चीन की टेलीकॉम कम्पनी हुवावे की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं हैं। पिछले कुछ सालों से अमेरिका दूरसंचार दिग्गज चीन की सबसे बड़ी निजी कंपनी पर जासूसी का आरोप लगा रहे हैं। कई देशों ने सुरक्षा चिंताओं को लेकर हुवावे पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब चीन को यूनाइटेड किंगडम ने एक और झटका दिया है जिससे जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों में हुवावे के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
ब्रिटिश मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी गवर्नमेंट कम्युनिकेशन हेडक्वार्टर (जीसीएचक्यू) ने खुलासा किया है कि अमेरिका द्वारा चीन की टेलीकॉम कम्पनी हुवावे पर लगाए गए प्रतिबन्ध से प्रौद्योगिकी फर्म गहरा प्रभाव पड़ा है। सेमीकंडक्टर, विशेषकर हुवावे से संबंधित चीनी सेमीकंडक्टर को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया था। दुनिया के सेमीकंडक्टर संयंत्रों में इस्तेमाल होने वाले चिप डिजाइन और विनिर्माण उपकरण ज्यादातर अमेरिका में बनते हैं जो किसी भी टेलीकम्युनिकेशन यंत्र के संरचना में एक अहम चीज मानी जाती है। अब अगर Huawei के लिए परिस्थिति जल्द ही ठीक नहीं होती है तो हुवावे आने वाले 12 महीनों के बाद धराशायी भी हो सकता है।
हुवावे को लेकर अन्य देशों की चिंता केवल सुरक्षा चिंताओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि गुणवत्ता को लेकर भी ये सवालों के घेरे में है, और अब इन्हीं कारणों से ब्रिटेन में हुवावे की उलटी गिनती शुरू हो गयी है। इससे पहले भी हमने आपको कुछ रिपोर्ट्स के आधार पर ये बताया था कि अगले तीन वर्षों में हुवावे घुटनों पर होगा। अब डेली टेलीग्राफ के अनुसार आने वाले कुछ महीनों में ब्रिटिश सरकार 5G बुनियादी ढांचे में हुवावे पर पूरी तरह से बैन लगा सकती है। हालांकि, जीसीएचक्यू की रिपोर्ट का असर केवल यूके तक ही सीमित नहीं रहेगा।
ये अन्य यूरोपियन देशों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित करेगा जो हुवावे की बर्बादी तय करेगा। Huawei पहले से जासूसी करने और सुरक्षा के लिए खतरे के आरोप झेल रहा है। ऐसे में कोई भी देश ऐसे टेलीकॉम कंपनी के हाथों अपने देश की सुरक्षा को खतरे में क्यों डालना चाहेगा ?
उदाहरण के लिए, जर्मनी चीन के एजेंडे के केंद्र में है। चीनी दूरसंचार पर जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल और उनके निकट सहयोगी एवं अर्थशास्त्र मंत्रीमंत्री Peter Altmaier विशेष रूप से महरबान रहे हैं, परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि जर्मनी में Huawei की राह आसान होगी। मर्केल का झुकाव चाहे कितना भी चीन की तरफ क्यों न हो परन्तु एक तथ्य तो ये भी है कि उनकी अपनी पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स (सीडीयू) के नेता हुवावे के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। सीडीयू के इंटेलिजेंस एक्सपर्ट पैट्रिक (Patrick Sensburg) सेन्सबर्ग ने पिछले साल जुलाई में कहा था कि वह “चीन और अमेरिका दोनों ही देशों के वेंडर्स पर भरोसा नहीं करते क्योंकि दोनों देशों में, “दूरसंचार कंपनियों को सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना आवश्यक होता है।” रक्षा मंत्री और सीडीयू पार्टी के नेता Annegret Kramp-Karrenbauer भी हुवावे के आलोचकों में से एक रहे हैं। ऐसे में जर्मनी के 5 जी बुनियादी ढांचे हुवावे की भूमिका को लेकर एंजेला मर्केल पर दबाव बढ़ रहा है।
हालांकि, मर्केल ने तय किया है कि हुवावे को बैन नहीं करेंगी। पिछले साल के अंत में किसी तरह चीन की टेलीकॉम कंपनी ने जर्मनी में 5जी नेटवर्क शुरू करने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल कर लिया था। Deutsche टेलीकॉम के बाद सबसे बड़े दूरसंचार ऑपरेटर, Telefonica Germany ने घोषणा की कि वह 5 जी परियोजना में हुवावे और नोकिया को बराबर का महत्व दे रहा है।
हुवावे सुरक्षा की दृष्टि से किसी भी देश के लिए खतरा है, इस तथ्य को जानते हुए भी मर्केल ने मंजूरी दी। इस बीच चीन जर्मनी को धमकी देता रहा कि यदि जर्मनी ने हुवावे के खिलाफ कोई भी एक्शन लिया तो ये उसके लिए घातक साबित होगा। पिछले साल, जर्मनी में चीन के राजदूत वू केन ने चेतावनी दी थी, “अगर जर्मनी कोई निर्णय लेता है जिससे जर्मन बाजार से हुवावे पर प्रतिबन्ध लगे तो इसके परिणाम भी भुगतने होंगे।” उन्होंने आगे कहा था कि, “चीनी सरकार चुपचाप ये सब देखती नहीं रहेगी।”
चीन का बाजार खुद ही दुनिया में सबसे बड़ा है और अब तो यह जर्मनी के वाहन निर्माताओं की वृद्धि का सबसे बड़ा चालक बन चुका है। लग्जरी कारों के बाजार में जर्मनी के दबदबे के पीछे चीनी बाजार एक अहम कारक रहा है और बीजिंग इसी को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
वहीँ दूसरी तरफ, अमेरिका भी जर्मनी में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने स्पष्ट कहा था कि यदि जर्मनी ने चीनी दूरसंचार कंपनी पर प्रतिबंध नहीं लगाया तो वाशिंगटन अपने इंटेलिजेंस की सेवा को बंद कर देगा।
यही नहीं जर्मनी में भी हुवावे को लेकर आवाजें उठने लगीं हैं और इसे देश की सुरक्षा से अधिक महत्व न दिए जाने पर जोर दिया जा रहा है। हुवावे की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं जिस कारण अब ये टेलीकॉम मार्किट में पिछड़ता जा रहा है।
फ्रांस और स्पेन को भी हुवावे के मामले में जर्मनी जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा अब तूल पकड़ रहा है और अब फ्रांस ने भी हुवावे को दरकिनार करना शुरू कर दिया है। वहीं पेरिस ने हुवावे से 5 जी तकनीक का उपयोग कर दूरसंचार ऑपरेटरों के लिए लाइसेंस को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है।
स्पेन के रक्षा मंत्रालय ने पिछले साल अपने डेटा से सभी हुवावे उपकरणों पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रतिबंध का कोई कारण नहीं बताया गया था, लेकिन ये अटकलें जरूर लगाएं जा रहीं थी कि ट्रम्प ने हुवावे के खिलाफ जासूसी और सुरक्षा संबंधी आरोप लगाए थे उसी के बाद स्पेन के रक्षा मंत्रालय ने ये कदम उठाया । हालांकि, स्पेन ने अपनी जनता के लिए हुवावे के उपकरणों पर प्रतिबंध नहीं लगाया है।