टेलिकॉम और पावर क्षेत्र में चीनी घुसपैठ के बाद अब सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में चीन की घुसपैठ को कम करने के लिए एक्शन लेना शुरू किया है। गलवान में हुए चीनी हमले के बाद से सरकार ने देश में चीनी दखल को कम करने के लिए लगातार काम कर रही है। इसी क्रम में 15 जुलाई को सरकार और सुरक्षा अधिकारियों की एक मीटिंग के दौरान चीन और CCP से संबंध रखने वाले संस्थान और कंपनियों का भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में घुसपैठ का मुद्दा उठा था। इस मीटिंग के दौरान कई राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों ने शिक्षा क्षेत्र में चीनी घुसपैठ को लेकर चिंता जताई है।
जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा एजेंसियों की ओर से इस दौरान एक प्रजेंटेशन दी गई थी, जिसमें यह बताया गया कि किस तरह से चीन कंपनियां टेलिकॉम और उच्च शिक्षा क्षेत्र में घुसपैठ कर चुकी हैं। रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि देश में कई यूनिवर्सिटी और कॉलेज बिना जरूरी परमिशन के ही चीनी संस्थानों के साथ MOU साइन करते हैं।
अधिकारियों ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि चीन सरकार की फंडिंग वाले कन्फुसियस इन्स्टिच्युट अपनी चीनी हान भाषा को प्रमोट करने के लिए स्थानीय संस्थान के साथ करार करते हैं। चीन एक कम्युनिस्ट देश है और वहाँ की लगभग सभी संस्था CCP के नियंत्रण में। CCP उन्हीं संस्थाओं की मदद से अपने प्रोपोगेंडे को अन्य देशों में फैलाता है। यही कारण है कि चीनी संस्थान अन्य देशों में जा कर वहाँ की शैक्षणिक संस्थाओं के साथ MoU साइन करता है जिससे उस देश के शिक्षा क्षेत्र को प्रभावित कर उसे चीन और CCP के प्रति अनुकूल बनाया जा सके और CCP को अपना प्रोपोगेंडा फैलाने में आसानी हो। कन्फुसियस इंस्टिट्यूट्स इसी का एक उदाहरण हैं। अब अमेरिका से लेकर कई यूरोपीय देश जैसे डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम और फ्रांस और स्वीडन ने इन Confucius Institute (कन्फुसियस इन्स्टिच्युट) को बंद करने का निर्णय लिया है। भारत के अंदर भी ये संस्थान काफी समय से खुफिया एजेंसियों के रडार पर हैं। वर्ष 2018 की Daily Pioneer की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय खुफिया एजेंसियों को संदेह है कि बीजिंग खुफिया जानकारी जुटाने के लिए दुनिया भर में कन्फुसियस इन्स्टिच्युट का उपयोग कर रहा है। मुंबई विश्वविद्यालय में एक कन्फुसियस केंद्र की स्थापना और वेल्लोर, सुलूर, कोयम्बटूर और कोलकाता में ऐसे अन्य संस्थानों की स्थापना के प्रस्ताव के बाद ही भारतीय गुप्त एजेंसियों ने चिंता जाहिर की है।
अब केंद्र सरकार ने भी एक्शन लेते हुए शिक्षा और टेलिकॉम मंत्रालय को अपने सेक्टर्स में चीनी कंपनियों की घुसपैठ की समीक्षा करने के लिए कहा है। सुरक्षा एजेंसियों के इस आगाह के बाद सरकार ने इन दोनों मंत्रालय को अगले कदमों का ब्लूप्रिंट बनाने को कहा है।
बता दें कि कई भारतीय यूनिवर्सिटियों ने चीनी संस्थान या कंपनियों के साथ MOU साइन किया है। वर्ष 2012 में Manipal University ने चीन की दो बड़ी यूनिवर्सिटीज़ Tianjin University और Shanghai’s Tongji university के साथ MOU साइन किया था। इस MOU के साथ, Manipal University चीनी विश्वविद्यालयों के साथ औपचारिक MoU करने वाला पहला भारतीय शैक्षणिक संस्थान बना था।उसके बाद कई विश्वविद्यालयों ने चीनी संस्थानों के साथ करार किया। वर्ष 2015 में O. P. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (JGU) के जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स (JSIA) ने चीन के Tsinghua University के साथ MOU पर हस्ताक्षर किए था। वहीं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भुवनेश्वर ने वर्ष 2016 में चीन की Shanghai Jiao Tong University, के साथ धातु, खनिज और सामग्री इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सहयोगात्मक अनुसंधान के लिए एक MoU पर हस्ताक्षर किया था। वर्ष 2017 में DKTE Society’s Textile and Engineering Institute ने चीन के Wuhan Textile University के साथ MOU पर हस्ताक्षर किया था। वहीं वर्ष 2018 में बेंगलुरु की एलायंस यूनिवर्सिटी ने चीन के Fujian Provincial Department of Education के साथ शैक्षिक आदान-प्रदान और सहयोग के संबंध में MOU साइन किया था। इनमें से अधिकतर MoU शोध और छात्रों के एक्स्चेंज पर ही आधारित होते हैं।
चीनी संस्थानों या विश्वविद्यालयों के साथ MOU या किसी प्रकार के समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले शिक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से अनुमोदन की आवश्यकता होती है। पिछले वर्ष 1 अक्टूबर को UGC ने विश्वविद्यालयों इस विषय पर आगाह भी किया था। उस दौरान UGC ने कहा था कि सरकारी सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों और निजी विश्वविद्यालयों दोनों ही अगर किसी चीनी संस्थान के साथ किसी प्रकार के समझौते करने जा रहे हैं, या कर चुके हैं तो उसे तुरंत रोक दें और शिक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से अनुमोदन के बाद ही कोई कदम उठाए।
भारत के शिक्षा क्षेत्र में घुसपैठ बढ़ना एक चिंता का विषय है जिसे रोकने के लिए सरकार को तुरंत कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। पिछले वर्ष ही UGC ने पत्र लिख कर सभी यूनिवर्सिटियों को आगाह किया था लेकिन अभी उस निर्णय का कितना पालन हुआ या हो रहा है इसकी कोई रिपोर्ट नहीं है। अब सुरक्षा एजेंसियों ने भी इस मामले को उठाया है और सरकार को आगाह किया है। जिस तरह से भारतीय बाजार में चीनी कंपनियों और उत्पादों का बॉयकॉट करने के लिए सरकार के साथ साथ Confederation of All India Traders (CAIT) जैसी संस्थाए सामने आई उसी प्रकार शिक्षा क्षेत्र से भी चीन की घुसपैठ को कम करने के लिए यूनिवर्सिटियों को सामने आना होगा जिससे चीन के बढ़ते कदम को रोका जा सके।