विश्व साइकिल दिवस के मौके पर बुधवार को खबर आई कि देश की 69 साल पुरानी साइकिल कंपनी एटलस ने आर्थिक तंगी के कारण फैक्टरी में काम रोक दिया है। भारत की सबसे पुरानी कंपनी एटलस ने लगभग 1000 कर्मचारियों की अस्थायी छंटनी की घोषणा की। विडंबना यह है कि विश्व साइकिल दिवस पर यह फैसला आया।
अचानक फैक्ट्री बंद होने से यहां काम करने वाले कर्मचारियों के आगे अब परिवार चलाने का संकट खड़ा हो गया है। 2 जून तक फैक्ट्री में सामान्य दिनों की तरह काम हुआ। 3 जून की सुबह कर्मचारी काम करने पहुंचे तो ले-ऑफ का नोटिस लगा देखा। इसमें लिखा था कि कंपनी का कामकाज चलाने के लिए रुपये नहीं हैं। न ही उनके पास कोई निवेशक है। कंपनी 2 साल से घाटे में है और अपना दैनिक खर्च भी नहीं निकाल पा रही है, इसलिए कर्मचारियों को ले-ऑफ पर भेजा जा रहा है। साहिबाबाद साइट-4 में साइकिल बनाने वाली इकलौती कंपनी एटलस में लगभग 1000 कर्मचारी काम करते थे।
बता दें कि 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कराची से भारत आए जानकी दास कपूर ने एटलस साइकिल कंपनी की स्थापना 1951 में की थी। कंपनी का साहिबाबाद स्थित यह प्लांट लास्ट था। इससे पहले कंपनी मध्य प्रदेश के मालनपुर और हरियाणा के सोनीपत के प्लांट भी बंद कर चुकी है। बताया जा रहा है कि इस फैक्ट्री में सबसे ज्यादा उत्पादन होता था। कंपनी यहां हर साल लगभग 40 लाख साइकिल बनाती थी।
कुछ वर्षों से भारत की देसी साइकिल उद्योग को बेहद नुकसान उठाना पड़ रहा है। कई कंपनियाँ बंद हो चुकी हैं तो कई बंद होने के कगार पर खड़ी हैं। इसका कारण है, देश में आने वाले बांग्लादेश, श्रीलंका, चीन से कम लागत वाली साइकिल।
दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) पर हुए समझौते के तहत भारत में साइकिल पर इम्पोर्ट ड्यूटी शून्य है, जो भारतीय बाजार में बांग्लादेश और श्रीलंका के साइकिल निर्माताओं को ड्यूटी फ्री साइकिल बेचने में मदद करता है।
इससे भारत में इन देशों से cycles के आयात में भारी वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 में साइकिल और साइकिल के कलपुर्जों का कुल इम्पोर्ट 2011 के 637 मिलियन डॉलर से बढ़कर 862 मिलियन डॉलर हो चुका है। इनमें से कुल आयात का आधा हिस्सा चीन और जापान का है।
लेकिन देखा जाए तो असली समस्या बांग्लादेश और श्रीलंका से आयात में वृद्धि से हुई है और अब यही भारतीय साइकिल उद्योग के लिए एक बड़ा खतरा बन चुकी है।
बता दें कि भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान, भूटान, मालदीव, नेपाल और पाकिस्तान के बीच SAFTA पर 6 जनवरी, 2004 को हस्ताक्षर किए गए थे। हालांकि, यह 2006 में लागू हुआ था।
भारत में बड़ी संख्या में साइकिल निर्माताओं का मानना है कि कम लागत वाली चीनी साइकिल निर्माता अपने उत्पादों को बांग्लादेश और श्रीलंका के रास्ते भारत ला कर बेच रहे हैं और SAFTA का अनुचित लाभ उठा रहे हैं।
चीन SAFTA का सदस्य नहीं है, लेकिन फिर भी अपने उत्पादों को बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए आउटसोर्सिंग करके लाभ उठा रहा है जो भारतीय उद्योगों के लिए खतरा है।
यह चीन से बांग्लादेश और श्रीलंका के आयात से स्पष्ट है। एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश से साइकिल के कल पुर्जों का आयात वर्ष 2011 में 24 मिलियन डॉलर था और 2018 में बढ़कर 65 मिलियन डॉलर हो गया। इसी तरह, श्रीलंका से साइकिल और कल पुर्जों का आयात 19.5 मिलियन डॉलर था। वहीं वर्ष 2018 में यह बढ़ कर 32.3 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया।
इसके अलावा, बांग्लादेश और श्रीलंका साइकिल निर्माता भारत से खरीदना पसंद नहीं करते हैं। वे चीन से खरीदते हैं क्योंकि वहाँ किसी भी साइकिल के कल पुर्जों की कीमत बहुत कम है। इससे भारतीय साइकिल उद्योग को भयंकर नुकसान होता है।
भारतीय साइकिल उद्योग सूक्ष्म, लघु मध्यम और उद्यम (MSME) क्षेत्र के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत, चीन के बाद, साइकिल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, और हर साल लगभग 1.5 करोड़ cycle का निर्माण करता है।
भारतीय साइकिल उत्पादों को उनकी गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। लेकिन चीन से सस्ते साइकिल के आयात ने भारतीय साइकिल निर्माता के सामने खतरा पैदा कर दिया है।
COVID के बाद की दुनिया में जब देश की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की आवश्यकता होगी, तब यही MSME क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सरकार को भी ऐसे MSME को बचाने के लिए सभी उपायों पर ध्यान देना चाहिए। साइकिल उद्योग को बचाने का अर्थ पूरे उद्योग की रक्षा करना होगा।
इसलिए, भारत सरकार को SAFTA के मौजूदा नियमों को संशोधित करने की प्रक्रिया शुरू करना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि SAFTA का इस्तेमाल चीन न कर सके और अपने किसी भी उत्पाद को बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों के जरीये भारतीय बाजार में बेचने का प्रयास न करें। भारत को अगर अपने साइकल उद्योग को बचना है तो जल्द से जल्द यह कदम उठाना होगा।