क्षेत्र के साथ विशेषज्ञ बनने वाले K Siddhartha जैसे लोगों को बढ़ावा देना Mainstream Media की अक्षमता का प्रतिबिंब है

मीडिया के 'दुग्गल साहब'

‘मुझसे शादी करोगे’ के दुग्गल साब तो आप सब को मालूम ही होंगे, जो कल कुछ और, तो आज कुछ और बन जाते थे? ऐसे थाली के बैंगन हर क्षेत्र में पाये जाते हैं, चाहे वो मीडिया हो या फिर राजनीति। ध्रुव राठी इस क्षेत्र के बेहतरीन विशेषज्ञ माने जाते हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा केवल सोशल मीडिया और यूट्यूब तक ही सीमित रह जाती है। परंतु एक व्यक्ति ऐसे भी हैं, जिनकी प्रतिभा हम आए दिन टीवी पर न्यूज़ चैनल के माध्यम से देख सकते हैं। इनका नाम है के सिद्धार्थ, जिन्हें अगर मीडिया का ‘दुग्गल साब’ कहा जाये तो गलत नहीं होगा।

के सिद्धार्थ ने काफी मीडिया में अनेकों शो पर काफी विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाई हैं। किसी चैनल पर वे धार्मिक विशेषज्ञ होते हैं, तो कहीं पर वे भूगोल के शास्त्री बताए जाते हैं। किसी चैनल पर वे सामरिक मामलों के विशेषज्ञ होते हैं, तो किसी चैनल पर वे राजनीति पर उपदेश देते हुए दिखाई देते हैं। एबीपी हो या एनडीटीवी, रिपब्लिक हो या फिर न्यूज़ नेशन, ये किसी भी प्रमुख न्यूज़ चैनल से नदारद नहीं दिखते। इस बारे में यो यो फन्नी सिंह नाम से ट्विटर हैंडल चलाने वाले यूज़र ने ट्वीट किया, “जब आप वास्तव में ऐसा प्राणी देखे, जिसपर यह डायलॉग फिट हो ‘मैं, मेरे को सब आता है, मैं एक्सपर्ट हूँ”।

परंतु यह तो कुछ भी नहीं है। फ्री प्रेस जर्नल नामक न्यूज़ पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार इस व्यक्ति की अपनी वेबसाइट भी हैं, जिसपर  इनकी उपलब्धियां पढ़कर किसी को भी चक्कर आ जाये। के सिद्धार्थ के वेबसाइट के अनुसार वे भू वैज्ञानिक हैं, सामरिक विशेषज्ञ हैं, और कई अंतर्राष्ट्रीय एवं राज्य सरकारों के सलाहकार हैं। इसके अलावा वे शिक्षाविद हैं, 1553 सरकारी अफसरों के गुरु हैं, फिल्म सेलेब्रिटीज़ के मार्गदर्शक हैं, 43 पुस्तकों के लेखक हैं और 116 रिसर्च लेख भी इन्होंने लिखे हैं। 

परंतु हंसी मज़ाक को यदि अलग रखें, तो क्या के सिद्धार्थ एक विश्वसनीय विशेषज्ञ हैं? बिलकुल भी नहीं। ऐसे स्वयंभू विशेषज्ञों को मंच देने से यह सिद्ध होता है कि मुख्यधारा मीडिया की विश्वसनीयता किस प्रकार से रसातल में गिरी हुई है, कि वे किसी भी व्यक्ति को बिना जांच पड़ताल के अपने मंच पर बुला लेते हैं और उन्हें कुछ भी बोलने की पूरी स्वतंत्रता देते हैं। परंतु यह कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि जब बीबीसी जैसा संगठन ध्रुव राठी के खोखले रिपोर्ट्स के आधार पर कुछ वेबसाइट्स पर फेक न्यूज़ फैलाने का झूठा आरोप लगा सकते हैं, तो फिर ये तो भारतीय मीडिया ठहरी।

मीडिया कैसे-कैसे लोगों को और किन स्रोतों को आधार बनाकर अपने विचार सामने रखती है, इसका एक उदाहरण हमने पिछले वर्ष भी देखा है। IndiaScoops नामक फेसबुक पेज के कथित दावों के आधार पर कांग्रेस पार्टी से लेकर वामपंथी मीडिया ने केंद्र सरकार को राफ़ेल के ‘घोटाले’ के लिए ‘दोषी’ भी ठहरा दिया था। लेकिन जांच पड़ताल में सामने आया कि यह पेज पहले अरशी खान फ़ैन क्लब के नाम से फेसबुक पर जाना जाता था। ऐसे में के सिद्धार्थ का मामला एक बार फिर भारतीय मेन्स्ट्रीम मीडिया के विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है।

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