अब रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी RJD छोड़ दी, लालू जेल में है, यानि चुनावों से पहले ही पार्टी खत्म

एक थी RJD!

बिहार में में विधानसभा चुनाव अक्टूर नवंबर में होने हैं और यह चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे बिहार की राजनीति में रोज एक नया भूचाल आ रहा है। अब एक बड़ी खबर में बिहार के कद्दावर नेता और RJD के उपाध्यक्ष तथा लालू यादव के दाहिने हाथ माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह ने RJD से इस्तीफा दे दिया है। ये वही रघुवंश प्रसाद हैं जिन्होंने लालू के साथ मिलकर आज RJD जो कुछ भी है, उसे खड़ा किया है।

मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि रघुवंश प्रसाद पूर्व सांसद रामा सिंह को RJD में शामिल किए जाने के कारण नाराज हुए हैं। हालांकि, इससे पहले भी रघुवंश प्रसाद पार्टी से कई बार नाराज हो चुके हैं, परंतु हर बार लालू के कहने पर मान भी जाते थे। इसी वर्ष फरवरी महीने में भी रघुवंश प्रसाद ने लालू यादव से जेल में मुलाकात की थी।

यह बिहार की राजनीति में कोई छोटी मोटी खबर नहीं है, बल्कि आने वाले चुनाव की कायाकल्प कर देने वाली खबर है। जिस RJD को रघुवंश प्रसाद ने लालू के साथ मिल कर एक मजबूत पार्टी बनाया, उनके जाने से उस पार्टी की नींव ही धसक गयी है। एक तरफ लालू जेल में है तो वहीं, दूसरी तरफ उनके बेटों की नौटंकी से पूरी पार्टी परेशान हैं। लालू को यह सब पहले से पता था शायद इसलिए उन्होंने जब नई राष्ट्रीय कमेटी की घोषणा की थी तब RJD को जोड़ने के लिए रघुवंश प्रसाद का नाम उपाध्यक्ष के रूप में राबड़ी देवी से भी ऊपर रखा था। परंतु अब उन्होंने ने भी उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है और खबरें उनकी पार्टी छोड़ने की आ रही हैं।

हिंदुस्तान की रिपोर्ट की माने तो रघुवंश प्रसाद सिंह RJD के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के कार्यशैली से भी वह नाराज चल रहे थे। इसी गुस्से में उन्होंने पार्टी कार्यालय आना भी छोड़ दिया था। इसके बाद रामा सिंह के RJD में शामिल होने से उनकी नाराजगी और बढ़ गयी। इसी का नतीजा सभी के सामने है।

बिहार के कुछ ही नेता ऐसे हैं या थे जिन पर कोई कभी भ्रष्टाचार या दबंगई या अपराध का आरोप नहीं लगा और रघुवंश प्रसाद उनमें से एक हैं। कभी गोयनका कॉलेज में गणित पढ़ाने वाले एक लेक्चरर, रघुवंश प्रसाद ने 1970 के दशक में राजनीति में कदम रखा था। वर्ष 1977 के चुनाव में सीतामढ़ी की बेलसंड सीट पर जीत दर्ज की थी। लालू से इनकी दोस्ती और गहरे संबंध भी उसी दौर की है। जब वर्ष 1988 में जनता पार्टी के कद्दावर नेता कर्पूरी ठाकुर का निधन हुआ तब उनकी जगह को भरने की रेस में लालू प्रसाद यादव सबसे आगे थे। उस दौरान लालू का साथ रघुवंश प्रसाद सिंह ने ही दिया था। इसके बाद जब वर्ष 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए तो उस दौरान रघुवंश प्रसाद सिंह बेहद कम अंतर से चुनाव हार गए परंतु जनता पार्टी जीत गयी। जीत के बाद जनता पार्टी की तरफ से लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने और तब उन्होंने रघुवंश प्रसाद सिंह को विधान परिषद भेज दिया। वहीं से इन दोनों की जुगलबंदी शुरू हुई थी जो आज तक जारी है। वर्ष 1999 से 2004 तक लोकसभा के अंदर विपक्ष में बैठने वाले रघुवंश प्रसाद ने कांग्रेस से बेहतर तरीके से विपक्ष के एक नेता की भूमिका निभाई। इस कारण से उन्हें One Man Opposition भी कहा जाने लगा था। जब UPA सत्ता में आई तब रघुवंश प्रसाद को ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली थी। इस मंत्रालय को संभालने के दौरान रघुवंश प्रसाद सिंह ने मनरेगा कानून को बनवाने और पास करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जो आज भी ग्रामीण भारत में बेरोजगारों को रोजगार दे रहा है।

लालू के जेल जाने के बाद ये रघुवंश प्रसाद ही थे जिन्होंने RJD को जोड़े रखा था और टूटने से बचाया था। परंतु अब यह जोड़ने वाली कड़ी ने भी RJD का दमन छोड़ दिया है। उनके जाने से RJD सिर्फ बिखरेगी ही नहीं बल्कि खत्म हो जाएगी।

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