“लिबरल हैं-चीन परस्त नहीं”, NZ, कनाडा, फ्रांस और स्वीडन जैसे लिबरल भी हुए कट्टर चीन विरोधी

चीन के ये “दोस्त” दुश्मनों से भी ज़्यादा खतरनाक बन गए हैं

लिबरल

कोरोना के बाद जब से चीन ने आक्रामक नीति अपनाई है और बॉर्डर से ले कर दक्षिण चीन सागर और हाँग-काँग तक गुंडागर्दी करनी शुरू की है, तब से ही विश्व के प्रमुख चीन विरोधी देशों ने चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। परंतु अब चीन की गुंडागर्दी इतनी बढ़ चुकी है कि विश्व के गिने-चुने लिबरल देश भी चीन के खिलाफ एक्शन लेना शुरू कर चुके हैं। इसमें सबसे पहला नाम न्यूज़ीलैंड का आता है। यह सभी को पता है कि यह छोटा सा द्वीप देश आज विश्व का सबसे बड़े लिबरल देशों में से एक है परंतु फिर भी इसने चीन के खिलाफ एक्शन लेते हुए हांगकांग के साथ प्रत्यर्पण संधि को निलंबित कर दिया है।

न्यूज़ीलैंड ने यह फैसला चीन द्वारा हाँग-काँग में लगाए गए नए सुरक्षा कानून की वजह से लिया गया। न्यूजीलैंड के विदेश मंत्री विंस्टन पीटर्स ने कहा, “न्यूजीलैंड को अब यह भरोसा नहीं है कि हाँग-काँग की आपराधिक न्याय प्रणाली चीन के दबाव से पूरी तरह मुक्त है।” बता दें कि न्यूज़ीलैंड में New Zealand Labour Party सरकार है और Jacinda Ardern वहाँ की प्रधानमंत्री हैं। New Zealand की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि , “अगर चीन आगे चलकर ‘एक देश, दो सिस्टम’ के नियम का पालन करता है तब हम इस बारे में विचार करेंगे।” बता दें कि चीन न्यूजीलैंड का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और चीन के साथ रिश्ते खराब करना इस देश के हित में नहीं है। हालांकि, चीन की हरकतें इस देश को भी चीन विरोधी कदम उठाने पर मजबूर कर रही हैं।

वर्ष 2019 में न्यूजीलैंड के कुल goods and services एक्सपोर्ट का 23 प्रतिशत और कुल आयात का 16 प्रतिशत व्यापार चीन के साथ ही किया गया था। न्यूज़ीलैंड को चीन के साथ नज़दीकियों के लिए Five Eyes की सबसे कमजोर कड़ी माना जाता था लेकिन अब इस देश ने भी चीन के खिलाफ एक्शन लेना शुरू कर दिया है।

वहीं, दूसरा लिबरल देश है कनाडा। कनाडा में जब से जस्टिन ट्रूडो की सरकार आई है तब से ही कनाडा पर लिबरलिज़्म का भूत सवार हो गया था। परंतु चीन की करतूतों ने यह भूत उतार दिया और ट्रूडो को चीन के खिलाफ एक्शन लेने के लिए मजबूर कर दिया। अब आलम यह है कि चीनी टेलिकॉम नेटवर्क Huawei को कनाडा से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए रोड मैप तैयार हो चुका है। कनाडा ने घोषणा की है कि उनके टेलिकॉम नेटवर्क BCE Inc और Telus Corp Huawei के बजाए अब अपने 5जी नेटवर्क के लिए एरिक्सन और नोकिया से उपकरण खरीदेंगे। इसके अलावा कनाडा ने चीन के विरोधों के बावजूद Huawei की CFO एवं उपाध्यक्ष मेंग वांझू को अमेरिका प्रत्यर्पित करने के प्रस्ताव को भी स्वीकार किया है।

