इस बात में किसी को कोई शक नहीं है कि चीन ने पिछले दो दशकों में बड़ी ही तेजी से विकास किया है और अपने लोगों को गरीबी के अभिशाप से मुक्त किया है। चीन ने वर्ष 2020 तक अपने यहाँ गरीबी को पूरी तरह मिटाने का संकल्प भी ले रखा है, और चीनी सरकार ने हाल ही में यह दावा किया था कि कोरोना के बावजूद वे अपने इस टार्गेट को पूरा कर लेंगे। लेकिन क्या चीन के ये दावे वाकई विश्वसनीय हैं? क्या चीन असल में इतना अमीर है या फिर वह दुनिया के सामने जानबूझकर अमीर होने का दिखावा करता है।
यह सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं क्योंकि हाल ही में चीन के प्रिमियर ली केकियांग ने यह दावा किया कि कोरोना ने चीनी लोगों के जीवन को मुश्किल कर दिया है क्योंकि अभी भी चीन में 60 करोड़ लोगों की औसत मासिक आय 1000 युआन या कहिए लगभग 10 हज़ार भारतीय रुपये से कम है। प्रिमियर ली केकियांग का यह बयान ऐसे समय में आया है जब दुनियाभर में चीन के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की बात हो रही है और चीन से हर्जाना वसूलने की मांग उठाई हो जा रही है। ऐसे में ली के इस बयान के बाद सवाल बनता है कि क्या चीन ने इन संभावित प्रतिबंधों से बचने के लिए अपना poverty card निकाला है?
बता दें कि ली ने हाल ही में सालाना संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था, ‘‘चीन की औसत प्रति व्यक्ति आय 30 हजार युआन यानी 4,193 डॉलर है। हालांकि, इनमें से 60 करोड़ से अधिक लोग ऐसे हैं जिनकी मासिक औसत आय महज एक हजार युआन यानी करीब 140 डॉलर ही है। यह आय चीन के किसी शहर में एक कमरे के किराये के लिये भी पर्याप्त नहीं है।’’ उन्होंने आगे कहा कि “कोविड-19 के प्रभाव के कारण कई परिवारों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। चीन अब पूरी तरह से गरीबी को दूर करने के मुश्किल काम की चुनौती से जूझ रहा है। कोरोना वायरस महामारी से पहले चीन में करीब पचास लाख लोग आधिकारिक गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर कर रहे थे। इस महामारी के असर से अब कई लोग वापस गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिये गये हैं”।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन ने पिछले दो दशकों में बेतहाशा दौलत अर्जित की है। हालांकि, इसके साथ ही चीन में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई भी गहरा गयी है। वर्ष 2018 की Zhongguo Institute की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में टॉप 100 अमीरों के पास उतनी ही संपत्ति है, जितनी कि नीचे के 42 करोड़ लोगों के पास! यह अपने आप में बयां करता है कि चीन में गांवों में रहने वाली आबादी का क्या हाल है। चीन की यह अमीरी सिर्फ बड़े शहरों तक ही सीमित है।
वर्ल्ड बैंक के डेटा के अनुसार चीन में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की औसत आय शहरी लोगों की औसत आय से लगभग 3 गुणा कम है। और साल दर साल यह फासला बढ़ता ही जा रहा है।
सवाल यह है कि आखिर चीन के प्रिमियर ने अब क्यों दुनिया के सामने अपनी गरीबी का रोना रोया है? बता दें कि कुछ दिनों पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बयान में कहा था कि आवश्यकता पड़ने पर वे चीन से हर्जाना वसूलने से जुड़े कदम भी उठा सकते हैं। ट्रम्प ने कहा था “वो (चीन) चाहते तो कोरोना के फैलाव को रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। हम उनसे खुश नहीं हैं। उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराने के कई तरीके हैं”। इसके अलावा मार्च महीने में अमेरिका के एक डिस्ट्रिक्ट में एक लॉ फ़र्म ने इस वायरस को फैलाने के लिए चीन के खिलाफ 20 ट्रिलियन US डॉलर का मुकदमा दर्ज़ किया था। चीन को डर है कि कहीं चीन की हालत वैसी ना हो जाए, जैसी प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी की हो गयी थी। कहीं जर्मनी की तरह ही चीन को भी आने वाले दशकों तक कई देशों को हर्जाना चुकाना पड़े। यही कारण है कि अब चीन के प्रिमियर ने दुनिया के सामने अपने आप को गरीब दिखाने का रास्ता चुना है। चीन ने दुनिया का ध्यान कोरोना से हटाने के लिए पहले मास्क डिप्लोमेसी की, फिर दक्षिण चीन सागर, हाँग-काँग और भारत-चीन सीमा पर विवाद को बढ़ाया, यह सब फेल हो गया तो अब चीन ने अपना poverty card निकाला है। हालांकि, इस बात की संभावना कम ही है कि दुनिया फिर से चीन से झांसे में आने की गलती करेगी।