर संपूर्ण विश्व भारत की ओर क्यों देख रहा है 

योग

PC: Hindustan Times

प्राचीन भारत में जन्मा योग आज विश्व के कोने कोने तक पहुंच चुका है I लेकिन यह तो रसगुल्ले के स्वाद की तरह है  जिसने खाया है वही उसके बारे मैं बता और समझ सकता है ,बाकि तो उसके बाहरी रूप -रंग से ही उसके स्वाद का अनुमान लगा सकते है I

भारत में एक परंपरा के रूप में योग एक लंबी सांस्कृतिक विरासत रहा है।  पशुपति मुहर जिसे  लगभग 2350-2000 ईसा पूर्व, सिंधु घाटी सभ्यता के पुरातत्व स्थल मोहनजो-दारो में खोजा गया था, एक योगी की  बैठी हुई मुद्रा दर्शाता है। मुहर पर “पशुपति” को दिया गया नाम रुद्र, वैदिक देवता के साथ जोड़ा गया है, जिसे आमतौर पर शिव का प्रारंभिक रूप माना जाता है। योग विद्या में शिव को “आदि योगी” माना जाता है। वैदिक काल में भी यह परम्परा शिक्षा के माध्यम से भी दी जाने लगी I भगवद्‌गीता  में श्री कृष्णा योग के विभ्भिन आयामों के बारे में बताते है  उधारणतः  योग:कर्मसु कौशलम् – (2.50)“कर्म में कुशलता ही योग है”।लेकिन हमारा हर कर्म समाज के लिए लाभकारी हो यह भी हमे ही सुनिश्चित करना है I भगवन गौतम बुद्ध और  महावीर ने भी  इसको परखा और ज्ञान अर्जित किया ! 140 से 150 (लगभग) ईसा पूर्व में जन्मे ऋषि पतंजलि ‘’अष्टाङ्ग योग’’ के माध्यम से योग को जन साधारण की समझ के लिए योग को जीवन जीने की पद्दति से जोड़ देते है!

लेकिन अगर सबसे पहले भारत के बाहर प्रमुखता से योग के विषय को विश्व के सामने किसी ने रखा था तो वो थे  उन्नीसवी सदी के महानयोगी स्वामी विवेकानंद  जिन्होंने  विश्व को योग से रूबरू करवाया। 11 सितम्बर, 1893 को  स्वामी विवेकानंद विश्व धर्म संसद के अपने ऐतिहासिक भाषण में भारतीय संस्कृति और सभ्यता को विश्व पटल पर रखा था I विश्व धर्म संसद के पश्चात स्वामीजी ने अपनी तूफानी यात्रा शुरू कर दी थी, पश्चिम के अपने पहले प्रवास (1893 1897 ) के दौरान योग और वेदांत पर सैकड़ों व्याख्या और कक्षाएं भी लेते थे और योग मुद्राये भी सिखाते थे I अपने अमेरिकी यात्रा के दौरान उन्होंने लगभग 12 राज्यों का प्रवास किया – इलिनोइल , मिशिगन, मिनिसोटा, विस्कॉन्सिन, आईओवा, टेनिसी, न्यूयॉर्क, मैन, मैरीलैण्ड, पेंसिल्वेनिया आदि ! अमेरिका के बाद वो इंग्लैंड गए थे और फिर वापस भारत आये थे! स्वामी विवेकानंद ने लाहौर (उस समय भारत का हिस्सा था)  प्रवास के दौरान दिए गए भाषण कॉमन बेसिस ऑफ़ हिन्दुइस्म में कहा था कि ‘’प्रत्येक राष्ट्र का लक्ष्य निर्धारित है, संसार को देने के लिए सन्देश है, किसी विशेष संकल्प की पूर्ती करना है “! भारत उठो और आध्यात्मिकता से पूरे विश्वव को जीत लो I  स्वामी विवेकानंद  का यह भी मनना था, अगर यह सनातम विचार सब तक पहुंचाना है तो हर भारतीय को ऋषि बनना पड़ेगा !

