आखिर क्यों शी जिनपिंग ‘व्यक्तिगत’ तौर पर प्रधानमंत्री मोदी से नफरत करते हैं?

इसके पीछे कारण दिलचस्प है !

शी जिनपिंग

अगर वैश्विक राजनीति को समझना है तो आपको अपने क्षेत्र की राजनीति की समझ होनी चाहिए। जिस तरह से किसी क्षेत्र में एक नेता अपने प्रतिद्वंदी से राजनीति के किसी भी खेल में हारना नहीं चाहता है वैसे ही वैश्विक स्तर पर भी एक देश का नेता दूसरे देश से अधिक पैठ बनाने की जुगत में रहता है और जब वह किसी दूसरे से हार जाता है तो वह उससे घृणा करने लगता है।

यही हाल आज चीन के शी जिनपिंग का भारत के पीएम मोदी के लिए है। प्रधानमंत्री मोदी के वैश्विक स्तर पर उदय के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के वैश्विक और एशिया के सबसे बड़े नेता बनने के सपनों को गहरा धक्का लगा। आज हमें शी जिनपिंग का भारत के प्रति जो रवैया देखने को मिल रहा है वो पीएम मोदी से हार से पैदा हुई व्यक्तिगत घृणा है। शी जिनपिंग की यह घृणा तब पैदा हुई थी जब वर्ष 2017 में भारत ने पीएम मोदी के नेतृत्व में डोकलाम स्टैंडऑफ के दौरान एक कदम भी पीछे हटने से मना कर दिया था तब PLA को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा था। पीएम मोदी ने जिस तरह से चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था के दबाव में झुके बिना उसे पीछे हटने पर मजबूर किया था उससे उनकी मजबूत नेता की छवि और मजबूत हो गयी थी। विश्व में भी सभी को यह पता चल गया था कि अब भारत की सत्ता एक ऐसे नेता के हाथों में है जो चीन को उसी की भाषा में जवाब देने से पीछे नहीं हटेगा।

डोकलाम स्टैंडऑफ भारत की विदेश और रक्षा नीति में एक अहम मोड़ था जहां से भारत की दृढ़ता विश्व के सामने आई। इससे शी जिनपिंग के विस्तारवादी नीति को ऐसा झटका लगा कि वे उससे आज तक उबर नहीं पाये हैं।

जब भारत ने डोकलाम में चीन की आँखों में आंखे डाल कर पीछे हटने पर मजबूर किया था तब भारत ने अपना स्टैंड साफ करते हुए यह संदेश दिया था कि अब भारत भी एशिया का एक बड़ा हिस्सेदार है और वह किसी भी मुद्दे पर किसी और की मनमानी नहीं चलने देगा।

इसके बाद जब शी जिनपिंग ने अपने सबसे महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट BRI के जरिये भारत को लुभाने की कोशिश की थी तब भी भारत ने चीन को साफ मना कर दिया और तब पीएम मोदी ने Shanghai Cooperation Organisation (शंघाई सहयोग संगठन) समिट में अपने संबोधन के दौरान कहा था कि किसी भी मेगा कनेक्टिविटी परियोजना को संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए।

पीएम मोदी शुरू से ही शी जिनपिंग की दूसरे देशों को हड़पने की योजना को समझते थे और BRI भी शी जिनपिंग के उसी प्लान का हिस्सा था। परंतु भारत ने चीन को वापस आईना दिखाकर इस प्रोजेक्ट को ठुकरा दिया था।

2017 के डोकलाम के बाद पीएम मोदी सिर्फ वैश्विक स्तर ही नहीं बल्कि चीन में भी लोकप्रिय हो गए जो शी जिनपिंग के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं था। इसके बाद उनके मन में पीएम मोदी के लिए घृणा बढ़ती गयी। वर्ष 2018 में पेकिंग विश्वविद्यालय के शिक्षाविद, प्रोफेसर Wang Dong ने कहा था,मेरे अनुसार, पीएम मोदी एक सीक्रेट सुपरस्टार नहीं हैं, बल्कि वह सुपरस्टार हैं। वह भारत के सबसे मजबूत और प्रभावी नेताओं में से एक है।

आज पीएम मोदी विश्व में सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक है और 135 करोड़ की जनता के नेता के तौर पर उन्होंने एक बार नहीं, बल्कि कई बार यह साबित भी किया है। इस तरह से वैश्विक लोकप्रियता वाला नेता शायद ही आज के जमाने में मिलेगा, वहीं शी जिंपिंग की बात करें तो उनकी लोकप्रियता सिर्फ विश्व ही नहीं बल्कि चीन में भी घट चुकी है।

यही कारण है शी जिनपिंग की नफरत पीएम मोदी के लिए बढ़ती जा रही है और वे किसी भी तरह से पीएम मोदी की लोकप्रियता को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। कभी बार्डर पर तनाव बढ़ाकर तो कभी पाकिस्तान से UNHRC में भारत के खिलाफ बयान दिलवा कर। परंतु हर बार पीएम मोदी ने शी जिनपिंग की चालों का मुंहतोड़ जवाब दिया है और बता दिया है कि भारत अब पहले वाला भारत नहीं है। पीएम मोदी ने अपना स्टैंड किसी भी मुद्दे पर एकदम स्पष्ट रखा है चाहे वो बॉर्डर हो या BRI या फिर RCEP. भारत के इसी स्टैंड से शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षा को एक के बाद एक कई झटके लगे हैं जिससे उनके मन में पीएम मोदी के लिए घृणा इतनी बढ़ चुकी है कि वे अब बॉर्डर पर कायरतापूर्ण हमले करवाने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं।

अपने क्लियर स्टैंड से पीएम मोदी को चीन में भी एक मजबूत नेता बना दिया और शी जिनपिंग इससे हताहत चुके है। इस कदर हताहत हुए थे कि उन्होंने चीन में अपने प्रतिद्वंदियों को भी कैद करना शुरू कर दिया था। शी जिनपिंग चीन के संविधान में बदलाव कर अपने आप को माओ से भी बड़े नेता के रूप में स्थापित करने का सपना देख रहे थे। उसी क्रम में उन्होंने अपनी ही पार्टी के Sun Zhengcai को कैद करवा लिया जिससे उनके पद को किसी प्रकार का खतरा न हो। लेकिन कोरोना महामारी की वजह से फिर से CCP में दरार पड़ चुकी है और शी के खिलाफ विरोध बढ़ रहा है। इसी विरोध को दबाने के लिए और राष्ट्रवाद को फिर से ऊपर लाने के लिए शी जिनपिंग ने भारत और पीएम मोदी के खिलाफ बॉर्डर पर तनाव बढ़ाने की कोशिश की। पर फिर से उन्हें पीएम मोदी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। शी जिनपिंग के मन में पीएम मोदी के लिए इस प्रकार से घृणा और डर दोनों बैठ चुका है कि वे पीएम मोदी के भाषण और वैबसाइट को भी चीन में बैन करवा चुके हैं। इससे देख कर यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि यही व्यक्तिगत घृणा चीन के पतन की कहानी का कारण बनेगा।

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