केरल सोना तस्करी कांड: तस्करी से मिला पैसा आतंकवाद ही नहीं मलयालम फिल्म उद्द्योग में भी इस्तेमाल किया जाता था

फिल्मों उद्द्योग को मिलने वाले पैसों की अब जांच होनी चाहिए

केरल

केरल का गोल्ड घोटाला अब धीरे-धीरे पिनराई विजयन सरकार के काले धंधों का कच्चा चिट्ठा खोल रहा है । इस घोटाले से आतंकियों को मिलने वाली वित्तीय सहायता का खुलासा होने के पश्चात अब एनआईए ने ये सिद्ध किया है कि इसी रैकेट से मलयालम फिल्म उद्योग में भी भारी निवेश किया जाता था।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार स्पेशल कोर्ट में पेश किए गए रिमांड नोट में एनआईए ने बताया कि कैसे मुख्य आरोपी स्वप्ना और संदीप भारी मात्रा में सोने की तस्करी कर भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने का खाका बुन रहे थे। एनडीटीवी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अब तक 180 किलो सोना भारत में तस्करी के जरिये लाया गया है।

बता दें कि अभी हाल ही में तिरुवनन्तपुरम एयरपोर्ट पर 30 किलो सोना ज़ब्त हुआ था, और यह तस्करी  Diplomatic immunity का फ़ायदा उठाते हुए की गई थी। जांच पड़ताल में यूएई कॉन्सुलेट जनरल के यहाँ पूर्व पब्लिक रिलेशन्स ऑफिसर रह चुके सरिथ कुमार और पूर्व कॉन्सुलेट अधिकारी स्वप्ना सुरेश का नाम सामने आया था।

स्वप्ना सुरेश कई महीनों तक सूचना प्रौद्योगिकी इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (केएसआईटीआईएल) के तहत स्पेस पार्क की विपणन संपर्क अधिकारी भी थीं। Customs की रिपोर्ट के अनुसार सरिथ ने कूटनीतिक यानि diplomatic immunity का फ़ायदा उठाते हुए कई बार सोने का दुरुपयोग भी किया। हालांकि, इस बार करोड़ों रुपये के सोने की तस्करी करने की उनकी मंशा धरी की धरी रह गई और सरिथ को तत्काल प्रभाव से हिरासत में भी लिया गया।

तो इसका मलयालम फिल्म उद्योग से क्या संबंध है? दरअसल, स्वराज्य मैगज़ीन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इसी सोने की तस्करी से काफी पैसा मलयालम फिल्म उद्योग में भी लगाया जाता था। हालांकि, भारतीय सिनेमा के इतिहास को देखते हुए यह कोई हैरानी की बात नहीं है। चाहे बॉलीवुड हो, या फिर अन्य उद्योग, सिनेमा में काले धन का उपयोग भारत के लिए बहुत आम बात रही है।

1970 के दशक के अंत से 2000 के प्रारम्भ तक डी कंपनी और मुंबई के अंडरवर्ल्ड द्वारा बॉलीवुड फिल्म उद्योग में निवेश बड़ी आम बात थी। ऐसे में अब यह अहम हो जाता है कि फिल्मों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाये।  फिलहाल के लिए एनआईए को केरल हाई कोर्ट का भी साथ मिल चुका है, और कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि एनआईए के जांच पड़ताल में कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

परंतु ये आवश्यक नहीं है कि फिल्म उद्योग में निवेश केवल अपराधियों ने किया हो। कभी-कभी तो  कुछ विशेष विचारधारा से जुड़े लोग भी अपने हितों की पूर्ति हेतु फिल्मों में निवेश करते हैं। कभी आपने सोचा है कि 60 से 80 के दशक तक में अधिकतर बॉलीवुड, चाहे कमर्शियल या आर्ट, हमेशा सोवियत संघ या उससे संबंधित देश में क्यों प्रदर्शित और सम्मानित होती थी? ऐसा यूं ही नहीं होता था, बल्कि इसके पीछे एक गहरी सोची समझी साजिश होती थी।

पूर्व केजीबी एजेंट यूरी बेज़्मेनोव के खुलासों और मित्रोखिन आर्काइव्स (Mitrokhin Archive) से पता चलता है कि पूर्व सोवियत संघ के कम्युनिस्ट एजेंट केवल भारतीय राजनीतिज्ञों को ही नहीं, बल्कि कलाकारों, विशेषकर कवियों, अभिनेताओं, निर्देशकों पर विशेष प्यार जताते थे। उदाहरण के लिए सुमित्रनन्दन पंत की मॉस्को में काफी आवभगत की जाती थी, ताकि ऐसे लोग सदैव कम्युनिस्ट शासन का गुणगान करते रहे। जब सुमित्र नन्दन पंत जैसे कवि के साथ ये हो सकता था, तो कल्पना कीजिये कि बॉलीवुड फिल्म उद्योग में कितने ऐसे लोग रहे होंगे, जो रहते भारत में, लेकिन गाते USSR की, और कितना निवेश फिल्मों में होता रहा होगा?

जाने अंजाने ही सही, पर केरल के गोल्ड घोटाले ने एक बार फिर इसी समस्या पर प्रकाश डालते हुए फिल्मों के वित्तीय पक्ष के पुनर निरीक्षण पर ध्यान देने के लिए जनता को विवश किया है। यदि तिरुवनन्तपुरम एयरपोर्ट पर कस्टम्स विभाग ने ये सोना नहीं ज़ब्त किया होता, तो न जाने कैसे कैसे प्रकार के लोगों और धंधों को बढ़ावा दिया जाता, जो केवल केरल के लिए नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ा खतरा होता।

 

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