वर्षों से जिस तिब्बत को वैश्विक ताकतों ने नज़रअंदाज़ किया था, आज उसी तिब्बत के लिए अधिकतर वैश्विक ताक़तें खुलकर समर्थन में सामने आई है। अब पहली बार निर्वासित तिब्बती सरकार को अमेरिका ने विकास हेतु वित्तीय सहायता देने की पेशकश की है।
यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेव्लपमेंट ने तिब्बती सरकार का अहम हिस्सा माने जाने वाले सेंट्रल तिबेतन एडमिनिस्ट्रेशन को 1 मिलियन डॉलर की सहायता देने की पेशकश की है। इसके पीछे का उद्देश्य है “तिब्बती समुदाय के स्वायत्ता के अभियान को वित्तीय रूप से बल देना, और सांस्कृतिक एवं आर्थिक रूप से तिब्बती समुदाय को पहचान दिलाना”।
ऐसा पहली बार होगा कि अमेरिका तिब्बत के स्वतंत्रता के संघर्ष के लिए प्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता दे रहा है। भारत को इस सहायता के लिए अपनी स्वीकृति देनी थी, और भारत ने भी निर्विरोध इसे स्वीकृत किया है। निर्वासित तिब्बती सरकार के राष्ट्रपति, डॉ लोब्सांग सांगे के अनुसार, “सीटीए को प्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता इस बात का परिचायक है कि अब पूरी दुनिया हमारे संघर्ष को स्वीकारेगी भी और उसका सम्मान भी करेगी। हम आशा करते हैं कि अमेरिका इसी भांति हमें और अधिक सहायता प्रदान करता रहे”।
तिब्बत से जुड़े संगठन SARD के निदेशक कायडोर औकतसंग के अनुसार, “इस वित्तीय सहायता से एक स्पष्ट संदेश उन लोगों को भी मिलेगा, जो हमारे संघर्ष को कुचलना चाहते हैं। इस सहायता से तिब्बती समुदाय के संघर्ष को एक नई ऊर्जा भी मिलेगी, जो आगे चलकर तिब्बत की स्वतन्त्रता हेतु मील का पत्थर सिद्ध होगी”।
सच कहें तो अमेरिका और भारत अब सक्रिय रूप से तिब्बत को स्वतंत्र कराने हेतु जी जान से जुट गए हैं। उदाहरण के लिए अमेरिकी सांसद, स्कॉट पेरी ने एक विधेयक को पेश किया, जिसके अंतर्गत तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा देने की मांग की गई है। अमेरिकी सांसद स्कॉट ने इस टेबल को यूएस कांग्रेस में पेश किया है, और ये भी कहा है कि तिब्बत एक स्वतंत्र क्षेत्र है, जिसे जल्द से जल्द एक स्वतंत्र देश की मान्यता प्रदान करनी चाहिए”। इसके अलावा तिब्बत की स्वायत्ता में एक अहम कदम उठाते हुए अमेरिकी प्रशासन ने ये भी संकेत दिये हैं कि आने वाले समय में उन चीनी अफसरों को अमेरिका में प्रवेश करने से रोका जा सकता है, जिनपर शिंजियांग प्रांत अथवा तिब्बत में अत्याचार करने का आरोप लगा है।
इसके अलावा भारत ने भी गलवान घाटी में चीन द्वारा किए गए हमले के पश्चात स्वतंत्र तिब्बत के पक्ष में अपनी आवाज़ उठानी शुरू कर दी है। पिछले महीने प्रसार भारती ने एक ट्वीट कर हुए लोगों को फिर से याद दिलाया कि आकाशवाणी तिब्बत (Tibet) का समाचार भी प्रसारित करती है। प्रसार भारती ने ट्वीट किया , “अगर आपको तिब्बत की वास्तविक खबरें सुनना है, तो आप ऑल इंडिया रेडियो के Tibetan World Service को सुनें, जहां तिब्बत की और तिब्बत के लिए खबरें प्रसारित की जाती हैं” –
Listen to All India Radio's Tibetan World Service for authentic news and programmes for and from Tibet. @AkashvaniAIR pic.twitter.com/JMFp8wypKo
— Prasar Bharati प्रसार भारती (@prasarbharati) June 17, 2020
इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडु ने खुलेआम चीन को चुनौती देते हुए बुम ला पोस्ट पर जवानों को संबोधित करते हुए एलएसी को भारत चीन बॉर्डर न कहकर भारत तिब्बत बॉर्डर के नाम से संबोधित किया। पेमा के अनुसार, “स्वतन्त्रता से ही हमारे भारत की रक्षा में भारतीय सेना हमेशा दो कदम आगे रही है। आज मुझे जवानों के साथ भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित बुमला पोस्ट पर बातचीत करने का सुअवसर मिला। उनका जोश चरमोत्कर्ष पर था। जब बात सीमा की सुरक्षा की हो, तो हम सुरक्षित हाथों में है” –
The valour of Indian Army is what we counted ever since our Indepence. Had an opportunity to interact with the brave jawans today at Bumla post on Indo-Tibet border.
Their josh is at highest level. We are in safe hands when it comes to our borders ..!! pic.twitter.com/kwg5Uyx3MB— Pema Khandu པདྨ་མཁའ་འགྲོ་། (Modi Ka Parivar) (@PemaKhanduBJP) June 24, 2020
ताइवान को एक स्वतंत्र देश का दर्जा देने के बाद अब अमेरिका Tibet को चीन के चंगुल से छुड़ाने के लिए कमर कसने की तैयारी कर रहा है। यही नहीं, अमेरिका का साथ देने के लिए भारत भी आगे आया है, और यदि सब कुछ सही रहा, तो तिब्बत को स्वतन्त्रता प्राप्त करने में अधिक समय नहीं लगेगा।