राजे और रमन सिंह को फडणवीस से बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है, चुनाव हारने का ये मतलब नहीं कि गायब हो जाओ

BJP के कुछ पूर्व मुख्यमंत्री कर रहे हैं सबसे बड़ी गलती

फडणवीस

राजनीति में किसी हार के बाद न तो हतोत्साहित होना चाहिए न ही रिटायर। राजनीति लोगों की नजर में बने रह कर की जाती है, यानि लोगों के बीच रह कर की जाती है, गायब हो कर नहीं। राजनीति में जीवन सार्वजनिक हो जाता है यानि सर्व “सभी” और जनिक लोगों का हो जाता है। ऐसा लगता है कि मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान के बाद इस मंत्र को महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने गांठ बांध ली है, लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और रमन सिंह इसे आत्मसात नहीं कर पाये हैं। एक तरफ देवेंद्र फडणवीस लगातार लोगों से मिल रहे हैं और उद्धव की सरकार से सवाल पूछ रहे हैं तो वहीं वसुंधरा राजे और रमन सिंह का कोई अता-पता नहीं है।

दरअसल, पिछले वर्ष BJP मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव हारी थी। तब से इन चारो राज्यों के मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ दो ने ही जनता के बीच अपनी माजूदगी को कम नहीं होने दिया है। एक तरफ शिवराज सिंह चौहान तो वहीं दूसरी तरफ देवेंद्र फडणवीस अपने कर्तव्यों को समझते हुए जनता के बीच जाते रहे तो वहीं, वसुंधरा राजे और रमन सिंह न तो कहीं भी दिखाई दिये और न ही खबरों में आए।

अक्टूबर महीने में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए थे और चुनाव जीतने के बाद शिवसेना BJP से गठबंधन तोड़ कर NCP और कांग्रेस के साथ मिलकर CM पद के साथ सरकार में आ गयी थी। उसके बाद देवेंद्र फडणवीस ने एक बेहतरीन विपक्षी नेता की भूमिका निभाई है और साथ ही जनता के बीच अपनी लोकप्रियता को कम नहीं होने दिया है। देवेंद्र फडणवीस हर मोर्चे पर उद्धव सरकार को घेरते नजर आए। चाहे वो कोरोना का मामला हो या प्रवासी मजदूरों का या फिर PPE किट के बारे में बताने वाले  कांस्टेबल के तबादले का ही क्यों न हो, फडणवीस ने सभी मामलों पर सक्रियता दिखाई है। उन्होंने न सिर्फ लोगों की बात को सभी के सामने रखा है, बल्कि उद्धव के कोरोना जैसे मुश्किल हालात में अनिर्णायक नेतृत्व करने के लिए निशाने पर भी लिया।

देवेंद्र फडणवीस ने प्रखर हो कर साधुओं की हत्या पर राज्य सरकार से सवाल किया। यही नहीं विपक्ष में रहने के बावजूद उन्होंने प्रवासी मजदूरों के ट्रेन को रोकने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी गुहार लगाई थी। इसके अलावा उन्होंने कई बार उन हॉस्पिटल्स का भी दौरा किया जहां पर कोरोना के मरीजों का इलाज किया जा रहा है। गरीबों और प्रवासी मजदूरों के खाने का प्रबंध करने वाली कम्यूनिटी कीचेन का भी दौरा कर उन्होंने दिखाया कि उन्हें राज्य के सभी लोगों की चिंता है।

वहीं, शिवराज सिंह चौहान ने भी मध्यप्रदेश में इसी तरह से लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता को बनाए रखा था।

अगर हम राजस्थान और छत्तीसगढ़ की ओर देखे तो वसुंधरा राजे और रमण सिंह लगभग गायब ही रहे हैं। कोरोना के समय में वसुंधरा राजे ने थोड़ी बहुत सक्रियता दिखाई है, लेकिन रमन सिंह तो गायब ही रहे हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ इन दोनों राज्यों में कई ऐसे मौके आए जिसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जा सकता था, जैसे राजस्थान सरकार कि कोरोना में लापरवाही और  छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की बढ़ती हिंसा। परंतु इन दोनों ही नेताओं में से किसी ने भी इन मामलों को राष्ट्रीय स्तर का मामला बनाने का प्रयास नहीं किया। राजस्थान में इन दिनों सोशल मीडिया पर एक पैम्फलेट खूब वायरल हो रहा है, जिसमे राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और झालरापाटन विधान सभा की विधायक ‘वसुंधरा राजे ओर उनके बेटे सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह की तलाश’ लिखा हुआ है। भले ही यह कोई तरीका न हो लेकिन इससे जनता में एक नकारात्मक छवि बनती है।

इन दोनों ही नेताओं को देवेंद्र फडणवीस और शिवराज सिंह चौहान से सीखना चाहिए कि कैसे चुनाव हारने के बाद भी राज्य में अपनी लोकप्रियता बनाए रखने के साथ प्रासंगिकता बनाए रखी जाती है। यह संभव है कि अगर फडणवीस फिर से मुख्यमंत्री बनते हैं तो महाराष्ट्र की जनता में उनका कद और अधिक बढ़ जाएगा। वहीं जिन नेताओं ने चुनाव हारने के बाद लोगों से संपर्क बनाना जरूरी नहीं समझा, वे अपनी लोकप्रियता के साथ-साथ राज्य पर से अपनी पकड़ खो देंगे जिसके बाद फिर चुनाव में वापसी करना मुश्किल हो जाएगा।

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