समय आ गया है- कोरोना, ताइवान, हाँग-काँग और तिब्बत के मुद्दे पर भारत को चीन की बाजू मरोड़नी होगी

बस अब बहुत हो गया!

भारत पीएम मोदी ताइवान

Line of Actual Control (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर तनातनी ने सोमवार रात हिंसक रूप धारण कर लिया, जब लद्दाख के गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई। भारत के 20 सैनिक हुतात्मा हुए, जबकि चीनी पक्ष के 45 से अधिक सैनिकों मारे गए। फिलहाल, केंद्र सरकार ने तीनों सेनाओं को सतर्क रहने को कहा है, और स्वयं प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है कि सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा ।

इसी के साथ अब समय आ चुका है कि भारत अब चीन से खुलेआम मोर्चा ले। भारत की कूटनीतिक रणनीति पर बातचीत करते हुए रक्षा विशेषज्ञ और पूर्व सैन्य अफसर, मेजर जनरल पीके सहगल ने कहा, “भारत के सामने कई विकल्प हैं। चीन को सबसे पहले साफ तौर पर बताना होगा कि भारत किसी तरह से इस मामले में कोई समझौता नहीं करेगा। इनफ्रास्ट्रक्चर डेव्लपमेंट का काम किसी भी स्थिति में बंद नहीं होगा, ये बात चीन अच्छी तरह से समझ जाए।  मामला देश की संप्रभुता का है, उन्होंने हमारी ताकत को देख लिया है और उसका अनुभव भी कर लिया है। जो भारत ने अभी कार्रवाई की है, उससे वास्तव में चीन को काफी नुकसान हुआ है। चीन को साफ तौर पर बता देना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय माहौल में हम दुनिया के साथ मिलकर चीन का विरोध करेंगे। कोरोना को लेकर उसकी आलोचना करेंगे, ताइवान को सपोर्ट करेंगे, ज़रूरत पड़ी तो ट्रेड कार्ड का भी उपयोग करेंगे। तिब्बत कार्ड भी खेला जाएगा जो चीन के लिए बहुत घातक और खतरनाक होगा”।

वैसे मेजर जनरल सहगल गलत भी नहीं बोल रहे हैं, अब समय आ चुका है कि भारत passive diplomacy को त्याग कर अपनी पूरी शक्ति के साथ चीन के विरुद्ध मोर्चा संभाले। चीन ने जिस तरह का विश्वासघात किया है, उसके लिए भारत को अब हर प्रकार से मुंहतोड़ जवाब देना होगा। उदाहरण के लिए वुहान वायरस पर चीन की भूमिका को लेकर जांच में पूरा समर्थन करे, और चूंकि भारत WHO के कार्यकारी बोर्ड का एक अहम सदस्य देश है, इसलिए वो इसका उपयोग चीन को कठघरे में लाकर वुहान वायरस के स्त्रोत दुनिया के साथ साझा कर सकता है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत किसी भी स्थिति में बॉर्डर पर स्थित अपने इनफ्रास्ट्रक्चर डेव्लपमेंट पर कोई रोक नहीं लगाएगा, पर इसके अलावा भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि चीन को किसी भी स्थिति में बढ़त न मिले। चीन ने हाँग-काँग के basic law बदलाव कर वहां के लोगों से फ्री-स्पीच देने और सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने जैसे अधिकार छिन लिए हैं, जिसका भारत समर्थन नहीं करता। अब भारत को खुलेआम हाँग काँग ही नहीं बल्कि ताइवान की स्वायत्ता का खुलकर समर्थन करे। पहले ही भारत ने अप्रत्यक्ष रूप से ताइवान का समर्थन करते हुए उसे अपने एफ़पीआई के संशोधित नियमों के दायरे से बाहर रखा है, लेकिन अब इस अप्रत्यक्ष समर्थन को प्रत्यक्ष बनाने की आवश्यकता है।

तिब्बत को एक अलग देश घोषित करने में अब भारत को खुलकर अब अपना रुख रखने की आवश्यकता है. भारत ने तिब्बत को उसके बुरे वक्त में मदद तो की पर वह काफी नहीं थी परन्तु अब ये समय चीन पर वार करने के लिए महत्वपूर्ण है।

यही नहीं, चीन के साथ व्यापार कार्ड खेलना भी चीन के लिए उतना ही घातक होगा, जितना कि तिब्बत का कार्ड। इसकी शुरुआत भारत निजी स्तर पर कर भी चुका है। भारत में व्यापारियों की टॉप बॉडी कंफडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स यानि CAIT ने चीनी सामान का बहिष्कार कर अगले साल के अंत तक चीन को 1 लाख करोड़ रुपये का घाटा पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इस योजना के सफल होने का अर्थ है चीन को ऐसा आर्थिक नुकसान पहुंचाना, जिसे वो कई वर्षों तक भर ही न पाये।

अब भारत को किसी भी प्रकार की झिझक छोड़कर चीन के विरुद्ध अधिक मुखर होना चाहिए, चाहे वो युद्ध के मोर्चे पर हो या फिर कूटनीति के मोर्चे पर हों। पीयूष मिश्रा ने सही ही लिखा था एक गीत में, “कौरवों की भीड़ हो या पांडवों का नीड़ हो, जो लड़ सका है वो ही तो महान है।”

 

Exit mobile version