कोरोना का कहर बढ़ता ही जा रहा है। बिहार में हालात बद से बदतर हो चुके हैं। लगातार दो दिनों में दो नेताओं की भी मौत हुई है। दो दिन पहले BJP के MLC सुनील कुमार सिंह की मौत हुई थी और अब बुधवार को RJD के नेता राजकिशोर यादव का निधन हो गया है। राजकिशोर दानापुर सीट से आरजेडी के प्रत्याशी रहे हैं और उनकी लालू यादव के करीबी नेता के तौर पर गिनती होती थी।
बिहार में कोविड -19 मामलों की संख्या 1 जुलाई से दोगुनी से अधिक हो गई है। बिहार में गुरुवार तक 28,952 लोग कोरोना पीड़ित हो चुके हैं, जिनमें से 217 की मौत हो गई है। गुरुवार को 1,625 नए मामले मिले हैं, इससे पहले बुधवार को राज्य में 1502 नए मामले सामने आए थे। बिहार में जिस तरह कोरोना फैल रहा है और स्वस्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई है, उसके जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और स्वस्थ्य मंत्री मंगल पांडे ही हैं।
कोरोना के मामले बढ़ने और मरीजों के अस्पताल में स्थान न मिलने और अस्पताल के बाहर बेड के इंतजार में दम तोड़ देने की खबर के बावजूद किसी को कोई परवाह नहीं है, और ऊपर से मंत्री बयान दे रहे हैं कि सबकुछ ठीक है। यह लालू के जंगल राज से किसी भी मामले में कम नहीं है। ऐसे में इसे जंगलराज 2 कहे तो गलत नहीं होगा।
Sushil Modi and Mangal Pandey, please leave the BJP. You guys don’t belong here.
Nitish Kumar you are a disgrace.
Tejashwi- Yes you opportunist, we know what you’re up to.
It’s #JungleRaj2 in Bihar.
— The Frustrated Indian (@FrustIndian) July 23, 2020
बिहार में लगभग 25 लाख से अधिक प्रवासी कामगार लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों से लौटे हैं, लेकिन बिहार में COVID-19 के लिए टेस्टिंग रेट देश के 19 राज्यों में सबसे कम रहा है, यहां तक कि पड़ोसी राज्यों झारखंड और उत्तर प्रदेश की तुलना में भी कम रहा है।
NITI Aayog के सीईओ अमिताभ कांत के द्वारा शेयर किए गए आंकड़ों के अनुसार, बिहार में प्रति मिलियन मात्र 2,197 टेस्ट किए जा रहे हैं अगर रोज के आंकड़ों को देखे तो जिस गति से कोरोना के मामले बढ़े हैं उस गति से टेस्टिंग नहीं बढ़ाई गयी। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार 1 जुलाई को 7,200 टेस्ट हो रहे थे जबकि 17 जुलाई को यह आंकड़ा मात्र 10,000 ही है। आखिर टेस्टिंग क्यों नहीं बढ़ाई जा रही है? क्या नीतीश कुमार और स्वस्था मंत्री मंगल पांडे कोरोना के मरीजों की संख्या बढ्ने से डर रहे हैं? अगर ऐसा ही हालत रही तो बिहार में भी कोरोना व्यापक स्तर पर फैल जाएगा और पता भी नहीं चलेगा। इससे बचने के लिए टेस्टिंग की सख्त आवश्यकता है जैसा दिल्ली में अमित शाह ने किया।
Nitish Kumar Dhikkar hai. Thoo https://t.co/3vvSGik5rT
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) July 23, 2020
बिहार में जनसंख्या के मुक़ाबले डाक्टरों का अनुपात भी सबसे कम है। आंकड़ों के अनुसार 28,391 की आबादी के लिए बिहार में मात्र एक डॉक्टर (एलोपैथिक) है और प्रति 8,645 लोगों के मुक़ाबले अस्पताल में एक बिस्तर मौजूद है। 15 वर्षों तक शासन करने के बाद नीतीश कुमार ने बिहार की यह दुर्गति कर दी है।
sir i'm from bihar and yha pe corona paitent ki koi fikr hi nhi haii kisiko what if we got infected with covid-19 when we will go to give our compartment exam does exams matter more than students life #cancelcompartmentexams2020 #cancelcompartment @cbseindia29 @narendramodi pic.twitter.com/KlLhhAaIpJ
— rika (@rika48182304) July 23, 2020
बिहार में कम टेस्टिंग का एक और कारण वहां टेस्टिंग लैब की कमी होना। निजी क्षेत्र में तीन सहित, RT-PCR परीक्षण करने के लिए बिहार कुल में नौ लैब मौजूद थे। हालांकि, पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) और राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरएमआरआई) में दो परीक्षण प्रयोगशालाएं कुछ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को COVID-19 पॉजिटिव पाये जाने के बाद लैब बंद है।
कोरोना का कहर इस प्रकार का है कि पटना के निजी अस्पतालों ने ठंड, खांसी और बुखार के लक्षण वाले रोगियों को अस्पताल में भर्ती करना तो दूर छूने से इनकार कर रहे हैं। सिर्फ पटना ही नहीं, बल्कि बिहार के अन्य शहरों का भी यही हाल है। भागलपुर पटना के बाद बिहार का दूसरा सबसे प्रभावित शहर है जहां कई निजी अस्पताल और क्लीनिक बंद किए जा चुके हैं। सरकार ने राज्य के सभी राज्य-संचालित अस्पतालों को कोरोना रोगियों का फ्री में इलाज का निर्देश दिया है, लेकिन इसमें से अधिकांश अस्पताल आईसीयू, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सहायता से वंचित हैं।
अभी बिहार में मामले बढ़ ही रहे थे कि पटना में कोरोना के लिए समर्पित अस्पताल एम्स में काम करने वाली करीब 800 नर्सें 23 जुलाई से हड़ताल पर चली गईं। इससे वहां व्यवस्था और चरमरा गयी है।
बिहार के पूर्व आईएमए प्रमुख यादव के मुताबिक, पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) और इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएमएस) जैसे मेडिकल हब में गंभीर कोरोना रोगियों के इलाज के लिए पर्याप्त ICU बेड भी नहीं हैं।
हालात इतने गंभीर होने के बावजूद नीतीश कुमार चुनाव की तैयारियों में लगे हैं और अपनी पार्टी के लिए नए नए स्लोगन का लिखवा रहे हैं। कोरोना जैसे महामारी के दौरान किसी भी मुख्यमंत्री का यही दायित्व होता है कि पहले वो जनता को महामारी से बचाए फिर चुनाव की ओर देखे। परंतु बिहार के केस में यह ठीक उल्टा हो रहा है और नीतीश कुमार अपने उपमुख्यमंत्री और स्वस्थ्य मंत्री के साथ चुनाव की तैयारियों में लगे हैं। नीतीश कुमार के इसी जंगलराज 2 के कारण RJD को भी मौका मिल रहा है और वह लगातार राज्यसरकार पर हमला कर रही है। अब बिहार की जनता के पास चुनाव में कोई भी विकल्प नहीं बचा है। अगर वह RJD को वोट करते हैं तो भी जंगलराज और अराजकता आनी है और अगर नितीश कुमार को वोट देते हैं तो भी जंगलराज ही आएगी जैसा मौजूदा समय में देखने को मिल रहा है।