कांग्रेस में एक बार फिर से हलचल शुरू हो चुकी है। Congress Working Committee (CWC) की बैठक के बाद कांग्रेस के अंदर माहौल बदलने लगा है और ऐसा लगता है कि एक बार फिर से टीम राहुल ने टीम सोनिया की जगह लेना आरंभ कर दिया। इसका सबसे पहला नमूना गुजरात में देखने को मिला जब गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को नियुक्त किया गया। कांग्रेस महासचिव के.सी.वेणुगोपाल ने एक बयान में कहा, “सोनिया गांधी ने गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में हार्दिक पटेल की नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से मंजूरी दे दी है।” कांग्रेस का यह फैसला इसलिए हैरानी भरा है क्योंकि गुजरात में अहमद पटेल से ज़्यादा प्रभाव किसी अन्य कांग्रेसी नेता का नहीं है। ऐसे में कांग्रेस ने उनको पूरी तरह नकार कर हार्दिक को महत्व दिया है।
पहले से मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में MLA के टूटने से परेशानी झेल रही कांग्रेस को इस तरह से अहमद पटेल को नजरंदाज करना महंगा पड़ सकता है, और मध्य प्रदेश व राजस्थान के बाद गुजरात में पार्टी के भीतर दो गुट बनते दिखाई दे सकते हैं।
अहमद पटेल कांग्रेस पार्टी के न सिर्फ महत्वपूर्ण चेहरा हैं बल्कि एक ऐसे नेता हैं जो केंद्रीय और राज्य, दोनों स्तर पर अपनी भूमिका को बखूबी समझते हैं और हमेशा ही कांग्रेस पार्टी के लिए संकट मोचन का काम करते आए हैं। आज अगर सोनिया गांधी भारतीय राजनीति में स्थापित हो पायी हैं तो इसमें अहमद पटेल का ही सबसे बड़ा हाथ है, जिन्होंने वर्ष 2001 से 2017 तक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव की भूमिका निभाई थी। यही नहीं, अहमद पटेल गांधी परिवार की नस-नस से वाकिफ़ हैं और वे गांधी परिवार के सभी काले कारनामों में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे हैं। वे सबसे पहले इंदिरा गांधी, फिर राजीव और अब सोनिया गांधी के साथ काम कर चुके हैं। फिलहाल वे कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष का पद संभाल रहे हैं।
अहमद पटेल एक जन नेता नहीं हैं लेकिन वे नेताओं के नेता हैं जो कांग्रेस के गांधी परिवार के सबसे करीबी रह चुके हैं। पीएम नरेंद्र मोदी के केंद्र में आने के बाद गुजरात में अगर कांग्रेस का प्रदर्शन 2017 के विधान सभा चुनावों में बेहतर हुआ है तो यह अहमद पटेल की रणनीति ही है।
ऐसी स्थिति में अगर वे कांग्रेस को छोड़ते हैं या सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह अपना विरोध प्रकट करते हैं तो यह कांग्रेस के लिए अभी तक का सबसे बड़ा झटका साबित होगा। उनके विरोध करने से न सिर्फ कांग्रेस कमजोर होगी बल्कि गुजरात से कांग्रेस का सफाया भी हो सकता है। वर्ष 1977 से चुनाव लड़ने वाले अहमद पटेल से अधिक गुजरात की राजनीति पर शायद ही किसी और कांग्रेसी की पकड़ होगी। ऐसे में उनके विरोध का परिणाम कांग्रेस के लिए बहुत भयंकर होने वाला है।
वर्ष 2017 में जब कांग्रेस पार्टी की कमान राहुल गांधी ने संभाली थी तब से ही ओल्ड गार्ड्स यानि सोनिया गांधी के करीबी नेताओं को नजरंदाज किया गया। इनमें अहमद पटेल सबसे आगे हैं। वर्ष 2017 में जब अहमद पटेल अपनी राज्य सभा सीट हारने के कगार पर थे तब भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी मदद नहीं थी। हालांकि, उन्होंने यह राज्यसभा चुनाव तो जीत लिया था लेकिन वह उनकी और DK ShivKumar की जोड़ी थी जिसने उस चुनाव को जीता था न कि कांग्रेस पार्टी ने। उनकी जीत के बाद राहुल गांधी की खामोसी स्पष्ट दिखाई दे रही थी।हालांकि लोकसभा चुनावों में हार के बाद उनके इस्तीफे के बाद भी हालात नहीं बदले।
पिछले कुछ समय से उन पर कई गंभीर आरोप लग चुके हैं और ED ने कई बार उनसे पूछताछ भी कर ली है लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से उन्हें कोई समर्थन नहीं मिला है। बता दें कि गुजरात स्थित दवा कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में ईडी द्वारा वरिष्ठ नेता से बार-बार पूछताछ की जा रही है। ईडी के अनुसार स्टर्लिंग बायोटेक घोटाले में प्रमुख आरोपी और संदेसरा ग्रुप के मालिक नितिन संदेसरा 5000 करोड़ के बैंक फ़्रॉड केस में वांछित हैं, जिनके पीछे ईडी और सीबीआई दोनों पड़ी है।
यही नहीं अहमद पटेल पर अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में भी गाढ़ी कमाई करने का आरोप लगा है।स्वयं पकड़े गए दलालों में से एक क्रिश्चियन मिशेल ने ये स्वीकार किया है कि अहमद पटेल भी इस घोटाले में संलिप्त थे।अहमद पटेल पर जांच एजेंसियों की पहले से ही नज़र गड़ी हुई है और उन्हें पार्टी से समर्थन नहीं मिल रहा है। ऐसे में उनका नाराज होना स्वाभाविक है। कुछ ही दिनों पहले आयकर विभाग ने उन पर शिकंजा कसते हुए 400 करोड़ के हवाला transaction के लिए उन्हें तलब किया था। इनमें से किसी भी मामले पर अहमद पटेल को शीर्ष नेतृत्व का सहयोग मिला है। अब इसके ऊपर से हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने से उन्हें और उनके समर्थकों को बड़ा झटका लगना तय है। अहमद पटेल कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं से नाराज हो सकते हैं।
हार्दिक पटेल ने लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी का दामन थामा था परंतु गुजरात में उनकी ताबड़तोड़ रैलियों का कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिला और कांग्रेस को लोक सभा चुनावों में एक भी सीट नहीं मिल पायी। इससे यह कहना गलत नहीं होगा कि एक अक्षम नेता के लिए कांग्रेस अपने सबसे अनुभवी और समर्पित नेता को साइडलाइन कर रही है। अगर कांग्रेस ने ज्यातिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट से सीख नहीं ली तो जल्द ही कांग्रेस पार्टी को झटका देते हुए अहमद पटेल भी उन्हीं की राह पर चलते हुए दिखाई दे सकते हैं।