कोरोना के बाद से चीन ने अधिक आक्रामक की नीति अपनाई परंतु यही आक्रामकता उस पर भारी पड़ रही है। भारत के साथ बार्डर तनाव में उसकी हार हुई, दक्षिण चीन सागर में उसकी आक्रामकता और गुंडागर्दी से फिलीपींस सहित उस क्षेत्र के सभी देश उसके हाथ से निकल चुके हैं। अब म्यांमार भी पूरी तरह से चीन के चंगुल से निकलता दिखाई दे रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन अराकान आर्मी के साथ मिलकर म्यांमार को अस्थिर करने के प्रयासों में लगा है। म्यांमार सेना ने हाल ही में खुलासा किया है कि चीन न सिर्फ अराकान के उग्रवादियों को शरण दे रहा है, बल्कि उन्हें जमकर अपने हथियार भी दे रहा है। Wion की रिपोर्ट के मुताबिक, अराकान आर्मी को मिलने वाले 95% फंडस चीन से ही आते हैं। इसके अलावा अराकान आर्मी Myanmar में चुन-चुन कर भारत से जुड़े प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाती है यही नहीं वे Myanmar सेना को भी निशाना बनाते हैं। लेकिन अराकान के लड़ाके कभी BRI प्रोजेक्ट को निशाना नहीं बनाते। चीन इसके माध्यम से म्यांमार पर दबाव बनाता है कि वहाँ की सरकार BRI प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता दे और BRI में कोई रोड़ा ना अटकाए।
चीन और म्यांमार की अराकन आर्मी के गठबंधन से Myanmar सेना ही नहीं अब म्यांमार की सरकार का भी चिंतित होना सामान्य है। हाल ही में म्यांमार सेना के कमांडर-इन-चीफ़ जनरल “मिन ओंग” ने रूस के एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए चीन की ओर इशारा कर अपनी नाराजगी जताई थी।
म्यांमार में लगातार इस तरह से हस्तक्षेप से अब Myanmar की सरकार पूरी तरह से सचेत नजर आ रही है। इससे अगर सभी अधिक नुकसान किसी को होगा तो चीन को ही होगा, क्योंकि जिस तरह से म्यांमार की सरकार अब चीन के BRI के तहत प्रोजेक्ट्स को नजरंदाज कर रही है उससे यह स्पष्ट पता चल रहा है कि म्यांमार अब चीन के BRI के तहत China Myanmar Economic Corridor को डंप करने की ओर कदम बढ़ा रहा है। इससे म्यांमार में चीन विरोधी लहर और भी प्रबल हो चुकी है और लोगों में चीन के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि म्यांमार सिर्फ चीन और अराकान आर्मी के गठबंधन से चिंतित है, बल्कि म्यांमार को चीन की विस्तारवादी नीति और उसके ऋण जाल का ऐहसास हो चुका है और अब वह इससे निकलने की कोशिश में लगा है।
हाल ही में म्यांमार के ऑडिटर जनरल ने सरकारी अधिकारियों को चीन से लिए गए ऋण पर निर्भरता के बारे में भी आगाह किया था, जो ब्याज की उच्च दरों के साथ म्यांमार को हासिल हुआ है। ऑडिटर जनरल Maw Than ने नायपीडॉ में एक संवाददाता सम्मेलन में म्यांमार की सरकार को आगाह करते हुए बताया कि यह ऋण Myanmar को श्रीलंका और कुछ अफ्रीकी राज्यों की तरह कर्ज के जाल में धकेल सकता है।
बता दें कि म्यांमार का वर्तमान राष्ट्रीय ऋण लगभग 10 बिलियन डॉलर है, जिसमें से 4 बिलियन डॉलर अकेले चीन से ही लिया गया है। यानि अब म्यांमार इन ऋण जल से बचने के लिए हरसंभव प्रयास कर सकता है चाहे उसे BRI के प्रोजेक्ट्स को डंप ही क्यों न करना पड़े। ऐसा नहीं है कि म्यांमार ने पहले चीन के प्रोजेक्ट्स को रोका या बंद नहीं किया है। हाल ही में जब म्यांमार ने भी COVID-19 रिकवरी प्लान जारी किया, तो उसमें किसी भी चीनी infrastructural