भारत-चीन विवाद में अब कूद पड़ा ताइवान, भारत में निवेश बढ़ाने का किया ऐलान

अमेरिका के बाद अब ताइवान को भारत में दिखा नया दोस्त!

ताइवान

भारत और चीन के बीच बढ़ते हुए सीमा विवाद के बीच चीन के खिलाफ बोलने वाले देश अब खुलकर भारत के पक्ष आते दिख रहे हैं। अमेरिका और रूस ने तो स्पष्ट शब्दों में इशारा किया है कि वे भारत के साथ हैं। अब चीन के खिलाफ और उसके अत्याचार से प्रभावित देश ताइवान भारत से अपने व्यापारिक और राजनयिक सम्बन्धों को बढ़ाने की ओर इशारा कर रहा है। इसी का संकेत देते हुए ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन भारत में और निवेश करने की योजना बना रही है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, फॉक्सकॉन के चेयरमैन ने कहा कि कंपनी भारत में अपने निवेशों के बारे में अगले कुछ महीनों में घोषणा कर सकती है।

बता दें कि फॉक्सकॉन पहले से ही ऐप्पल और Xiaomi के लिए भारत में स्मार्टफोन बनाती है, लेकिन मार्च में कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण स्मार्टफोन के उत्पादन को रोक दिया था। चेयरमैन Liu Young का मानना है कि भारत में फॉक्सकॉन लिए काफी अनुकूल परिदृश्य दिख रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण फिलहाल परिचालन प्रभावित होने के बावजूद आगे विकास के लिए जबरदस्त अवसर दिखाई दे रहा है।  उन्होंने कहा ‎कि वे भारत में अपने अगले कदम के लिए पूरी तरह तैयार हैं और संभवत: कुछ महीनों में वे अपनी वेबसाइट अपने निर्णयों का खुलासा कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि वे भारत में और निवेश करना चाहते हैं।

वहीं इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार कुछ दिन पहले, एक उच्च स्तरीय ताइवानी प्रतिनिधिमंडल ने कर्नाटक सरकार से कर्नाटक के तुमकुर शहर के पास एक ताइवानी औद्योगिक टाउनशिप सेटअप करने की अनुमति देने की मांग की है। इसके लिए इस प्रतिनिधिमंडल ने उप मुख्यमंत्री सीएन अश्वथ नारायण से मुलाक़ात भी की थी।

उपमुख्यमंत्री ने जवाब में कहा यह कि सरकार ताइवान को कर्नाटक में भारी निवेश करने के लिए भूमि की मंजूरी और अन्य बुनियादी सुविधा देने में उत्सुक है।

ऐसे समय में जब भारत का चीन के साथ बॉर्डर विवाद अपने चरम पर है तब ताइवान का इस तरह से भारत में निवेश करना और सम्बन्धों को बढ़ाना दिखाता है कि ताइवान इस विवाद में भारत के साथ खड़ा है। भारत भी अब चीन पर दबाव बनाने के लिए One China Policy को लात मारते हुए जल्द ही ताइवान के साथ अपने राजनयिक सम्बन्धों को बढ़ा सकता है। भारत पहले ही चीन के खिलाफ कई ऐसे कदम उठा चुका है जिससे चीन आग बबूला है। अब चीन को उसकी औकात बताते हुए ताइवान के साथ भी अपने सम्बन्धों को और गहरा करने की दिशा में कदम उठा सकता है। पीएम मोदी ने चीन के विरोध के बावजूद पिछले महीने अपने दो सांसदों को ताइवान की राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण शामिल होने की अनुमति दी थी।

यही नहीं ताइवान चाहता है कि भारत भी अमेरिका जैसे ही उसका एक महत्वपूर्ण साझेदार बने और साथ ही WHO में भी ताइवान के एंट्री के लिए आवाज उठाए। भारत वर्ष 1949 से One China Policy को मानता आया है और यहाँ तक कि 1962 में युद्ध के बाद भी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस नीति का बहिष्कार नहीं किया। पर अब जिस तरह से चीन भारत के क्षेत्रों को हड़पने के लिए विवाद पैदा कर रहा है और कायरों की तरह पीछे से भी हमला करने से बाज नहीं आ रहा है उसे देखते हुए अब पीएम मोदी जरूर इस One China Policy को कूड़े के ढेर में फेंकने पर विचार कर रहे होंगे। ताइवान को भी यह पता है कि एशिया में अगर कोई देश चीन को सीधे तौर पर सबक सीखा सकता है तो वह भारत ही है। इसी वजह से ताइवान भारत के साथ अपने सम्बन्धों को और बढ़ाना चाहता है। ताइवान भारत को एक दोस्त मानता है और इसलिए उसने भारत में बड़े स्तर पर निवेश करने का संकेत दिया है जिससे यह पता चलता है कि ताइवान भी भारत के साथ आना चाहता है।

 

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