जैसे-जैसे भारत और चीन के बीच तनातनी बढ़ रही है, वैसे-वैसे भारत और अधिक आक्रामक होता जा रहा है। अब भारत ने दो कदम आगे बढ़ते हुए चीन को खुलेआम चुनौती दी है। Hong Kong के मुद्दे पर भारत ने अपने विचार रखते हुए चीन के कदमों पर अपनी चिंता जताई है।
यूएन में भारत के प्रतिनिधि राजीव कुमार चंदर ने कहा, “चूंकि भारतीय समुदाय का एक बहुत बड़ा हिस्सा Hong Kong को अपना घर मानता है, इसलिए भारत वर्तमान गतिविधियों पर विशेष नज़र बनाया हुआ है। हमें इन गतिविधियों पर काफी चिंता है और आशा करते हैं की उक्त पक्ष [चीन] इन चिंताओं पर गौर करते हुए सही कदम उठाएंगी”।
राजीव ने ये बात बुधवार को यूएन के मानवाधिकार परिषद के एक सम्बोधन में कही। उनके यह टिप्पणी चीन के हाँग काँग की स्वायत्ता को कुचलने के मद्देनज़र अधिक अहमियत देनी चाहिए।
बता दें कि चीन ने हाल ही में हाँग काँग की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम पारित किया था। इस अधिनियम से अब हाँग काँग की भी हालत वैसी ही है, जैसे चीन के कथित स्वतंत्र राज्य तिब्बत और शिंजियांग की है। Hong Kong के सदन के विरोध को अनदेखा करते हुए मंगलवार को देर रात को कम्युनिस्ट पार्टी ने पारित करवाया। अब इस अधिनियम से हाँग काँग की लोकतंत्र की सभी मांगे देशद्रोह के अंतर्गत आएंगी, और इस अधिनियम के अंतर्गत दोषी पाये जाने वाले लोगों को उम्रक़ैद तक की सज़ा मिल सकती है।
चीन भले ही कह रहा हो कि वह ‘वन कंट्री, टू सिस्टम्स’ वाली नीति पर चल रहा है, पर सच तो यही है कि उसने Hong Kong पर अपना कब्जा आधिकारिक रूप से जमा लिया है, और सीसीपी के अलावा किसी भी अन्य प्रकार की राजनीतिक गतिविधि वहाँ पर प्रतिबंधित है। इस बर्बर अधिनियम के पारित होते ही जिस प्रकार से सीसीपी के चाटुकारों ने Hong Kong में अत्याचार ढाना शुरू किया है, उससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि चीन को वास्तव में लोकतंत्र की कितनी चिंता है, अब तक 200 लोगों को चीन के इस बर्बर अधिनियम के अंतर्गत हिरासत में लिया गया है।
इसके अलावा कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य से चीन और भारत में तनाव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। चीन ने वादा किया कि वह एलएसी से पीछे हट जाएगा, परंतु अपने स्वभावानुसार उसने विश्वासघात करते हुए गलवान घाटी में बाबा आदम के जमाने के हथियारों से हमला किया। लेकिन अब भारत ने भी स्पष्ट कर दिया कि चाहे कुछ भी हो जाये, वह चीन की गुंडई और बर्दाश्त नहीं करेगा।
ऐसे में भारत का इस विषय पर अपने विचार रखना एक व्यापक बदलाव है जिसका प्रभाव आने वाले दिनों में वैश्विक कूटनीति के परिप्रेक्ष्य में काफी गहरा पड़ने वाला है। टाइम्स ऑफ इंडिया की माने तो अमेरिका बहुत दिनों से चाह रहा था कि भारत इस विषय पर हाँग काँग का पक्ष ले। भारत एकमात्र ऐसा देश है इस समय जिसने चीन को इंडो पैसिफिक क्षेत्र में खुलेआम चुनौती दी है। पूरी दुनिया जब चीन के विरुद्ध Hong Kong के विषय में मुखर हो चुकी है, तो ऐसे में भारत ने भी स्पष्ट कर दिया है कि चीन द्वारा हाँग काँग पर किए जा रहे अत्याचारों पर वह मौन नहीं बैठेगा।