27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा मे अपने भाषण के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग के विषय को रखते हुए कहा था, “योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन- शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आयें एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।” जिसके बाद 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी देदी जाती है I

21 जून को हर वर्ष पूरी दुनिया योग मुद्राये करती है, लेकिन निगाहें हमेशा भारत पर रहती है जिसने इस विशेष ज्ञान की उत्पति की है ! भारत में जीवन को टुकड़ो में नहीं देखा जाता, आध्यात्मिकता ही जीवन का केंद्र है, जीवन का हर पहलु  यहाँ आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है ! यह देश ही मूलतः आध्यात्मिक है, भारत सालों से विस्तार की बात करता आया है! महोपनिषद् का यह श्लोक – अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् || जिसका अर्थ है, यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है, एक उद्धरण मात्र है! भारत के लिए विस्तार का अर्थ सीमाओं को बढ़ाने वाला विस्तार नहीं है वो तो आत्मीयता और आध्यात्मिक विस्तार की बात करता है, उसी आध्यात्मिकता के बलबूते पर इतने बड़े भूखंड और इतनी विविधता होने के बावजूद भारत वर्षो से एकता के सूत्र में बंधा हुआ है !  यहाँ हर व्यक्ति में आध्यात्मिकता विद्यमान है I कु. निवेदिता भिड़े दीदी (उपाध्यक्ष विवेकानंद केंद्र , कन्याकुमारी ) अपनी पुस्तक योग : एकात्म दर्शन पर आधारित जीवन पद्धति में लिखती है की “भारत का विश्व के लिए सर्वश्रेष्ठ उपहार योग है ”I तत्वतः योग याने तादात्मयता मत , बुद्धिकी आत्मा के साथ, व्यक्ति की परिवार के साथ, परिवार की समाज के साथ, समाज की राष्ट्र के साथ और राष्ट्र की पूरी सृष्टि के साथ ”I

इसबार का योग दिवस भारत ही नहीं  पूरे विश्व के लिए अलग है , पिछले कुछ महीनों में कोरोना महामारी की वजह से दुनिया जहां एक तरफ आर्थिक संकट से तो गुज़र ही रही है वहीं दूसरी तरफ, एक बिंदु जो अब ज़ादा प्रखरता से उभर कर सामने आर हा है वो है मानसिक तनाव की समस्याI पश्चिम देशो ने हमेशा से शरीर और व्यक्ति को केंद्र में रखा हैI  मनुष्य जितना ‘मैं और मेरा’ जैसे विषयो पर विचार जायेगा मानसिक तनाव मनुष्य को अपनी गिरफ्त में ले लेगाI पूरी सृष्टि में मनुष्य का भौतिक और  शारीरिक अस्तित्व  क्या है ? मात्र एक छोटे सा अंश है हम I इसीलिए उस शरीर से ऊपर आकर मन और मस्तिष्क को संचालन करने के विषय में अधिक समय देना पड़ेगा ! योग मात्र आसान, प्राणायाम और मुद्रायें ही नहीं बल्कि योग जीवन जीने की पद्दति है  I

योग आपको उसी शारारिक और भौतिक अस्तित्व से ऊपर मानव के उच्चतम क्षमता की और लेजाता है I और योग द्वारा जो भी कुछ मनुष् को मिलता है वो अधिकतर समाज को देने में ही विश्वास करता है, गौतम बुद्ध ने जो ज्ञान प्राप्त किया वो उन्होंने समाज के बीच रखा, ठाकुर रामकृष्ण परमहंस  स्वयं और अपने शिष्यों को कभी व्यक्तिगत सिद्धि की शिक्षा नहीं देते थे, बल्कि जो योग और  साधना से मिला वह समाज को सेवा के माध्यम से देना है यही विचार देते थे !

इसीलिए अब भारत के पास मौका है कोरोना जैसे महासंकट में अपने प्राचीन ज्ञान योग को जानने का तो इसे समझे और धारण करें ,साथ ही साथ विश्व को भी इस विशेष ज्ञान योग के द्वारा मार्गदर्शन दें!

   -निखिल यादव

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