किसी व्यक्ति या संस्थान का वास्तविक सच तब बाहर आता है जब वह किसी दबाव में भी अच्छा प्रदर्शन करता है। इससे उसके ऊपर लोगों का भरोसा बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए भी ये मौका आ चुका है। कोरोना के समय चीन का पालतू बनने के बाद एक बार फिर से इस वैश्विक संगठन को मौका मिला है जब वह चीन का पर्दाफाश कर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस कायम करे। दरअसल, WHO के दो स्वास्थ्य अधिकारी जांच के लिए वुहान के दौरे पर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के ये दोनों विशेषज्ञ COVID-19 महामारी की उत्पत्ति की जांच के लिए चीन पहुंचे हैं। अब WHO के लिए करो या मरो की स्थिति है बन गई है जहां वह वुहान से निकले COVID-19 का खुलकर जांच करे और यह पता लगाए कि जानवरों से यह वायरस मनुष्यों तक कैसे फैला है। इसके साथ ही WHO के लिए विश्व के सामने अपनी विश्वसनीयता को साबित करने का यह आखिरी मौका भी है।
WHO का यह मिशन राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है। चीन के प्रति नरम रुख अपनाने की वजह से पहले ही अमेरिका WHO के फंड बंद कर चुका है और अब इस संगठन से बाहर निकलने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। अमेरिका ने WHO पर सीधा आरोप लगाया था कि WHO ने चीन को बचाने के लिए कई ऐसे फैसले लिए जिससे विश्व को नुकसान हुआ। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तो कोरोनवायरस महामारी के दौरान WHO को चीन की कठपुतली भी कह दिया था। वहीं अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा था कि “WHO ने समय-समय पर यह प्रदर्शित किया है कि वह कितना अक्षम है, यह अपने मूलभूत मिशन को भी पूरा नहीं कर पाता है।“
बात दें कि WHO ने जनवरी महीने में चीन के अधिकारियों पर अंध विश्वास में यह दावा कर डाला था कि यह वायरस एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में नहीं फैलता है। बाद में जब यह दावा कोरा झूठ साबित हुआ तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन के खिलाफ कोई जांच करने की ज़रूरत तक महसूस नहीं की।
कोरोना ने जब तेजी से अपने पांव पसारने शुरु किये तो मई में विश्व स्वास्थ्य सभा में वायरस की उत्पत्ति की जांच के प्रस्ताव का 120 से अधिक देशों ने समर्थन किया। तब विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल डॉ टेडरोस ने सीधे चीन के खिलाफ कुछ नहीं कहा था, केवल जल्द ही इस मामले में अन्य देशों को आगाह करने की बात कही थी। उस समय चीन ने अपना बचाव करने की भी कोशिश की थी और कोरोना वायरस के जिनोम सिक्वेंस की जानकारी देने की बात कही थी। परन्तु चीन का कोई पैंतरा काम नहीं आया।
इसके विपरीत चीन के खिलाफ दुनियाभर के देशों का रोष बढ़ता गया और इसका प्रभाव WHO पर भी पड़ने लगा। हर तरफ से दबाव पड़ने और कार्यशैली पर सवाल उठने के बाद WHO ने वुहान में कोरोनावायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए टीम भेजने का फैसला लिया। WHO की टीम वुहान न आये इसके लिए चीन ने वुहान में बाढ़ की खबर को हवा दी और अपने नागरिकों को 31 दिनों के लिए घर में रहने की सलाह दी, फिर भी उसका ये पैंतरा किसी काम नहीं आया।
अब जब WHO की टीम कोरोनावायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए चीन पहुंची है तो सभी देशों की निगाहें WHO पर है और सभी के जहन में ये आशंका भी है कि इस बार भी वो चीन को बचाने के लिए कोई बेतुकी थ्योरी के साथ सामने न आये।
WHO के इसी रवैये पर फ्लॉरिडा से रिपब्लिकन पार्टी की ओर से सीनेटर रिक स्कॉट ने कांग्रेस द्वारा WHO और चीन के गुप्त सम्बन्धों की जांच करने की मांग उठाई थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि WHO अमेरिकी पैसे लेकर चीन के प्रोपेगेंडे को दुनियाभर में फैलाने का काम कर रहा है, ऐसे में इस संस्था की जांच की जानी चाहिए। उन्होंने कहा था, “हमें पता है कि कम्युनिस्ट चीन अपने यहां के केस और मौतों को लेकर झूठ बोल रहा है। डब्ल्यूएचओ को चीन के बारे में पूरी जानकारी थी, लेकिन बावजूद इसके जांच करने की जरूरत महसूस नहीं की गई”।
हालांकि, जब जांच की मांग बढ़ने लगी और ऑस्ट्रेलिया समेत सभी देशों ने इन वायरस के उत्पति पर स्वतंत्र जांच की मांग की तब चीन की तारीफ़ों का पुल बांधने वाले WHO ने जून महीने में यह खुलासा किया कि चीन जानबूझकर कोरोना की जानकारी देने में देर कर रहा था और जानकारी न आने के कारण WHO के अंदर अधिकारियों में काफी रोष था।
खैर, WHO अब कितनी भी सफाई क्यों न दें जब तक वो कोरोनावायरस महामारी को फैलाने में चीन की भूमिका को लेकर निष्पक्ष जांच नहीं करता तब तक उसपर कोई भी देश भरोसा नहीं करना चाहेगा। इस बार की जांच ही WHO की भविष्य में विश्वसनीयता को भी तय करेगी। ऐसे में WHO के लिए वर्तमान स्थिति की लड़ाई आर या पार की है, या तो वो अपनी विश्वसनीयता को कायम रखते हुए निष्पक्ष जांच कर चीन की जवाबदेही तय करे या फिर चीन का बचाव करते हुए खुद की बलि चढ़ाये।