केंद्र सरकार ने स्कूली शिक्षा में एक बड़े बदलाव का संकेत देते हुए 15 साल बाद NCERT को नये सिलेबस के साथ पूरा पाठ्यक्रम को बदलने का फैसला किया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कहा है कि स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (National curriculum framework) में 15 साल बाद बदलाव होगा और दिसंबर 2020 तक अंतरिम रिपोर्ट दी जाएगी। उम्मीद है कि नया पाठ्यक्रम 2021 के मार्च महीने तक तैयार हो जाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्री ने रमेश पोखरियाल ने ट्वीट कर यह जानकारी दी। भारत में NCERT के पाठ्यक्रमों में बदलाव की मांग कई वर्षों से चली आ रही है। जिस तरह से NCERT में कांग्रेस के तलवे चाटने वाले इतिहासकारों ने अपने हिसाब से कुछ भी लिख कर, इस पुस्तक के माध्यम से युवाओं में हिन भावना को बढ़ावा दिया है उससे मोदी सरकार का यह कदम महत्वपूर्ण ही नहीं है बल्कि अति आवश्यक भी है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने NCERT को निर्देश दिया है कि पाठ्यपुस्तकों में बदलाव करते हुए इस बात का ध्यान रखा जाए कि तथ्यों के अलावा उसमें और कुछ बदलाव न हो। यानि स्पष्ट है कि तथ्यों में बदलाव किए जाएंगे। NCERT में जिस स्तर से लिखा गया है और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है उससे इस तरह के निर्देश आवश्यक थे। इसके साथ ही मंत्रालय ने कहा है कि पाठ्यपुस्तकों में अतिरिक्त चीजें जैसे रचनात्मक सोच, जीवन से जुड़े कौशल, भारतीय संस्कृति, कला आदि को शामिल किया जाना चाहिए। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि NCERT की किताबों में इससे पहले सिर्फ पांच बार यानि 1975, 1988, 2000 और 2005 में बदलाव किया गया है। 2005 में किए गए बदलाव में कांग्रेस के घरेलू इतिहासकारों का खूब योगदान था। सोनिया गांधी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई नई किताबों और सिलेबस में विदेशी आक्रमणकारियों और उपनिवेशवादियों को सौम्य शासकों के रूप में दिखाने और वैदिक सभ्यता और भारतीय महानायकों को मिटाने के लिए किया गया था।
जिस तरह से NCERT में आक्रांताओं का गुणगान किया गया उनमें सबसे हास्यास्पद औरंगज़ेब के बर्बर शासन को धर्मनिरपेक्ष बनाने का प्रयास है। औरंगजेब के काले कारनामों और अत्याचारों को छिपाने के लिए फ्रांसीसी यात्री फ्रेंकोइस बर्नियर का सहारा लिया गया है जो औरंगज़ेब के दरबार में एक चिकित्सक था। इसी तरह भारतीय ग्रन्थों जैसे मनुस्मृति और वेदों को गलत तरीके से दिखाया गया है जिससे भारत के इस अद्वितीय ज्ञान के भंडारों के प्रति युवाओं में एक हिन भावना पैदा हो जाए। NCERT ने प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों को इस तरह से दिखाने का प्रयास किया है जैसे भारतीय ग्रन्थों में महिलाओं की स्वतन्त्रता थी ही नहीं। हिंदू धर्मग्रंथों की सामग्री को तोड़-मरोड़ कर करके ब्राह्मण को निशाना बनाने के लिए किया गया है। कांग्रेस के पालतू इतिहासकारों ने जानबूझकर उन तथ्यों को NCERT में स्थान नहीं दिया जो भारत की गाथा बताते है।
NCERT के इन सभी पहलुओं और इतिहासकारों द्वारा तथ्यों के तोड़-मरोड़ पर Neeraj Atri और Munieshwer A Sagar ने Brainwashed Republic नाम की एक बेहद विस्तृत किताब में बताया है।
बता दें कि जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने वर्ष 2000 में NCERT की पुस्तकों में बदलाव करते हुए भारत की सांस्कृतिक विरासत, और वैदिक गणित, खगोल विज्ञान और हस्तरेखा विज्ञान को सम्मिलित किया था तब पूरा लेफ्ट लिबरल कबाल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था और मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी के ऊपर NCERT का भगवाकरण करने का आरोप लगाया था। इसके बाद जब फिर से कांग्रेस की सरकार वर्ष 2004 में आई तो अगले ही वर्ष NCERT की पुस्तकों में बदलाव कर और जहर भर दिया गया।
भारत के युवाओं और बच्चों को देश की सांस्कृतिक जड़ों के बारे में पढ़ने का अवसर दिया जाना चाहिए। पढ़ाई का इस तरह से राजनीतिकरण कर वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को अपनी ही विरासत से दूर करना उनके पतन का कारण बन सकता है। भारत की शिक्षा का भारतीयकरण किया जाना चाहिए और यदि विपक्ष इसे ‘भगवाकरण’ कहता है तब भी यह बदलाव किया जाना चाहिए।
वर्ष 2005 में किए गए नुकसानों को सही करने का यही अवसर है। वाजपेयी सरकार ने सही दिशा में एक बड़ा कदम उठाया था, और अब मोदी सरकार को भारत के भविष्य को बचाने के लिए यह कार्य अपनी देख रेख में करना होगा।