जैसे-जैसे भारत और चीन के बीच LAC पर विवाद बढ़ रहा है और भारत की सेना चीन को मुंहतोड़ जवाब दे रही है वैसे-वैसे पाकिस्तान के हाथों से भी बहुत कुछ निकलता जा रहा है।
दरअसल, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कर्ज में डूब चुकी है लेकिन अब एक नई समस्या में भारत और चीन के बीच विवाद बढ़ने से China Pakistan Economic Corridor (CPEC) के ऊपर अब काले बादल मंडराने लगे हैं।
यह स्पष्ट है कि भारत और चीन के बीच जैसे-जैसे विवाद बढ़ेगा वैसे-वैसे चीन को अपने इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को रोकने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है और इस प्रोजेक्ट के रुकने का अर्थ है पाकिस्तान की रही-सही उम्मीदें भी डुबना। यह सभी को पता है कि किस तरह से पाकिस्तान ने अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अपने आप को चीन के हाथों बेच दिया है और CPEC का निर्माण करवा रहा है।
इस प्रोजेक्ट की कीमत पहले 46 बिलियन डॉलर थी लेकिन अब इसकी कीमत बढ़ कर 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो चुकी है। परंतु आज भी यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ है और एक अमेरिकी एक्सपेर्ट Preity Upala के अनुसार CPEC एक ट्रिलियन डॉलर की गलती साबित होने वाला है।
CPEC ने पाकिस्तान की राजनीतिक गलियारों में खूब उत्साह पैदा किया था, लेकिन इस चीन के इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम ने कभी तेज़ी पकड़ी और आज तक CPEC परियोजनाओं का केवल एक चौथाई हिस्सा ही पूरा हो पाया है।
इस्लामाबाद यह उम्मीदें लगाए बैठा था कि इन नए परिवहन नेटवर्क, ऊर्जा परियोजनाएं और Special Economic Zones के निर्माण से उसकी अर्थव्यवस्था को फिर से जीवित होने का मौका मिलेगा लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। पाकिस्तान के सपने सपने ही रह गए।
सिर्फ भारत और चीन के बॉर्डर विवाद के कारण ही CPEC को नुकसान नहीं होगा बल्कि अब तो पाकिस्तान के अंदर भी इस प्रोजेक्ट को लेकर विरोध शुरू हो चुका है। खैबर पख्तूनख्वा प्रांतीय विधानसभा ने CPEC के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है। CPEC की कई परियोजनाओं का निर्माण यहां किया जाना है।
इसके अलावा, पश्चिमी पाकिस्तान में, बलूच स्वतंत्रता सेनानी नियमित रूप से पाकिस्तानी और चीनी प्रोजेक्ट्स पर हमला करते हैं। इन हमलों से अब CPEC के अंदर आने वाला ग्वादर पोर्ट के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो चुका है।
पाकिस्तान पर चीन के इस CPEC प्रोजेक्ट का ऋण 80 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है और पाकिस्तान को इस ऋण का नब्बे प्रतिशत राष्ट्रीय ऋण के रूप में देना है। पाकिस्तान जानता है कि वह कभी भी इस ऋण को नहीं चुका पाएगा और इसके बाद चीन इन सभी प्रोजेक्ट्स पर अपना कब्जा जमा लेगा जैसा इसने श्रीलंका के हम्बनटोटा में किया था। परंतु पाकिस्तान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। वह किसी भी कीमत पर अपने “all weather ally” का साथ नहीं छोड़ना चाहता है और न ही उसमें इतनी हिम्मत बची है।
चीन भारत को पूर्वी क्षेत्र से घेरना चाहता है और इसी कारण से उसने पाकिस्तान में CPEC की शुरुआत की थी जिससे उसे ग्वादर पोर्ट का एक्सेस मिल जाए और वह हिन्द महासागर से सीधा जुड़ जाए। अगर भारत और चीन के बीच इसी तरह से विवाद बढ़ता रहा तो चीन को अपना ध्यान भारत की ओर लगाने के लिए पाकिस्तान के इस प्रोजेक्ट को छोड़ना होगा या फिर रोकना होगा। वहीं इस प्रोजेक्ट के रुकने का अर्थ है इसकी कीमत में और अधिक वृद्धि और फिर कर्ज में भी इजाफा।
यही नहीं अगर भारतीय सेना ने इसी तरह से PLA के खिलाफ कार्रवाई जारी रखी तो उसका असर सीधे CPEC पर होगा क्योंकि CPEC आक्साई चिन यानि चीन अधिकृत लद्दाख और गिलगिट-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है। ये दोनों भारतीय क्षेत्र हैं, और चीन तथा पाकिस्तान ने इन दोनों क्षेत्रों पर अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है।
अब भारत अपने बॉर्डर को लेकर अधिक दृढ़ हो चुका है और पिछले ही वर्ष जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया था। यही नहीं उस दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने इन दोनों क्षेत्रों को भारत का अभिन्न अंग बताया था। उसके बाद भारत ने नया नक्शा भी जारी किया था जिसमें इन दोनों ही क्षेत्रों को भारत का हिस्सा बताया गया था। जैसे-जैसे बॉर्डर पर विवाद बढ़ता जाएगा भारत इस परियोजना की अवैधता को भी वैश्विक स्तर पर उठाने से पीछे नहीं हटेगा। कुछ दिनों पहले ही भारत के मौसम विभाग ने राष्ट्रीय चैनल पर गिलगिट-बाल्टिस्तान का के मौसम की जानकारी देनी शुरू की थी।
अगर CPEC पूरा नहीं होता है तो यह पाकिस्तान के लिए किसी भयानक तबाही से कम नहीं होगा, जो उसको चीन का गुलाम बना देगा। बढ़ते कर्ज और लागतों के बावजूद, पाकिस्तान कभी भी चीन को इस प्रोजेक्ट के लिए ना नहीं कह पाएगा। अपने ऋण को न चुका पाने के एवज में पाकिस्तान को अपने देश की जमीन से चीन को भुगतान करना होगा।