हाल ही में UN सुरक्षा परिषद के चुनावों में भारत एक अस्थायी सदस्य के रूप में चुना गया। भारत की लाजवाब कूटनीति के चलते भारत को कुल 192 सदस्यों में से 184 सदस्यों ने अपना समर्थन दिया। हालांकि, एक देश ऐसा भी था जिसे अपनी बेहद घटिया विदेश नीति के चलते इन चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा, और उस देश का नाम है कनाडा। जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व वाले कनाडा ने पिछले कुछ सालों में दुनिया के हर बड़े देश के साथ पंगा लिया है और अपने रिश्ते खराब किए हैं। शायद यही कारण था कि UNSC में अस्थायी सीट के लिए हुए चुनावों में कनाडा को 192 में से केवल 108 वोट ही मिले, जबकि जीत के लिए 128 वोट चाहिए थे। अगर कनाडा ने भारत समेत दुनिया की सभी बड़ी ताकतों के साथ अच्छे संबंध बनाकर रखे होते, तो शायद आज कनाडा को ये दिन ना देखना पड़ता।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को जैसे ही अपनी हार का पता चला, उन्होंने तुरंत बहाना बना डाला कि कनाडा चुनावों में देरी से खड़ा हुआ था, जिसके कारण देश को चुनावी अभियान चलाने का मौका नहीं मिल पाया। हालांकि, उनकी विफल विदेश नीति को पूरा विश्व भली-भांति जानता है। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अमेरिका, चीन, भारत, रूस और सऊदी अरब जैसी बड़ी ताकतों के साथ अपने देश के रिश्ते खराब किए हैं, जिसके कारण कनाडा का UNSC में ये हश्र हुआ।
चीन के साथ रिश्ते खराब:
दरअसल, अमेरिका के कहने पर दिसंबर 2018 में कनाडा ने चीन की हुवावे कंपनी के CFO को गिरफ्तार करने का फैसला लिया था जिसका चीन ने कड़ा विरोध किया था। उसके बाद से ही चीन के साथ कनाडा का तनाव बढ़ा हुआ है। इसके बाद कनाडा को चीन में मौजूद अपने राजदूत को भी बर्खास्त करना पड़ा था क्योंकि वह लगातार कनाडा के हितों के खिलाफ काम कर रहा था, लेकिन यह जरूरी कदम उठाने में भी ट्रूडो सरकार ने काफी आनाकानी की थी। कनाडा के इस कदम के बाद चीन ने भी कनाडा के दो पूर्व राजनयिकों को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। अब कोरोना के बाद भी कनाडा जी7 के तहत चीन विरोधी रुख अपना रहा है, जो चीन को बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहा है।
भारत के साथ रिश्ते खराब:
फरवरी 2018 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो आठ दिवसीय दौरे पर भारत आये थे। उस वक्त मीडिया ने इस बात को प्रकाशित किया था कि भारत में कनाडा के प्रधानमंत्री का गर्मजोशी के साथ स्वागत नहीं हुआ, और उनको भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी तरह नकार दिया। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अक्सर कनाडा सरकार पर खालिस्तानियों को पनाह देने और उन्हें भारत विरोधी बयान देने के लिए मंच प्रदान करने के आरोप लगाता रहा है। इतना ही नहीं, भारत में कनाडा के PM के डिनर में एक पूर्व खालिस्तानी आतंकी जसपाल अटवाल को भी निमंत्रण दिया गया था, जिसके बाद भारतीय खेमे में हड़कंप मच गया था। कनाडा के पीएम की भारत की यह यात्रा पूरी तरह विफल साबित हुई थी और इस यात्रा के तुरंत बाद भारत ने कनाडा से आयात होने वाले चनों पर इम्पोर्ट ड्यूटी को बढ़ा दिया था। इसके बाद कनाडा की विपक्षी पार्टियों ने भारत जैसी भावी आर्थिक महाशक्ति के साथ रिश्ते ख़राब करने के लिए ट्रूडो को अपने निशाने पर लिया था। उसके बाद से ही भारत-कनाडा के रिश्तों में तनाव जारी है।
सऊदी के साथ रिश्ते खराब:
इसी तरह जब कनाडा के विदेश मंत्री ने मानवाधिकार के नाम पर सऊदी अरब की आलोचना की थी, तो सऊदी अरब ने अपने आंतरिक मामलों में ‘हस्तक्षेप’ का आरोप लगाकर कनाडा के राजदूत को बर्खास्त करने और अपने राजदूत को भी वापस बुलाने की घोषणा की थी। साथ ही सऊदी अरब ने कनाडा के साथ व्यापारिक संबंधों पर भी रोक लगा दी थी।
इसी प्रकार USMCA डील और व्यापार नीति के कारण जस्टिन ट्रूडो और अमेरिकी राष्ट्रपति आमने सामने आ चुके हैं। इसके अलावा यूक्रेन मामले पर कनाडा और रूस के आपसी रिश्ते खराब हो चुके हैं। दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियों से पंगा लेने के बाद अगर कनाडा को लगता है कि वह UNSC में अपनी अस्थायी सीट पक्की कर पाएगा, तो वह उसकी सबसे बड़ी भूल है। उम्मीद है कि जस्टिन ट्रूडो को इस करारी हार से कुछ सबक मिलेगा और वे भविष्य में भारत, अमेरिका जैसे देशों के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूत करने की दिशा में काम करेंगे।