चीन से कनाडा इसलिए भी क्रोधित है क्योंकि उसने कनाडा के दो राजनयिकों को झूठे आरोपों के अंतर्गत हिरासत में लिया था। तब जस्टिन ट्रूडो ने ये भी कहा था, “चीन यदि ये सोचता है कि वे कनाडा के नागरिकों को ऐसे ही हिरासत में लेकर कुछ भी हासिल कर लेगा, तो वो न केवल गलत सोच रहा है, बल्कि यह किसी भी स्थिति में हमारे लिए स्वीकार्य नहीं है”। इसका अर्थ स्पष्ट है – अब जस्टिन ट्रूडो भी चीन के विरुद्ध मोर्चा संभाल चुके हैं, और वे किसी भी स्थिति में चीन को कनाडा पर हावी होने देने का कोई अवसर नहीं देंगे। कनाडा ने चीन के दबाव में न आते हुए पिछले हफ़्ते हॉन्ग-कॉन्ग के साथ अपनी प्रत्यर्पण संधि को स्थगित कर दिया था और सेना की ज़रूरतों से जुड़े कई सामान के निर्यात पर भी पाबंदी लगा दी थी।

इसी तरह फ्रांस ने भी चीन के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों को एक Center Right नेता माना जाता है तथा वे स्वयं को centrist liberal मानते हैं। इसके बावजूद फ्रांस यूरोपियन यूनियन का इकलौता ऐसा देश है, जो ना सिर्फ खुलकर चीन का मुक़ाबला कर रहा है, बल्कि वह चीन के खिलाफ भारत का भी साथ दे रहा है। Reuters की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में फ्रांस ने अपने यहाँ अनौपचारिक रूप से चीनी टेलिकॉम कंपनी हुवावे को प्रतिबंध लगा दिया है। फ्रांस की साइबर सिक्योरिटी एजेंसी ANSSI के अध्यक्ष के एक बयान के मुताबिक फ्रांस में हुवावे पर पूर्णतः प्रतिबंध तो नहीं लगाया जाएगा लेकिन सरकार फ्रांस की टेलिकॉम कंपनियों को हुवावे से दूर रहने के लिए कहेगी।

यही नहीं फ्रांस ने एक और बड़ा फैसला लेते हुए चीनी एयरलाइंस पर हफ्ते में एक फ्लाइट से ज़्यादा की उड़ान भरने पर रोक लगा दी। 12 जून के बाद फ्रांस ने चीनी एयरलाइंस को हफ्ते में तीन फ्लाइट्स के उड़ान भरने की छूट दे दी थी, लेकिन चीन ने फ्रांस की एयरलाइन को हफ्ते में सिर्फ 1 फ्लाइट की उड़ान भरने की ही छूट दी हुई थी। जब भारत-चीन विवाद अपने उफान पर था, तो फ्रांस की सरकार ने खुलकर भारत का समर्थन किया था। इसी के साथ इस देश ने भारत को 5 राफेल विमान भी सौंपे हैं, जो 29 जुलाई को ही भारत में लैंड कर चुके हैं।

इसी तरह स्वीडन भी चीनी आक्रामकता का मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। EU में स्वीडन भी एक लिबरल चेहरा है, लेकिन चीन के खिलाफ वह बढ़-चढ़कर कारवाई कर रहा है। उसने अपने देश में चीन द्वारा फंड किए जाने वाली कई संस्थाओं को बंद करा दिया। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच में कूटनीतिक विवाद भी बढ़ा हुआ है। चीन द्वारा हाँग-काँग में लागू किए गए सुरक्षा कानून को लेकर भी स्वीडन EU पर लगातार चीन विरोधी कदम उठाने का दबाव बना रहा है।

यानि देखा जाए तो चीन ने दुनिया के दक्षिण पंथी नेताओं और देशों को ही नहीं बल्कि अपने साथियों और लिबरल सरकारों को भी नाराज कर दिया है।

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