‘अवैध चर्च निर्माण के लिए अपने ही घर से बेघर’, Jagan ने किया अनदेखा तो अनुसूचित जाति के लोगों ने NHRC से मांगी मदद

गिरजाघरों या चर्चों के लिए जगह बनाई जा रही

आंध्र प्रदेश

PC: HinduPost

आंध्र प्रदेश भारत के लिए मिशनरी हब बनता जा रहा है। हो भी क्यों न, जब सीएम ही एक धर्मनिष्ठ ईसाई हो। लेकिन अब ईसाई मिशनरी की गुंडई इस हद तक बढ़ गई है कि दलितों को उनके घरों से ज़बरदस्ती निकाला जा रहा है, ताकि गिरजाघरों या चर्चों के लिए जगह बनाई जा सके।

अभी हाल ही में कुछ चर्च के पादरी आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले के दोरासानीपल्ली ग्राम से अनुसूचित जाति के लोगों को उनके घरों से ज़बरदस्ती निकालते हुए पकड़े गए थे। तब लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम ने अनुसूचित जाति राष्ट्रीय कमीशन के यहाँ दरवाजा खटखटाया और डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को भी चर्च प्रशासन के विरुद्ध एक्शन लेने के लिए अर्जी डाली। फलस्वरूप अवैध निर्माण पर ताला लग गया।

परंतु ये लोग वहाँ नहीं रुके। अब आरएसएस समर्थित मैगज़ीन ऑर्गनाइज़र की रिपोर्ट के अनुसार पता चला है कि मिशनरी गैंग कडप्पा में असफल होने के पश्चात पूर्वी गोदावरी जिले मूलस्थानम अग्रहम ग्राम में अवैध चर्च का निर्माण कर रहे हैं। ये निर्माण एक हिन्दू बहुल इलाके में हो रहा है, जिसके लिए प्रशासन ने किसी प्रकार की अनुमति नहींं दी है, लेकिन गाँववासियों के लाख प्रदर्शन करने के बाद भी कोई नहीं सुन रहा है उनकी।

2012 में आंध्र प्रदेश में पारित सरकारी निर्देशानुसार किसी भी गाँव में एक धार्मिक ढांचे का निर्माण तभी प्रारम्भ हो सकता है, जब किसी को कोई आपत्ति न हो, और डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर से अनुमति भी ली जा चुकी हो। लेकिन मूलस्थानम अग्रहम में हो रहे अवैध निर्माण के मामले में न तो गाँव वालों की स्वीकृति ली गई, और न ही डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर से अनुमति।

गाँव वालों ने ग्राम राजस्व अफसर और पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कराई, पर लाख शिकायत करने के बावजूद चर्च निर्माण के विरुद्ध कोई एक्शन नहीं लिया गया। उल्टे पुलिस वालों ने झूठे केस में गांव वालों को फँसाने की धमकी भी दी। थक हार कर गाँव वालों को भूख हड़ताल का रास्ता अपनाना पड़ा, और उन्होंने ऑर्गनाइज़र को बताया कि स्थानीय पुलिस दिन रात उन्हें परेशान करती रहती है।

जब कोई रास्ता नहीं बचा, तो गांववालों को राष्ट्रीय मानवाधिकार कमीशन यानि NHRC को पत्र लिखना पड़ा। इस पत्र में उन्होंने एनएचआरसी से हस्तक्षेप करने की मांग की और आंध्र प्रदेश प्रशासन को अवैध चर्च निर्माण के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए भी कहा। इस पत्र में गाँववालों ने लिखा, “स्थानीय प्रशासन हमें दूसरे दर्जे के नागरिकों की तरह व्यवहार करता है। वे हमारी अर्जी तक नहीं सुनते, और यदि कुछ कहो, तो ऐसे बर्ताव करते हैं मानो हम किसी दूसरे देश के रिफ़्यूजी हैं”।

परंतु बात यहीं पर नहीं रुकी। इस पत्र में आगे लिखा गया था, “ये लोग हमारी शिकायतों पर ध्यान भी नहीं देते, और हमें हमारे हक की लड़ाई लड़ने के लिए हमें निशाने पर लिया जा रहा है। जो मूलभूत अधिकार हमें संविधान ने दिये हैं, ये लोग जानबूझकर हमें उससे वंचित कर रहे हैं”।

सच कहें तो आंध्र प्रदेश जगन के CM जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने ईसाइयों के तुष्टीकरण में कई बार सीमाएं लांघी है, परंतु इस बार तो उन्होंने नैतिकता को ताक पर रखते हुए अवैध चर्चों के निर्माण को मानो खुली छूट दे दी है। यदि स्थिति जल्द नहीं संभाली गई, तो जगन मोहन रेड्डी द्वारा इस समस्या को अनदेखा करना बहुत भारी पड़ सकता है।

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