अमेरिका में कोरोना के कहर को देखने के बाद हमने आपको एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे इस महामारी के फैलने के बाद अमेरिका में ट्रम्प का दोबारा राष्ट्रपति बनना अब मुश्किल हो गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रम्प न सिर्फ कोरोना को रोकने में बुरी तरह फेल साबित हुए थे, बल्कि वे बार-बार बचकाना बयान देकर अपनी स्थिति को और ज़्यादा मुश्किल बनाने में लगे हुए थे। हालांकि, बीते कुछ दिनों में अमेरिका में कुछ ऐसा हुआ है, जिसने दोबारा अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प की जीत को अब पक्का कर दिया है। बता दें कि हाल ही में अमेरिका में George Floyd दंगों के कारण स्थिति बेहद भयावह हो गयी है। कुछ दिनों पहले अमेरिका के Minnesota राज्य के Minneapolis शहर में पुलिस ने एक अश्वेत व्यक्ति की गर्दन पर घुटना रखकर उसकी हत्या कर दी थी। उसके बाद से ही अमेरिका में नस्लभेद के खिलाफ प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। हालांकि, इन प्रदर्शनों को बाद में left wing extremist group एंटिफ़ा (Antifa) ने हाईजैक कर लिया और अमेरिका में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन देखने को मिले। कई जगह गाड़ियों को जला दिया गया और कई लोगों की जान भी चली गयी। अब राष्ट्रपति ट्रम्प ने Antifa को आतंकवादी संगठन घोषित करने का ऐलान किया है।
कोरोना से पहले ट्रम्प की राजनीतिक स्थिति बेहद मजबूत थी। अर्थव्यवस्था उछाल पर थी और उनका दोबारा राष्ट्रपति बनना तय माना जा रहा था। इस साल की शुरुआत में ट्रम्प की अप्रूवल रेटिंग 49 प्रतिशत पर थी, जो कि उनकी आज तक की सबसे ज़्यादा अप्रूवल रेटिंग्स थी।
हालांकि, जैसे-जैसे अमेरिका में कोरोना का कहर बढ़ता गया, वैसे-वैसे उनकी अप्रूवल रेटिंग भी 38 प्रतिशत पर आ गई। कोरोना के बाद अमेरिका के लोग ट्रम्प के खिलाफ हो गए थे, और उन्हें सत्ता से हटाने का मन बना चुके थे। हालांकि, अब George Floyd दंगों के बाद दोबारा ट्रम्प के पक्ष में हवा बनती दिखाई दे रही है।
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ट्रम्प का मानना है कि अमेरिका में George Floyd को लेकर हो रहे विद्रोह प्रदर्शनों को अति-वामपंथी संगठन Antifa ने हाईजैक कर लिया है और यही संगठन अमेरिका में हो रहे दंगों का असल कारण है, क्योंकि यह संगठन अमेरिका में ट्रम्प सरकार को गिराना चाहता है और anarchy को बढ़ावा देता है। ट्रम्प ने Antifa को प्रतिबंधित करने के साथ-साथ सभी राज्यों के गवर्नरों को कहा है कि वे इन दंगाइयों से सख्ती से निपटे। बता दें कि Antifa का जन्म वर्ष 1920-30 में जर्मनी में हुआ था और इसका उद्देश जर्मनी में fascism का विरोध करना था, इसीलिए इसका नाम Anti-fascism यानि Antifa पड़ा था। वर्ष 1980 में यह विचारधारा अमेरिका में आई और अब इसको फॉलो करने वाले वर्ष 2016 से ही एक्टिव हैं। हालांकि, इस साल वे एकदम बहुत एक्टिव हो गए हैं और अमेरिका में हो रहे इन प्रदर्शनो में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं यह चुनावी साल है तो ऐसे में इनकी मंशा राजनीतिक भी हो सकती है।
यही कारण है कि ट्रम्प अब इन विद्रोहियों को कुचलने के लिए किसी भी हद तक जाने की बात कर रहे हैं। उन्होंने अब कहा है कि वे इनसे निपटने के लिए सेना भी बुला सकते हैं क्योंकि वे कानून और व्यवस्था के रखवाले हैं और उसे बनाए रखने के लिए वे किसी भी ताकत का इस्तेमाल कर सकते हैं।
यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि Antifa और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मिलीभगत दर्शाने वाली भी कई मीडिया रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं। White House के सामने हो रहे विरोध प्रदर्शनों से जुड़ी एक video सामने आई है जिसमें प्रदर्शनकारियों को चीनी भाषा mandarin में बोलते हुए सुना जा सकता है।
Rioters outside #WhiteHouse. Man says in Mandarin Chinese, "Go, go, hurry up, leave quickly!"@realDonaldTrump @SecPompeoinvestigate, you need to investigate what kind of a role #CCP is playing in this when #US and world want to hold CCP responsible for #CCPVirus #pandemic. pic.twitter.com/C9rm9lEatF
— Inconvenient Truths by Jennifer Zeng 曾錚真言 (@jenniferzeng97) June 1, 2020
इतना ही नहीं, खुद चीन भी अमेरिका में हो रहे इन दंगों में खासा रूचि दिखा रहा है। हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता “हुआ चुन्यिंग” ने अमेरिकी दंगों पर चुटकी लेते हुए लिखा था “I Can’t breathe”! बता दें कि ये उसी अश्वेत व्यक्ति (George Floyd) के आखिरी शब्द थे, जिसकी पुलिस द्वारा हत्या कर दी गयी थी। ऐसा भी हो सकता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अमेरिका में हो रहे इन दंगों को भड़का रही हो। ऐसे में जिस प्रकार अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प इन दंगों को कुचलने की बात कर रहे हैं, उससे लोगों में उनके नेतृत्व के प्रति फिर विश्वास जगा है। यही कारण है कि इन दंगों के बाद दोबारा उनके राष्ट्रपति बनने के अनुमान अब बढ़ गए हैं।