प्रोजेक्ट को मदद करने की अनुमति नहीं दी, जो BRI के तहत विकसित किया जा रहा है। यह चीन विरोधी लहर का ही परिणाम था। यही नहीं इससे पहले वर्ष 2011 में Myanmar की Thein Sein सरकार ने 3.6 बिलियन की लागत से बनने वाले चीन की Myitsone dam प्रोजेक्ट को रोक दिया था। इसके अलावा दो अन्य मल्टी बिलियन प्रोजेट्स Letpadaung copper mine project और the Sino-Myanmar oil and gas pipelines को भी कुछ वर्षों के लिए रोक दिया गया था। उस दौरान म्यांमार में चीन विरोधी भावना भड़क गयी थी जिसके तहत यह फैसला लिया गया था।
अगर म्यांमार चीन के BRI प्रोजेक्ट्स को रोक देता है तो चीन को करोड़ो डॉलर का नुकसान तो होगा ही साथ में एक रणनीतिक पोर्ट भी उसके हाथ से निकल जाएगा। बता दें कि जब चीनी राष्ट्रपति म्यांमार के दौरे पर गए थे तब China- Myanmar Economic Corridor (CMEC) को और बल मिला था तथा 33 एग्रीमंट पर साइन हुआ था जिसमें 13 तो इनफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट्स के लिए था। चीन म्यांमार में कई तरह के प्रोजेक्ट BRI के तहत चला रहा है जैसे The New Yangon City; Kyaukphyu Deep-Sea Port and Industrial Zone और China-Myanmar Cross-Border Economic Cooperation Zone प्रोजेक्ट आदि। तब शी जिनपिंग ने इन प्रोजेक्ट्स को “priority among priorities” कहा था। Kyaukphyu Deep-Sea Port और Industrial Zone से रणनीतिक तौर पर चीन को ही फायदा पहुंचता है। म्यांमार और पाकिस्तान दोनों ही देशों में चीन के निवेश का एक ही मकसद है और वह भारत को String of Pearls से घेरना। इससे चीन को Malacca Strait वाला लंबे रास्ते से छुटकारा मिल जायेगा है। बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर के रास्ते चीन अपने तेल और व्यापार वस्तुओं का कम लागत में transit कर सकता। यही नहीं दोनों देश ऐसे बन्दरगाह प्रदान करते हैं जिनका उपयोग सैन्य ठिकानों के रूप में किया जा सकता है, जो चीन भारत के खिलाफ कर सकता है।
हालांकि, अब म्यांमार अब नींद से जाग चुका है और चीन द्वारा चली जा रही चालों को अब समझ चुका है और अपने आप को बचाने की कोशिश में पहला कदम उठा चुका है।
यही नहीं अब म्यांमार भारत के करीब भी होता जा रहा है, जो उसके भविष्य के लिए सही है क्योंकि भारत चीन की तरह विस्तारवादी नीति में विश्वास नहीं रखता। भारत इसके लिए Myanmar के साथ मिलकर 484 मिलियन डॉलर के कालादन मल्टी-मॉडल ट्रांसिट प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, जिसके माध्यम से भारत अपने नॉर्थ ईस्ट के राज्यों को म्यांमार के सितवे पोर्ट से जोड़ना चाहता है। नायपीडॉ ने अब भारत के साथ बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए नई दिल्ली की मदद मांगी है।
वहीं म्यांमार में चीन के प्रति विरोधी भावनाएं बढ़ती ही जा रही है। Myanmar के सभी शक्तिशाली जनरलों ने चीन के BRI परियोजनाओं को म्यांमार पर थोपने की वजह से असंतोष व्यक्त किया है। वहीं नायपीडॉ ने बीजिंग पर अराकान आर्मी और अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी को हथियार और धन देने आरोप लगाया है। इससे यह स्पष्ट हो चुका है कि म्यांमार अब चीन के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है और वह दिन दूर नहीं जब चीनी निवेश वाले BRI और CMEC के सभी प्रोजेक्ट्स को रोक दे।