मुस्लिम शासकों पर कमेंट से बौखलाए वामपंथी गैंग IAS अधिकारी पर टूट पड़े

'कुएँ में रहने वाले मेंढ़कों की मानसिकता नहीं बदलती'

वामपंथी

अक्सर हमने वामपंथियों के मुंह से सुना था – देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी सर्वोपरि होनी चाहिए। ये बात सच भी है, पर तभी तक, जब तक वामपंथियों के विचारों के विरुद्ध कोई बात न बोली जाये। जहां कोई ऐसी बात हुई, वहीं वामपंथी आपके पीछे ऐसा पड़ेंगे, कि आप खुद सोचेंगे – ऐसा भी क्या बोल दिया?

कुछ ऐसा ही हुआ आईएएस अफसर सोमेश उपाध्याय के साथ। उन्होंने एक ट्वीट पोस्ट किया, जिसमें लिखा था, “इंग्लैंड में उसी समय ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, जब हमारे देश में कुछ सुल्तान अपनी मज़ारें बनाने में व्यस्त थे। अंत में बात इसी पर आकर रुकती है कि हमने अपने लिए क्या चुना”।

ये एक व्यंग्यात्मक ट्वीट था, पर इससे कई वामपंथी बुरी तरह तिलमिला गए, मानो उनके वास्तविक आकाओं को इस ट्वीट से काफी क्षति पहुंची हो। तुफ़ैल अहमद ने सोमेश के ही लहजे में मोदी सरकार को घसीटने का प्रयास करते हुए ट्वीट किया, “सही है सर, हमें विश्वविद्यालयों में निवेश करना चाहिए, मंदिरों और मूर्तियों में नहीं”।

इसके बाद तो जैसे सोमेश को नीचा दिखाने और उन्हें डराने धमकाने के लिए मानो वामपंथी और कट्टरपंथी मुसलमानों का रेला लग गया। टीए रिजवी नामक यूजर ने लिखा, “उन्होने ताज महल, लाल किला और कुतुब मीनार में भी निवेश किया, उन्हें [इस्लामी आक्रांताओं] हमारी असफलता के लिए दोष देने से पहले ये बताइये कि हमारी सरकार ने अभी तक हमारे विश्वविद्यालयों के लिए किया क्या है?” 

इसके अलावा फ़र्स्टपोस्ट और बीबीसी वर्ल्ड के लिए लिखने वाले माधवन नारायणन ने सोमेश पर तंज़ कसते हुए ट्वीट किया, “यहाँ तो प्रोमोशन पक्की है”।

अब ऐसे में हिन्दू विरोधी और आतंकी समर्थक वामपंथी प्रोफेसर अशोक स्वेन कैसे पीछे रहता? जनाब ट्वीट करते हैं, “नवीन पटनायक जी, इस ब्राह्मण अफसर को मुसलमान विरोधी प्रोपेगेंडा में लिप्त होने न दें। ये न आपके लिए अच्छा होगा, और न ही ओड़ीशा के लिए। ये हमारे पीएम की भी आलोचना कर रहा है, क्योंकि वो मूर्ति और मंदिर बनाने में व्यस्त है”।

https://twitter.com/ashoswai/status/1285966461513674753?s=20

इसके अलावा अभी हाल ही में राम मंदिर के भूमि पूजन को रोकने का असफल प्रयास करने वाले साकेत गोखले ने भी सोमेश के ब्राह्मण परिवेश पर हमला करते हुए लिखा, “ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय तब बन रहा था, जब ब्राह्मण उपाध्याय दलितों पर अत्याचार करने में जुटे थे और उनके शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार से उन्हे वंचित कर  रहे थे”।

अपने आप को अभिव्यक्ति की स्वतंत्र के रक्षक बोलने वाले ये लोग अपने ही आदर्शों की धज्जियां उड़ा कर एक ऐसे व्यक्ति के पीछे पड़ गए, जिसने केवल एक तथ्य को ही ट्वीट किया था। वामपंथी लाख मुंह मोड़े, पर सत्य तो यही है कि पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद से भारत में राष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटिश शासन के आगमन से पहले किसी भी विश्वविद्यालय या महाविद्यालय का निर्माण नहीं हुआ था। मराठा साम्राज्य को छोड़कर शिक्षा की तरफ किसी इस्लामी वंश, चाहे वह तुर्क शाही हो, आदिल शाही या मुगल शाही, किसी ने ध्यान नहीं दिया था। ऐसे में यदि सोमेश ने आईना दिखाने का काम किया है, तो क्या ये पाप था?

स्वयं सोमेश ने इन वामपंथियों की संकुचित मानसिकता पर प्रहार करते हुए ट्वीट किया, “मेरे ट्वीट का मूल उद्देश्य यही था कि हम बताए कि हमारे शासकों ने किन वस्तुओं को ज़रूरत से ज़्यादा प्राथमिकता दी। पर इससे वो लोग भड़क गए, जिन्हें मेरे ट्वीट में सांप्रदायिकता निकालनी थी और वे मेरे जाति के पीछे पड़ गए। विडम्बना तो यह है कि ये अपने आप को लिबरल कहते हैं। शायद इन्होंने कुएँ के मेंढक वाली मानसिकता कभी छोड़ी ही नहीं”।

सच कहें तो सोमेश उपाध्याय के ट्वीट ने यह सिद्ध किया है कि वामपंथी गैंग केवल अपने लिए अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता चाहती है, और यदि कोई उन्हें चुनौती दे, तो उसे तब तक नहीं छोड़ेंगे, जब तक वो अपने पैरों पर गिरकर उनसे माफी न मांगे। सोमेश उपाध्याय जैसे अफसरों ने न केवल इन दोगलों की हेकड़ी को पुनः उजागर किया है, बल्कि बिना उनके स्तर तक गिरे जोरदार जवाब दिया है।

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