जब से कोरोना महामारी ने पूरे विश्व में अपना पाँव पसारा है, तब से ही कई देशों में चीन के खिलाफ माहौल बना हुआ है। हालांकि, इसी बीच हमें देखने को मिला है कि कैसे ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में कुछ लोग चीन के खिलाफ कार्रवाई करने पर अपनी ही सरकार के खिलाफ बखेड़ा खड़ा कर देते हैं। जब ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने चीन के खिलाफ स्वतंत्र जांच की बात वैश्विक स्तर पर उठाई थी, तब ऑस्ट्रेलिया में ही कई चीन के समर्थकों ने सरकार के इस कदम को अनावश्यक बताया था।
उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य के प्रिमियर फिर भी BRI प्रोजेक्ट को लेकर चीन की चाटुकारिता करने से पीछे नहीं हटे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता और चीन ने अपनी Wolf Warrior की रणनीति से विश्व के कई देशों पर एक साथ दबाव बनाया, उससे अब चीन के पक्ष में बोलने वाले या उसकी तरफदारी करने वाले अब बैकफूट पर हैं तथा अब उनके पास भी चीन के पक्ष में बोलने का कोई कारण नहीं बचा है। यह लगभग विश्व के सभी देशों में देखने को मिला है, चाहे वो ऑस्ट्रेलिया हो या यूरोप हो या फिर अमेरिका के डेमोक्रेट्स ही क्यों न हो।
सबसे पहले देखते है ऑस्ट्रेलिया को। जब ऑस्ट्रेलिया ने कोरोनोवायरस महामारी की उत्पत्ति के बारे में पहली बार एक अंतर्राष्ट्रीय जांच का प्रस्ताव किया था,तब वहाँ कई ऐसे लोग सामने आए जिन्होंने खुल कर चीन का समर्थन किया। पूर्व मंत्री से लेकर बिजनेस टायकून तक ने सरकार को चीन से संबंध खराब न करने का बयान दिया। ऑस्ट्रेलिया के सबसे अमीर टायकून में से एक केरी स्टोक्स ने वेस्ट ऑस्ट्रेलियन अख़बार को दिये एक इंटरव्यू में कहा था कि “मैं अपने सबसे बड़े आय के स्रोत की आंख में अंगुली न करने की चेतावनी देता हूँ।”
वहीं पूर्व विदेश मंत्रियों जैसे Bob Carr and Gareth Evans ने इस मामले को उलझाने के बजाय कूटनीति हल निकालने का सुझाव दिया था, साथ ही अनावश्यक तनाव पैदा करने के लिए सरकार की आलोचना की थी। वहीं विक्टोरिया के राज्य कोषाध्यक्ष Tim Pallas ने ऑस्ट्रेलिया की केंद्र सरकार पर देश के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के साथ संबंध खराब करने का आरोप लगाया था।
लेकिन जैसे-जैसे चीन ऑस्ट्रेलिया पर कार्रवाई करता गया वैसे-वैसे चीन के पक्ष में बोलने वालों के मुंह पर ताला लगता गया। ऑस्ट्रेलिया ने पहले तो जौ पर 80 प्रतिशत की इम्पोर्ट ड्यूटी लगा डाली, उसके बाद बीफ के इम्पोर्ट पर भी प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही अब China अपने विद्यार्थियों को ऑस्ट्रेलिया जाने से मना कर रहा है। जैसे-जैसे ऑस्ट्रेलिया में चीन विरोध बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे Australia की सरकार में BRI का विरोध भी बढ़ता जा रहा है।
Perth US Asia Centre के Jeffrey Wilson का कहना है कि जैसे-जैसे चीन इस तरह एक एकतरफा आर्थिक कार्रवाई करेगा, वैसे वैसे उसके पक्ष में बोलने वालों की या pro-engagement की बात करने वालों की संख्या में कमी आएगी।
इसी तरह यूरोप में भी देखने को मिल रहा है। पहले तो EU पूरी तरह से China के पक्ष में ही दिखाई दे रहा था। लेकिन, अब जैसे उस पर सदस्य देशों का दबाव बढ़ा वैसे ही EUने अब अपने रुख में बदलाव करना शुरू किया है। वहीं यूरोप के कई देशों के कुछ सांसद आपस में मिलकर एक चीन विरोधी गठबंधन तैयार करने जा रहे हैं, जो मिलकर कम्युनिस्ट पार्टी के एजेंडे को रोकने की कोशिश करेंगे। इस गठबंधन को Inter-Parliamentary Alliance on China यानि IPAC नाम दिया गया है। इस गठबंधन में यूरोपीय संसद के कुछ सदस्यों से लेकर नॉर्वे, जर्मनी, स्वीडन और फ्रांस जैसे देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
अगर बात अमेरिका की करे तो अमेरिका में भी डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन दोनों ही China के खिलाफ हो चुके हैं। आम तौर पर अमेरिका में देखा जाता है कि डेमोक्रेट्स चीन के साथ अमेरिका के संबंध अच्छे चाहते हैं लेकिन चीन के लगातार अड़ियल रवैये ने अब डेमोक्रेट्स को भी चीन के खिलाफ कर दिया है। डेमोक्रेट्स के उम्मीदवार Joe Bidenचीन के खिलाफ डोनाल्ड ट्रम्प से भी खतरनाक बयान दे रहे हैं। The Harris Pollका एक नया पोल दिखाता है कि कोरोना वायरस ने अमेरिकियों को चीन के खिलाफ एक कर दिया है। इस पोल के माध्यम से यह पता चलता है कि 90 प्रतिशत रिपब्लिकन यह कह रहे हैं कि वायरस के प्रसार के लिए चीनी सरकार जिम्मेदार है, जबकि यही बात 67 प्रतिशत डेमोक्रेट्स भी मानते हैं।
यानि देखा जाए तो China की Wolf WarriorDiplomacy उसी के ऊपर भरी पड़ रही है और उसका साथ देने वाले या चीन से व्यापार में रुचि रखने वाले भी अब उसके विरोध में उतर रहे हैं। चीन ने पहले तो कोरोना फैलाया, उसके बाद प्रोपोगेंडा और अब आर्थिक शक्ति का इस्तेमाल कर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। इससे जो चीन के समर्थक थे, अब वे China की इन नीतियों के वजह से बैकफूट पर चले गए हैं। इससे न तो वे चीन की तारीफ कर पा रहे हैं और न ही उससे संबद्ध सुधारने का ज्ञान दे रहे हैं।