विकास दुबे भले ही मारा जा चुका हो, परंतु उसकी कहानियाँ अभी भी सुर्खियों में बनी हुई है। अब उसके ब्राह्मण जाति का दुरुपयोग कर कुछ लोग उसके नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकना चाहते हैं। विकास दुबे को एक पीड़ित के तौर पर चित्रित कर वे न सिर्फ ब्राह्मण समुदाय की सहानुभूति बटोरना चाहते हैं, अपितु उन्हें एक वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं।
पर विकास दुबे वास्तव में एक मोहरा है, या फिर उसकी वास्तविकता कुछ और ही थी? उत्तर प्रदेश खूंखार अपराधियों से अछूता तो कभी नहीं रहा है। चाहे ददुआ जैसे डकैत हो, मुख्तार अंसारी और मुन्ना बजरंगी जैसे दबंग अपराधी, या फिर अतीक अहमद और श्री प्रकाश शुक्ला जैसे खूंखार गैंगस्टर, उत्तर प्रदेश का आपराधिक इतिहास एक समय बिहार के जंगल राज को टक्कर देता था। हालांकि, इस कलंक को धोने में काफी हद तक नियंत्रित करने में उत्तर प्रदेश के बहादुर अफसर और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार का हाथ रहा है, परंतु अभी समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है, और Vikas Dubey जैसे लोग इसी का प्रमाण है।
विकास दुबे कानपुर से नाता रखने वाला एक दुर्दांत अपराधी था, जिसके कारनामे गोरखपुर के श्री प्रकाश शुक्ला और बिहार के सामन्त प्रताप [नाम परिवर्तित] जैसे दुर्दांत अपराधियों को टक्कर दे सकते थे। कानपुर के चौबेपुर में स्थित बिकरू ग्राम से संबंध रखने वाला विकास दुबे हिस्ट्री शीटर था, जिसके ऊपर करीब 60 से अधिक मामले दर्ज थे, जिसमें हत्या, लूटपाट, उगाही, अपहरण जैसे कई मामले शामिल थे। Vikas Dubey को 9 जुलाई को उज्जैन में मध्य प्रदेश पुलिस ने हिरासत में लिया था, और वापिस लाते समय कानपुर के सचेण्डी क्षेत्र के पास पुलिस मुठभेड़ में अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।
अब विकास दुबे को कुछ लोग उत्तर प्रदेश का बुरहान वानी बनाने पर तुले हुए हैं। जैसे बुरहान वानी को उसके धर्म की आड़ में कुछ लोगों ने महिमामंडित करने का प्रयास किया था, वैसे ही Vikas Dubey के जाति की आड़ में उसका महिमामंडन करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि कुछ राजनीतिज्ञ अपना उल्लू सीधा कर सकें। यही नहीं, अखिलेश यादव जैसे नेता जानबूझकर विकास दुबे को भाजपा से जोड़ने का प्रयास कर रहे थे, यह जानते हुए भी कि वह मरने से पहले उन्हीं की पार्टी का सदस्य था। यही नहीं, मायावती ने भी कहा था कि ‘बीएसपी का मानना है कि किसी गलत व्यक्ति के अपराध की सजा के तौर पर उसके पूरे समाज को प्रताड़ित व कटघरे में नहीं खड़ा करना चाहिए’। जिन शब्दों का मायावती ने प्रयोग किया और जिस तरह से विकास दुबे के एनकाउंटर के जरिये राजनीति करने का प्रयास उसपर गौर करें तो आपको समझने में समय नहीं लगेगा कि वास्तव में जिसतरह का ब्राह्मण कार्ड उत्तर प्रदेश की राजनीति में खेला जा रहा है, वास्तव में तो वो कहीं से भी न्यायिक है ही नहीं। इसे समझना और आसान हो जायेगा जब आप विकास दुबे द्वारा किये गए अपराध पर नजर डालें, जिसमें अधिकतर ब्राह्मण ही उसके शिकार हुआ करते थे।
वास्तव में, जिस जाति की आड़ में विकास दुबे को बचाने और उसे महिमामंडित करने का प्रयास किया जा रहा है, उसी जाति यानि ब्राह्मण समुदाय के लोगों के लिए Vikas Dubey किसी राक्षस से कम नहीं था। Vikas Dubey के आतंक को कोई अगर पास से महसूस कर पाया है तो वो है शिवली के ताराचंद्र इंटर कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य सिद्धेश्वर पांडेय का परिवार। साल 2000 में विकास दुबे ने इंटर कॉलेज के बगल में एक खाली प्लाट में दिनदहाड़े सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या कर दी थी। आज भी सिद्धेश्वर पांडेय का परिवार उस घटना से उबर नहीं पाया है। इस मामले के कारण ही Vikas Dubey सबसे पहले सुर्खियों में आया था।
परंतु विकास दुबे यहीं पर नहीं रुका, अपितु उसने अपनी बर्बरता से ये स्पष्ट कर दिया कि जो भी उसकी राह में आएगा, उसे मिटा दिया जाएगा। साल 2001 में मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के शासन में राज्य मंत्री संतोष शुक्ला को कानपुर के ही शिवली थाने में घुसकर विकास दुबे ने गोलियों से भून दिया था। इस हत्याकांड में दो पुलिसकर्मी भी वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस मामले में गवाह न मिलने के कारण विकास बरी हो गया। साल 2004 में केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या के मामले में भी Vikas Dubey आरोपी था। इसके अलावा अजय मिश्रा, कृष्ण बिहारी मिश्रा, कौशल तिवारी और जय प्रकाश की हत्या का आरोपी भी Vikas Dubey था। साल 2018 में विकास दुबे पर अपने चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमला करवाने का भी आरोप था।
परंतु, जिस बिकरू कांड के कारण विकास शुक्ला का अंत निश्चित हुआ था, उसमें भी प्रमुख पीड़ित – डीएसपी देवेन्द्र मिश्रा, ब्राह्मण ही थे। डीएसपी मिश्रा के साथ विकास और उसके गुर्गों ने जो बर्बरता की थी, उसके बारे में तो सोचकर आत्मा काँपने लगती है। ऐसे में जो विकास दुबे का महिमामंडन कर रहे हैं, जातिवाद की राजनीति कर रहे हैं, उन्हें ये समझना चाहिए कि इसका आधार ही हिला हुआ है। विकास दुबे न कभी पीड़ित था और न ही इतिहास में उसे एक पीड़ित की तरह संबोधित किया जाएगा। वो केवल एक दुर्दांत अपराधी था , जिसका अंत निश्चित था।