एक अंपायर क्रिकेट में उतना ही आवश्यक है, जितना न्यायालय में न्यायाधीश। दलील कैसी भी हो, क्रिकेट में अंपायर अपनी सूझ बूझ और निष्पक्षता के लिए जाना जाता है, और रिचर्ड ‘डिकी’ बर्ड एवं डेविड शेफर्ड इसलिए काफी विश्व प्रसिद्ध भी रहे हैं। परंतु हर अंपायर ऐसा नहीं होता, और कुछ ने अपने निर्णयों से विश्व क्रिकेट को शर्मसार भी किया है। ऐसे ही एक अंपायर रहे हैं स्टीव बकनर। अक्सर अपने निर्णयों के कारण विवादों के घेरे में रहने वाले पूर्व अंपायर स्टीव बकनर ने सभी को हैरत में डालते हुए पहली बार स्वीकार किया है कि उन्होंने निस्संदेह अपनी गलतियों के कारण भारत को सिडनी का टेस्ट हरवाया था।
मिड डे से बातचीत के दौरान स्टीव बकनर ने बताया,
“देखिये, गलतियाँ सब से होती हैं, परंतु दो ऐसी गलतियाँ हैं, जिसके कारण अब भी मैं सिहर उठता हूँ। मैंने 2008 के सिडनी टेस्ट में दो गलतियाँ की। एक तो मैंने एक ऐसे बल्लेबाज़ को नोट आउट दिया, जब भारत अच्छा खेल रहा था। दूसरा, जब भारत बल्लेबाज़ी में अच्छी दिशा में जा रहा था, तब मैंने दो बल्लेबाजों को गलत तरह से आउट दिया। क्या मैं पहला ऐसा अंपायर था, जिसने वो दो गलतियाँ की थी? पर उन दो गलतियों ने कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ा”।
ये पहली बार है जब स्टीव बकनर ने स्वीकारा था कि उनसे गलती हुई है, लेकिन सत्य कहें तो ये स्वीकारोक्ति बहुत छोटी है। बता दें कि 2008 में बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी का दूसरा टेस्ट विश्व क्रिकेट के काले अध्याय में गिना जाता है। कहने को ऑस्ट्रेलिया ने भारत को एक पारी और 122 रनों से बुरी तरह हराया, परंतु इस मैच में क्रिकेट के हर नियम की धज्जियां उड़ाई गई थी। जब Andrew Symonds (एंड्र्यू साइमंड्स) 30 रनों पर खेल रहे थे, तब ईशांत शर्मा ने अपनी कुशल गेंदबाजी से उन्हें आउट करने में सफलता पाई, पर स्टीव बकनर ने आउट देने से साफ इंकार किया।
इतना ही नहीं, जब साइमंड्स 148 रनों पर खेल रहे थे, तब एमएस धौनी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए उन्हें बड़ी कुशलता से स्टम्प आउट किया, परंतु स्टीव बकनर ने यहाँ भी आउट देना तो दूर की बात, थर्ड अंपायर को फैसला करने देने से भी रोक दिया। इस पर कमेंटरी कर रहे पूर्व क्रिकेटर रवि शास्त्री भी भड़क गए और उन्होंने लाइव टीवी पर कह दिया कि अब समय आ गया है कि स्टीव बकनर को अंपायरिंग से सन्यास ले लेना चाहिए।
पर बात यहीं पे नहीं रुकी, जब भारत की दूसरी पारी शुरू हुई, तब स्टीव बकनर और उनके सहयोगी अंपायर Mark Benson (मार्क बेंसन) ने तीन ऐसे विवादास्पद निर्णय दिये, जिसके कारण सिडनी का वो टेस्ट आज भी वैश्विक क्रिकेट का काला अध्याय माना जाता है। इस पारी में मानो ऑस्ट्रेलिया को जिताने के लिए स्वयं अंपायर हर प्रकार का योगदान दे रहे थे। जब राहुल द्रविड़ 38 रन पर सही खेल रहे थे, तब उन्हें स्टीव बकनर ने LBW आउट करार दिया, जबकि रिप्ले में साफ दिख रहा था कि गेंद पैड से कहीं ऊपर जांघ पर लगी थी। आम तौर पर बेहद शांत और सौम्य रहने वाले राहुल द्रविड़ भी इस पक्षपाती हमले से खीज उठे थे।
इसके अलावा जब सौरव गांगुली अपना अर्धशतक पूरा कर भारत को हार के जबड़ों से बाहर खींचने में लगे हुए थे, तब एक अजीब डिलिवरी पर माइकल क्लार्क ने रिकी पॉन्टिंग के हाथों कैच आउट कराया। लेकिन रिप्ले में पता चला कि रिकी ने तब गेंद पकड़ी जब उनके हाथ ज़मीन छू रहे थे। रही सही कसर ‘मंकी गेट’ कांड ने पूरी कर दी, जहां अंपायरों की शिकायत पर हरभजन सिंह को एन्ड्र्यू साइमंड्स के साथ अभद्रता करने के लिए कुछ मैचों तक प्रतिबंधित किया गया था।
इसपर पूरी भारतीय टीम उबल पड़ी और उन्होंने स्टीव बकनर के अंपायर रहने तक बाकी की सीरीज़ का बहिष्कार करने की ओर इशारा भी किया। फलस्वरूप आईसीसी को हस्तक्षेप करना पड़ा और पर्थ में हो रहे तीसरे टेस्ट से स्टीव बकनर को बाहर कर दिया गया। इस टेस्ट के पश्चात न केवल स्टीव बकनर का पतन प्रारम्भ हुआ, बल्कि इस टेस्ट के पक्षपाती निर्णयों ने ही क्रिकेट में Decision Review System यानि डीआरएस की नींव भी रखी।
