इस समय यदि केरल सरकार पर कोई कहावत चरितार्थ होती है, तो वो एक ही कहावत है – “चमड़ी जाये पर दमड़ी न जाये”। हाल ही में एक ऐसा निर्णय लिया गया है, जो ये बताने के लिए काफी है कि केरल में किस तरह की राजनीति की जा रही है। अब खबर आ रही है कि त्रावणकोर के देवास्वोम बोर्ड ने अपने विद्यालयों में अरबी पढ़ाने वाले शिक्षकों को अपने नियंत्रण में आने वाले विद्यालयों में भर्ती कराने का निर्णय लिया है।
आरएसएस द्वारा प्रायोजित ऑनलाइन मैगज़ीन ऑर्गनाइज़र द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट से ये मालूम होता है कि केरल के त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड (Travancore Devaswom Board) ने अपने नियंत्रण में आने वाले मंदिरों द्वारा चलाये जा रहे विद्यालयों में अरबी शिक्षकों को नियुक्त करने का निर्णय लिया है। इतना ही नहीं, अरबी शिक्षकों के तौर पर कुछ लोगों का चयन किया गया है – शमीर ए, बुशरा बेगम एके, मुबाश ई एवं सुमय्या मुहम्मद।
यहाँ ध्यान देने वाली बात तो यह है कि न तो इसके लिए देवास्वोम बोर्ड के अंतर्गत आने वाले मंदिरों के पुजारियों से कोई परामर्श लिया गया, और न ही मंदिर के अंतर्गत आने वाले पुजारियों से कोई परामर्श लिया गया। इसके अलावा कई महीनों से संस्कृत के शिक्षकों को नियुक्त करने की मांग को भी केरल सरकार ने नज़रअंदाज़ किया, परंतु अरबी शिक्षक की नियुक्त करने में एक पल भी नहीं गंवाया। ध्यान रहे कि केरल में सभी देवास्वोम बोर्ड केरल सरकार के ही नियंत्रण में आते हैं, और यही देवास्वोम बोर्ड त्रावणकोर के विश्व प्रसिद्ध पद्मनाभस्वामी मंदिर का कार्यभार संभालना चाहता था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम निर्णय में ठुकराते हुए मंदिर की कमान पुनः त्रावणकोर के शाही परिवार को सौंप दी थी।
परंतु यह पहला ऐसा अवसर नहीं है जब केरल सरकार ने हिन्दू समुदाय को नीचा दिखाने और सनातन संस्कृति को कुचलने के लिए ऐसा कदम उठाया हो। ऑर्गनाइज़र की रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष केरल ने मदरसा के मौलवियों के पालन पोषण हेतु एक विवादास्पद विधेयक पारित करवाया था, जिसके अंतर्गत सभी मदरसा शिक्षकों के लिए डेढ़ हज़ार से साढ़े सात हज़ार रुपये प्रति माह के हिसाब से पेन्शन निर्धारित की गई है। इसका खर्चा कहाँ से आएगा, ये जानने के लिए कोई विशेष शोध करने की आवश्यकता नहीं।
पर बात यहीं पर खत्म नहीं होती। इससे पहले भी केरल सरकार ने हिन्दू मंदिरों से धन निकलवाने के लिए कई विवादास्पद निर्णय लिए है, और इसे समझने के लिए गुरुवायूर देवास्वोम बोर्ड से बेहतर उदाहरण कोई हो ही नहीं सकता। अभी मई माह में तमिलनाडु के तर्ज पर केरल सरकार ने Guruvayur Devaswom Board के कोषागार से पांच करोड़ ऐंठे हैं, ये जानते हुए भी कि देश के अन्य प्रतिष्ठानों की तरह मंदिरों में भी राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण पैसों की काफी किल्लत है। यह धनराशि तुरंत चीफ मिनिस्टर के राहत कोष में स्थानांतरित कर दी गई। हद तो तब हो गई, जब Guruvayur Devaswom Board के अध्यक्ष केबी मोहनदास ने कहा, “बोर्ड ने सीएम आपदा राहत कोष को बाढ़ के समय भी काफी सहायता दी थी”। एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी। केरल सरकार श्री Guruvayur मंदिर के 14000 एकड़ भूमि की स्वामी है, और मुआवजे के तौर पर मंदिर को केवल 13 लाख सालाना देती है। यदि यह लूट नहीं है तो क्या है?
सच कहें तो इन निर्णयों से केरल की वर्तमान सरकार अपनी ही कब्र को खोदने में लगी हुई है। पहले ही सबरीमाला मंदिर पर सरकार के कायराना रुख से केरल का हिन्दू समुदाय काफी क्रोधित है, उसके ऊपर से अभी हाल ही में उजागर हुई सोने की तस्करी तो केरल सरकार के लिए कोढ़ में खाज बनी हुई है। लेकिन देवास्वोम बोर्ड द्वारा अरबी शिक्षकों को नियुक्त करने की नीति ने केरल सरकार की विदाई तय कर दी है।