चीन में “राष्ट्रवाद” सबसे बड़ा ढोंग है, मौका मिलते ही चीनी अरबपति चीन को डंप करके विदेश में बस जाते हैं

और चीन सुपरपावर बनने का सपना देख रहा है!

चीन

(PC: China news)

पिछले एक महीने से चीन लगातार भारत के साथ बार्डर पर तनाव बढ़ाए हुए है लेकिन भारत ने भी मुंह तोड़ जवाब दिया है। चीन की यह पुरानी आदत है कि जब भी वहाँ लोगों के बीच कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ माहौल बनने लगता है तो वह इसी तरह की हरकत कर जनता में राष्ट्रवाद की भावना पैदा करता है। अभी हाल में कोरोना के कारण चीन में शी जिनपिंग का विरोध बढ़ने लगा था जिसके कारण भारत के खिलाफ बॉर्डर पर तनाव बढ़ा कर पुनः चीन के लोगों में राष्ट्रवाद जगाने की कोशिश की जा रही है।

लेकिन क्या China के लोग राष्ट्रवादी होते हैं या ये भी चीन की कपोलकल्पित कहानी ही है?

China में कम्युनिस्ट पार्टी लोगों को शुरू से ही यह सिखाती है कि चीन उपनिवेशवाद और वर्तमान विश्व व्यवस्था का शिकार रहा है और कम्युनिस्ट पार्टी ही एकमात्र रक्षक है। परंतु जैसे-जैसे लोगों का living standard बढ़ता है और वे अमीर होते जाते हैं, तो उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी की वास्तविकता का ऐहसास होते जाता है। इसके बाद फिर वे अन्य देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में घर खरीद कर निवेश करना आरंभ कर देते हैं। यानि चीन से करोड़ो रुपये भेज कर अन्य देशों में अपने भविष्य के लिए निवेश करते हैं।

क्या यह राष्ट्रवाद है? नहीं बिल्कुल नहीं। यह डर है जो लोगों में सच्चाई जानने के बाद उत्पन्न होता है और फिर वे इससे पीछा छुड़ाने के लिए विदेश भागना चाहते हैं। 2017 में प्रकाशित NYT की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 के दौरान चीन से 9,000 करोड़पतियों ने चीन से पलायन किया था। चीन से पलायन करने वाले करोड़पतियों से अधिकतर ऑस्ट्रेलिया या कनाडा का रुख  करते हैं और फिर वहाँ जा कर नागरिकता ले लेते हैं। शंघाई की एक रिसर्च फर्म Hurun की 2014 की रिपोर्ट में पाया गया था कि 64 प्रतिशत चीनी करोड़पति विदेश जाने की तैयारी में थे।

China में बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण करोड़पतियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। लेकिन वे चीन में कमाए गए अधिकतर धन को लगातार विदेश भेज रहे हैं। इनमे से अधिकतर चीन की करेंसी नियंत्रित करने वाले नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए यह काम करते हैं।

Bloomberg की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन के लोगों ने वर्ष 2015 में अमेरिकी घरों पर लगभग 30 बिलियन डॉलर खर्च किए, जिससे वे अचल संपत्ति के सबसे बड़े विदेशी खरीदार बने थे।ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में भी इसी तरह की प्रवृत्ति देखने को मिली थी, जहां चीनी निवेशक एक चौथाई नए घरों को खरीदते हैं। कनाडा के वैंकूवर में चीन के लोगों ने पिछले 10 वर्षों में अचल संपत्ति की कीमतों को दोगुना करने में मदद की है। यूबीएस ग्रुप ने अनुमान लगाया था कि वर्ष 2014 में करीब 324 बिलियन डॉलर चीन से बाहर भेजे गए थे। खास बात तो यह है कि China में प्रतिव्यक्ति 50 हजार डॉलर प्रतिवर्ष ही बाहर भेजे जा सकते हैं, लेकिन फिर भी चीन के अमीर लोग अंडरग्राउंड बैंक और हॉन्गकॉन्ग मनी चेंजर्स का उपयोग कर अपने धन को विदेश में भेजते हैं।

धनी और उच्च-मध्यम-वर्ग के लोगों में खुद को चीन की सत्तावदी मॉडल से बचाने के लिए विदेशों में लंबे समय तक वीजा या संपत्ति प्राप्त करने की मांग बढ़ती ही जा रही है। न्यूज़ीलैंड में तो चीनी ऐसे इन्वेस्ट कर रहे थे कि वहाँ प्रॉपर्टी की मांग स्थानीय लोगों की पहुंच से दूर हो गयी थी, जिसके बाद न्यूज़ीलैंड की सरकार को प्रॉपर्टी के विदेशी खरीद पर रोक लगानी पड़ी।

यह कैसा राष्ट्रवाद है जहां लोग अपने देश में रहना ही नहीं चाहते हैं?सच तो यह है कि China के लोग कम्युनिस्ट पार्टी से तंग आ चुके हैं क्योंकि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी लोगों ज़रा भी स्वतन्त्रता नहीं देती जिससे वहाँ की जनता अब इस पार्टी से छुटकारा पाना चाहती है।

गरीबों के पास पैसा नहीं है कि वे विदेश में घर खरीद सके नहीं तो वे भी अमीरों की तरह ही अन्य देशों में अपना ठिकाना अवश्य ढूंढते। चीन में लगभग सभी संस्थानों में कम्युनिस्ट पार्टी का नियंत्रण है, और अगर नियंत्रण नहीं भी है तो हस्तक्षेप है, जिससे वहाँ के लोगों में हमेशा एक डर बना रहता है। इस कारण से कोई भी व्यक्ति अपनी अगली पीढ़ी को इस सत्तावादी मॉडल से दूर करना चाहता है। China के अमीर बस एक मौका ढूंढते हैं जिससे उन्हें स्वतन्त्रता मिले। इसलिए अगर यह कहा जाए कि चीन के अमीर राष्ट्रवादी नहीं बल्कि अवसरवादी है तो यह बिल्कुल गलत नहीं होगा।

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