भारत और चीन के बीच बार्डर विवाद अब एक नई उच्चाई पर पहुंच गया है। सोमवार को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के कायरतापूर्ण हमले के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया है। परंतु इसी बीच अब भारत ने एक बेहतरीन डिप्लोमैटिक चाल चलते हुए रूस का समर्थन हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
रिपोर्ट्स के अनुसार भारतीय वायु सेना (IAF) ने अपने बेड़े को और ताकतवर बनाने के लिए रूस से 12 सुखोई-30 MKI, और 21 मिग-29 लड़ाकू विमान खरीदने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेज दिया है। इन Fighter Jets को खरीदने के समय को देखा जाए तो यह बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि एक तरफ रूस भारत और चीन को विवाद को सुलझाने की बात कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ भारत को तुरंत Fighter Jets भेज सकता है।
ANI की रिपोर्ट्स के अनुसार, एयरफोर्स पिछले कुछ समय से इस प्रस्ताव पर काम कर रही है लेकिन अब बार्डर पर बढ़ते टेंशन को देखते हुए इस प्रक्रिया में तेज़ी लायी गयी है। यह कोई सामान्य रणनीतिक कदम नहीं है, बल्कि एक बेहद सोची समझी रणनीति है जिसका संदेश एकदम स्पष्ट है कि भारत रूस के साथ अपने सम्बन्धों को महत्व देता है और किसी भी बुरे वक्त में उस पर भरोसा करता है।
भारत का यह कदम और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह भारत, रूस और चीन की विदेश मंत्री स्तर की त्रिपक्षीय बैठक से पहले आया है। Zee News की मानें तो शीर्ष सूत्रों ने कहा है कि मॉस्को ने तनावपूर्ण स्थिति के मद्देनजर चीन के साथ सीमा विवादों को हल करने के अपने प्रयासों में नई दिल्ली को समर्थन का आश्वासन दिया है।
बता दें कि भारत और रूस के बीच पारंपरिक रूप से अच्छे संबंध रहे हैं, और प्रधान मंत्री मोदी तथा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी एक दूसरे को सहयोग की भावना दिखाई है।
बार्डर पर बढ़ते तनाव के बीच रूस से खरीदे जाने वाले ये 33 अतिरिक्त Fighter Jets भारत की मारक क्षमता में इजाफा करेंगे और नई दिल्ली पहले से ही इन अतिरिक्त विमानों को खरीदने की योजना बना रही थी, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अगर ये नहीं खरीदे गए तो भारत के पास लड़ाकू विमान नहीं है।
बल्कि ये दोनों प्रकार के विमान पहले से भारतीय एयर फोर्स में शामिल हैं और अब भारतीय वायुसेना लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LAC) तेजस, HAL तेजस Mk2, राफेल फाइटर जेट्स, मल्टी रोल फाइटर एयरक्रॉफ्ट और Advanced Medium Combat Aircrafts (AMCA) में अधिक रुचि दिखा रही है।
भारत का यह कदम चीन को संदेश भेजने के लिए है कि अगर भारत और चीन के बीच मामला बढ़ा तो रूस किसके तरफ झुकेगा। हाल की घटनाओं को देखें तो रूस ने एंटी चीन नीति नहीं अपनाई है और कोरोना के मामले पर वह चीन के खिलाफ बोलने से बचता रहा है। तब सभी को यह लग रहा था कि रूस चीन का साथ दे रहा है लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है।
ये दोनों देश एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी है, वैचारिक रूप से भी और सैन्य क्षमता से भी। चीन पर कई बार रूस के मिलिट्री तकनीक को चुराने का आरोप लग चुका है जिसके कारण रूस के डिफेंस एक्सपोर्ट को बड़ा झटका लग चुका है। यही नहीं चीन और रूस के बीच भी बार्डर विवाद चलता रहता है। वहीं चीन ने रूस के पूर्वी क्षेत्र में मिनिरल के लिए भारी निवेश किया है जिसके कारण रूस को चिंता बनी रहती है। दिन प्रतिदिन चीन कई देशों को धोखा दे कर एक बड़ी महाशक्ति बनता जा रहा था जिसके कारण रूस उस पर कभी भरोसा नहीं कर सकता।
वहीं, दूसरी ओर भारत और रूस के बीच संबंध बढ़ते जा रहे हैं खास कर रक्षा क्षेत्र में। वर्ष 2014 में क्रिमिया घटना के कारण जब रूस पर प्रतिबंध लगे थे तब भी भारत ने रूस से S-400 की डील पक्की की थी। एक तरफ जहां चीन रूस के डिफेंस इंडस्ट्री की तकनीक चुरा कर उसे घाटा पहुंचाता है तो वहीं भारत रूस के हथियारों का सबसे महत्वपूर्ण खरीदार है। रूस को पता है कि भारत कभी भी चीन की तरह पीठ पीछे हमला नहीं करेगा।
इसी वजह से इस बार 33 अतिरिक्त Fighter Jets की पूर्ति कर रूस ने सिग्नल दे दिया है कि वह किसके तरफ झुकाव रखता है। रूस की सरकार द्वारा अधिकृत Russia Today का लद्दाख मामले पर कवरेज भारत के पक्ष में ही रही है। शुरुआत में तो रूस शांति बनाने पर जोर दे रहा है लेकिन अगर पक्ष चुनने का समय आएगा तो यह देश चीन का साथ तो कभी नहीं देने वाला है। अभी बढ़े हुए तनाव के बीच दोनों देशो की सरकारों के बीच 6 हजार करोड़ की होने वाली इस डील से भारत को 12 सुखोई-30 MKI, और 21 मिग-29 लड़ाकू विमान के साथ साथ रूस का भी साथ पक्का हो जाएगा।