पर ऐसा बिलकुल भी मत सोचिए कि ये कोई इकलौता ऐसा अवसर था। स्टीव बकनर को भारत से कुछ विशेष घृणा रही है, जो समय समय पर सामने आई है। इस विषय पर आज भी मतभेद है कि पहला पक्षपाती निर्णय स्टीव बकनर ने भारत के विरुद्ध कब दिया था, पर अगर क्रिकेट इतिहास पर गहन दृष्टि डालें, तो इसका प्रारम्भ हुआ था 1998 – 99 में इंडिया पाकिस्तान टेस्ट शृंखला में। तब ईडेन गार्डन्स में सचिन तेंदुलकर से शोएब अख्तर जानबूझकर भिड़े थे, पर उसे नज़रअंदाज़ करते हुए सचिन को रन आउट किया गया था। यूं तो अंतिम निर्णय तीसरे अंपायर केटी फ्रांसिस ने लिया था, परंतु मैदान पर मौजूद रहने के कारण स्टीव बकनर और डेविड ओरचर्ड को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था।
आप सब ने अवश्य सुना होगा कि कैसे रिकी पॉन्टिंग के बैट में ‘स्प्रिंग’ लगे होने के कारण भारत 2003 का वह ऐतिहासिक विश्व कप फाइनल हार गया था। अब ये बात कितनी सच और झूठ थी ये तो ईश्वर ही जाने, लेकिन भारत को यह फाइनल हरवाने में स्टीव बकनर का भी हाथ था। जब रिकी पॉन्टिंग कुछ 40 रनों से अधिक पर खेल रहे थे, तब युवा ऑल राउंडर दिनेश मोंगिया की स्पिन पर वे LBW की स्थिति में नज़र आए। टीम के ज़बरदस्त अपील के बाद भी स्टीव बकनर ने रिकी को नॉट आउट करार दिया। यदि इस निर्णय पर दोबारा ध्यान दें, तो कहीं न कहीं इसी के कारण रिकी पॉन्टिंग को वो मैच जिताऊ पारी खेलने की प्रेरणा मिली थी, और भारत के हाथ से एक ऐतिहासिक विश्व कप विजय रेत की तरह फिसल गई।
परंतु स्टीव बकनर के साथ भारतीय क्रिकेट टीम के कड़वे अनुभव अभी खत्म नहीं हुए थे। हम सभी जानते थे कि भारत ने 2018-19 के दौरान ऑस्ट्रेलिया में अपनी पहली टेस्ट सीरीज़ जीती थी। पर क्या आपको पता है कि 2003 – 04 के दौरान भी हमारे पास ऐसा ही एक मौका था, जिसे स्टीव बकनर के पक्षपाती निर्णयों ने हमसे छीन लिया? इस सीरीज़ में भी स्टीव बकनर ने कई पक्षपाती निर्णय लिए, जिसके कारण भारत के हाथ से एक ऐतिहासिक विजय छीन ली गई। उदाहरण के लिए सचिन तेंदुलकर को जहां ब्रिस्बेन टेस्ट में विवादास्पद तरह से LBW करार दिया गया, तो वहीं राहुल द्रविड़ को गेंद के साथ अंजाने में छेड़छाड़ करने के लिए स्टीव बकनर ने कुछ अभद्र इशारे भी किया, जिसके कारण भारतीय टीम को मैच रेफरी क्लाइव लॉयड से शिकायत भी करनी पड़ी।
काफी तनातनी और पसोपेश के पश्चात बात पहुंची चौथे और अंतिम टेस्ट तक, और दिलचस्प बात तो यह है कि यह टेस्ट भी सिडनी में ही हुआ। थोड़ा शुरू में लड़खड़ाने के पश्चात भारतीय टीम ने दादा यानि सौरव गांगुली के नेतृत्व में ज़बरदस्त वापसी की थी, और अंतिम पारी में ऑस्ट्रेलिया के समक्ष 442 रन का विशाल लक्ष्य रखा था। भारत ने प्रारम्भ में कप्तान स्टीव वॉ को LBW करवाकर ज़बरदस्त सफलता प्राप्त की ही थी कि स्टीव बकनर के एक निर्णय ने भारत के हाथ से इतिहास रचने का एक सुनहरा अवसर ही छीन लिया।
हर एंगल से देखने के बाद एक छोटा सा बच्चा भी कह सकता था कि स्टीव LBW आउट हुए हैं, परंतु स्टीव बकनर ने स्टीव वॉ को नॉट आउट करार देकर न केवल स्टीव वॉ को उनके अंतिम टेस्ट में जीवनदान दिया, बल्कि भारत के हाथ से बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी भी छीन ली। हद तो तब हो गई जब स्टीव ने विकेट कीपर पार्थिव पटेल पर अपील करने के लिए दंडात्मक कार्रवाई भी की। इसी कारण से सौरव गांगुली ने स्टीव बकनर को अंपायरिंग में आंकलन की श्रेणी में न्यूनतम रेटिंग भी दी।
सच कहें तो स्टीव बकनर ने भले ही सिडनी टेस्ट 2008 की गलती को स्वीकारा था, परंतु यह तो मात्र 1 प्रतिशत गलती की स्वीकारोक्ति है। बाकी 99 प्रतिशत गलतियों के लिए स्टीव बकनर चाहे जो कहें, परंतु अब वे स्वीकारोक्ति तो दूर, माफी के योग्य भी नहीं है।