‘ये Misleading है’, ICMR उन रिपोर्ट्स को नकारता है जो mid-November में कोरोना के सबसे अधिक मामले के दावा करती है

आईसीएमआर

हाल ही में आईसीएमआर को एक फेक न्यूज़ रिपोर्ट को रिजेक्ट करनी पड़ी , जिसमें ये दावा किया गया की ICMR ने ये सिद्ध किया है कि भारत में वुहान वायरस का जो सर्वाधिक असर है, वो नवम्बर के मध्य में आएगा। पीटीआई द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट का खंडन करते हुए आईसीएमआर ने ट्वीट किया, “आईसीएमआर के स्टडी पर न्यूज़ रिपोर्ट्स का मत काफी मिस्लीडिंग है। ये नॉन पीयर reviewed modeling पर आधारित है, जिसे ICMR ने स्वीकृत नहीं किया है और न ही ये आईसीएमआर का निजी मत है”।

पर आखिर विवाद किस बात पर था? दरअसल, ये विवाद उत्पन्न हुआ ऑपरेशन्स रिसर्च ग्रुप द्वारा प्रकाशित एक स्टडी से, जिसे आईसीएमआर ने गठित की थी। इस स्टडी की रिपोर्ट के अनुसार लॉक डाउन के कारण न केवल पीक को 34 से 76 दिनों तक बढ़ा दिया है, अपितु इसी लॉकडाउन के कारण संक्रामण का स्तर 69 से 97 प्रतिशत तक घटा है। इसी स्टडी के अनुसार नवम्बर में आइसोलेशन बेड, वेंटिलेटर और आईसीयू बेड्स में काफी कमी हो सकती है।, लेकिन इसे भी लॉकडाउन के कारण 83 प्रतिशत तक नियंत्रण में कर लिया गया है। स्टडी के अनुसार, “नवम्बर के पहले हफ्ते तक तो स्थिति ठीक रहेगी, परंतु उसके बाद स्वस्थ्य रिसर्चर्स की माने तो आइसोलेशन बेड लगभग 5.4 महीने के लिए अपर्याप्त रहेंगे, आईसीयू बेड 4.6 महीने तक और वेंटिलेटर 3.9 महीने तक अपर्याप्त रहेंगे”।

बताते चलें कि इस स्टडी को आधिकारिक रूप से न तो ICMR ने स्वीकार किया है, और न ही आईसीएमआर ने इसे अपने आधिकारिक हैंडल से प्रकाशित कराया है। इसके बावजूद् मीडिया के कुछ वर्गों ने इस रिपोर्ट को जानबूझकर लाइमलाइट दी, ताकि न सिर्फ भारत में अफरातफरी मचे, अपितु मोदी सरकार द्वारा जारी किए लॉकडाउन को असफल भी सिद्ध किया जा सके। ऐसे में आईसीएमआर को मजबूरन कड़े कदम लेते हुए इस स्टडी को नकारना पड़ा।

आईसीएमआर के अलावा पीआईबी फ़ैक्ट चेक पेज ने भी इस खबर का पुरजोर खंडन किया है। पीआईबी के ट्वीट के अनुसार, “ये खबर भ्रामक है। जिस स्टडी के अनुसार यह रिपोर्ट तैयार हुई है, उसे ICMR ने प्रकाशित नहीं किया, और ये वास्तविक जानकारी को सामने नहीं लाता”।

इससे पहले भी आईसीएमआर के विरुद्ध इस प्रकार की फेक न्यूज़ को भारतीय मीडिया के कुछ वर्गों ने बढ़ावा दिया है। उदाहरण के लिए आईसीएमआर द्वारा स्वीकृत एचसीक्यू दवा के विरुद्ध जब अमेरिका की कुछ बड़ी दवाई कंपनियों ने मोर्चा खोला था, तब भारतीय मीडिया ने एचसीक्यू पर भ्रामक खबरें दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसके अलावा ममता बनर्जी के नेतृत्व में बंगाल सरकार ने ICMR  पर बंगाल को नकारने का आरोप लगाया था, लेकिन कुछ ही दिनों में पता चला कि बंगाल सरकार तो स्वयं ही वुहान वायरस से निपटने में ICMR का कोई सहयोग नहीं कर रही थी। मीडिया द्वारा आईसीएमआर को लज्जित करने और मोदी सरकार को नीचा दिखाने के लिए पिछले एक महीने से भी अधिक समय से प्रयास किये जा रहे हैं। पर आईसीएमआर ने भी अपने बयानों से स्पष्ट किया है, कि आईसीएमआर से पंगा लेने की भूल न करें, वरना अंत में मुंह की खानी पड़ेगी।

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