लगता है कि वामपंथियों के दिन अब लद गए हैं। तभी शायद अब कुछ भी भारत विरोधी या समाज विरोधी कार्य करने पर उन्हे अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर अब किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिलती। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित पत्रकार विनोद दुआ को उनके विरुद्ध चल रहे मुकदमे में किसी प्रकार की राहत देने से साफ मना कर दिया है।
दरअसल HW न्यूज़ नेटवर्क के लिए काम कर रहे विनोद दुआ ने हाल ही में कुछ बेहद भड़काऊ वीडियो पोस्ट किए थे, जिसमें उसने पीएम मोदी को निशाना बनाने का प्रयास किया था, और साथ ही वुहान वायरस से उत्पन्न मजदूरों के संकट पर टिप्पणी करते हुए लोगों को अराजकता फैलाने के लिए भड़काने की कोशिश भी की थी, जिसपर शिमला सहित देश के कई हिस्सों में विनोद के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज की गई थी।
परंतु मामला क्या था? अपने एक प्रोग्राम में विनोद दुआ ने पीएम मोदी के विरुद्ध मजदूरों के संकट को लेकर निशाना साधने का प्रयास किया था। इसके अलावा जनाब ने ब्लैक लाइव्स मैटर के तर्ज पर भारत में भी हिंसक प्रदर्शन करने के लिए लोगों को भड़काने की कोशिश की थी। इसीलिए उनपर देशद्रोह और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप में शिमला में एक भाजपा नेता ने एफ़आईआर दर्ज की गई थी।
इसीलिए विनोद दुआ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, ताकि इन सभी एफ़आईआर को निरस्त किया जा सके और उन्हें गिरफ्तार न किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हे गिरफ्तारी से राहत तो अवश्य दी, परंतु कोर्ट को कोई ऐसा पहलू नहीं दिखा जिसके आधार पर शिमला पुलिस द्वारा कार्रवाई को निरस्त किया जा सके। जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस विनीत शरण सहित तीन न्यायाधीशों ने यह निर्णय सुनाया।
रोचक बात तो यह है कि अपनी परंपरा के विपरीत सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय अवकाश के दिन, यानि रविवार को दिया। इसी से आप समझ सकते हैं कि मामला कितना गंभीर रहा होगा। विनोद दुआ का वैसे भी विवादों के साथ चोली दामन का साथ रहा है। पीएम मोदी के विरोध के नाम पर फेक न्यूज़ फैलाने के लिए इन्हे अक्सर आलोचना का सामना भी करना पड़ा है।
उदाहरण के लिए पिछले वर्ष विनोद दुआ ने आचार संहिता का घोर उल्लंघन करते हुए लोकसभा चुनाव खत्म होने से पहले ही चुनाव के एक्ज़िट पोल जारी कर दिये थे। चुनावों के समय में ऐसे किसी एक्ज़िट पॉल को प्रकाशित करना चुनाव आयोग के नियमों के खिलाफ है। चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के मुताबिक मतदान के समय एक्ज़िट पॉल या ओपिनियन पॉल के लिए सर्वे तो हो सकते हैं, लेकिन उनके नतीजों को प्रकाशित नहीं किया जा सकता। बाद में इस इस वीडियो को यूट्यूब से हटा लिया गया था, लेकिन तब तक लगभग साढ़े 5 लाख लोग इसे देख चुके थे।
यही नहीं, जनाब पर एक महिला पत्रकार के साथ बदसलूकी और छेड़खानी करने के आरोप भी लगे हुए हैं। मी टू अभियान के दौरान निष्ठा जैन नामक पत्रकार ने विनोद दुआ के विरुद्ध ये आरोप लगाकर पूरे पत्रकार खेमे में सनसनी फैलाई थी। उस समय विनोद “द वायर” के लिए काम कर रहे थे, पर उन्हे नौकरी से निकालना तो दूर की बात, द वायर ने इस कृत्य की निंदा तक नहीं की। इसके अलावा विनोद दुआ समय समय पर मोदी सरकार के विरोध के नाम पर भारत के विरुद्ध विष उगलते रहे हैं, पर अब और नहीं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से इतना तो सिद्ध हो चुका है कि अब विनोद दुआ हो या कोई और वामपंथी, अभिव्यक्ति के स्वतन्त्रता के नाम पर उनकी मनमर्ज़ी अब और नहीं चलेगी, और मुकदमा जारी रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट की उक्त पीठ निस्संदेह बधाई के पत्र है।